24 अप्रैल 2021 की अल सुबह एरिक मैसी को दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल से एक फोन आया. उन्हें बताया गया कि सांस रुक जाने के चलते उनकी 61 वर्षीय मां डेल्फिन मैसी की मौत हो गई है. डेल्फिन को सप्ताह भर पहले कोविड-19 के गंभीर लक्षणों के चलते अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था. जिस सुबह उनकी मौत हुई एरिक उनके शव को लेने अस्पताल गए और देखा कि आईसीयू में केवल दो ही मरीज थे. जबकि उस हफ्ते की शुरूआत में आईसीयू पूरी तरह भरे हुए थे. उन्होंने याद किया कि “यह बहुत अजीब था क्योंकि तब दूसरी लहर चरम पर थी और अस्पताल मरीजों से भर रहते थे. मुझे पता था कि कुछ तो गड़बड़ है.” अगले कुछ घंटों के भीतर उन्होंने पाया कि उनकी मां उन 20 रोगियों में से थीं जिनकी पिछली रात 10 बजे अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के चलते मृत्यु हुई थी. अस्पताल ने गंभीर रूप से बीमार रोगियों को ऑक्सीजन लगाने की कोशिश की लेकिन आवश्यक ऑक्सीजन के प्रवाह जारी न रख पाने के कारण मरीजों की मौत हो गई.
एरिक और सात अन्य लोग, जिन्होंने उस रात जयपुर गोल्डन अस्पताल में परिवार के सदस्यों को खो दिया था, न्याय के लिए तीन महीनों से संघर्षरत हैं. अप्रैल के अंत में इन आठ परिवारों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की. याचिका में अस्पतालों को समय पर ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए जिम्मेदार अस्पताल और सरकारी अधिकारियों से मुआवजा और उन पर आपराधिक कार्रवाई की मांग की गई है. "अभी तक कुछ नहीं हुआ है," 23 जुलाई को मुझसे बात करते हुए एरिक ने कहा. “मुआवजे की बात तो छोड़िए किसी ने हमसे मांफी मांगने या यह तक पूछने का प्रयास नहीं किया कि हम कैसे हैं. हमें अब कोर्ट से ही उम्मीद है.”
20 जुलाई को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऑक्सीजन की कमी के कारण कोविड-19 मौतों पर संसद में एक बयान दिया जिसके बाद हंगामा हो गया. राज्यसभा में स्वास्थ्य राज्य मंत्री भरत प्रवीण पवार ने एक लिखित जवाब में कहा कि “राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों में ऑक्सीजन की कमी के कारण कोई मौत नहीं हुई है." ऐसा कहते हुए सरकार ने इन मौतों के व्यवस्थित रिकॉर्ड की कमी के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दोष दिया.
मंत्री के जवाब ने जयपुर गोल्डन अस्पताल मामले के आठ याचिकाकर्ताओं को झकझोर दिया है. उनके वकील उत्सव बैंस कहते हैं, "वे अभी भी शोक में हैं और अब सरकार यह मानने से इनकार कर रही है कि उनके परिजनों मौत ऑक्सिजन की कमी से हुई है."
अप्रैल के मध्य तक देश भर से ऑक्सीजन की कमी से कोविड-19 रोगियों के मरने की रिपोर्टें आने लगी थीं. जयपुर गोल्डन अस्पताल में हुई घटना के कुछ दिनों बाद दिल्ली के बत्रा अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म होने के चलते एक डॉक्टर सहित 12 मरीजों की मौत हुई. पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक से भी ऐसी ही खबरें आईं.
अगर केंद्र सरकार को डेटा चाहिए तो ऑक्सीजन की कमी के कारण होने वाली मौतों के सबूतों, भले ही अधूरे हों, को इकट्ठा करना मुश्किल नहीं है. आंध्र प्रदेश के श्रीसिटी में स्थित केरिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र सीनियर रिसर्च फेलो अदिति प्रिया ने पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और शोधकर्ताओं सहित स्वयंसेवकों की मदद से ऐसी मौतों का एक डेटाबेस बनाया है. उन्होंने भारत में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान "ऑक्सीजन की कमी या अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी के कारण होने वाली सभी मौतों की गिनती रखने की कोशिश की है." स्वयंसेवकों ने समाचार रिपोर्टों के आधार पर इस डेटाबेस को बनाया है. प्रिया ने बताया, "हम हर रिपोर्ट की पुष्टि कर रहे हैं. स्थानीय समाचार पत्रों को देख रहे हैं और सुनिश्चित कर रहे हैं कि हमारे डेटा में कोई दोहराव न हो." डेटाबेस कम से कम 619 ऐसी मौतों की सूची है. 22 जुलाई को प्रिया ने मुझे बताया कि उनके नवीनतम अनुमान के अनुसार यह संख्या बढ़कर 680 हो गई है. वह जानती हैं कि यह एक सतही अनुमान है. "ऐसे कई लोग हैं जो एम्बुलेंस में, अपने घरों में और सड़कों पर ऑक्सीजन बिस्तर पाने के इंतजार में मर गए. हमारे पास उस पर कोई डेटा नहीं है."
केंद्र सरकार महामारी के दौरान महत्वपूर्ण आंकड़ों के बारे में अपारदर्शी रही है. सितंबर 2020 में केंद्र ने संसद को बताया कि उसके पास उन प्रवासियों का कोई डेटा नहीं है जिनकी मृत्यु देशव्यापी लॉकडाउन के कारण हुई थी. सरकार के पास इसका भी रिकॉर्ड नहीं है कि कोविड-19 के कारण कितने स्वास्थ्य कर्मियों की मृत्यु हुई है. कारवां ने अपनी पिछली रिपोर्टों में बताया है कि कैसे डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ को आधिकारिक आंकड़ों के अभाव में अपने बीच हताहतों की गिनती रखनी पड़ रही है.
प्रिया ने ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों पर सरकार के जवाब का जिक्र करते हुए कहा, “हमने अनुमान लगाया था कि ऐसा होगा. तब भी ऐसा ही हुआ था जब सरकार को प्रवासी श्रमिकों या महामारी के दौरान मारे गए स्वास्थ्य कर्मियों पर डेटा प्रकाशित करने के लिए कहा गया था.” स्वयंसेवकों की उनकी टीम ने पहले पहली लहर के दौरान प्रवासी मजदूरों की मौतों का दस्तावेजीकरण किया था. "फिर भी हम इस नवीनतम दावे से थोड़े हैरान थे," प्रिया ने आगे कहा. "इस लहर के पैमाने और लोगों को हुए आघात को देखते हुए हमें इस बार सरकार से कम से कम कुछ जवाबदेही की उम्मीद थी."
सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति के जानकार मुंबई के सर्जन संजय नागराल ने कहा कि राज्यसभा में अपने जवाब में सरकार द्वारा नियोजित शब्दार्थ पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है. पवार ने कहा था कि किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों पर डेटा "प्रस्तुत" नहीं किया लेकिन उन्होंने देश में ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों की संभावना से स्पष्ट रूप से इनकार नहीं किया. नागराल ने मुझे बताया, "यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह इस डेटा को किस पर आधारित कर रहे हैं. अधिकतर मौत का कारण रेस्पिरेटरी फेल्योर (सांस लेने में दिक्कत) या कार्डिएक अरेस्ट (हृदयाघात) लिखा जाता है. इस मामले में शायद हाइपोक्सिया (उत्तकों में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन न पहुंचना) को शामिल किया जा सकता है, लेकिन बस इतना ही. उन्होंने कहा, "बेशक वे ऑक्सीजन की कमी के बारे में बात नहीं करना चाहते हैं और इसलिए वे इस तरह के तकनीकी कारणों का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि ऐसा लगे कि ऐसी कोई मौत नहीं हुई."
मैंने यह समझने के लिए राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों से बात की कि यह डेटा कभी रिपोर्ट क्यों नहीं किया गया. छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री त्रिभुवनेश्वर सरन सिंह देव ने मुझसे कहा, “यह दावा करना कि ऐसी कोई मौत नहीं हुई गलत और भ्रामक है क्योंकि हमसे ऐसा कोई डेटा नहीं मांगा गया.” देव ने बताया कि सभी कोविड-19 मौतों की सूचना भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद को प्रोफारमा के माध्यम से दी गई थी. इस प्रोफारमा में दो श्रेणियां थीं- कोविड-19 के कारण मृत्यु और कोविड-19 और पहले से किसी गंभीर बीमारी के कारण मृत्यु. उन्होंने कहा, "ऑक्सीजन की कमी से होने वाली किसी भी मौत की रिपोर्ट करने के लिए कोई जगह नहीं है."
देव ने मुझे बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार पहले से ही ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का राज्य स्तरीय ऑडिट कर रही है. राज्य के अधिकारियों को लिखे एक पत्र में निर्देश दिया गया है कि वे 31 जुलाई से शुरू होने वाले तीन महीने के भीतर यह ऑडिट हो.
देव ने बताया कि छत्तीसगढ़ अतिरिक्त ऑक्सीजन उत्पादक राज्य है जो प्रतिदिन 388 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन करता है. उनके अनुसार दूसरी लहर के चरम के दौरान 26 अप्रैल को राज्य की दैनिक ऑक्सीजन की मांग 180 मीट्रिक टन हो गई. महामारी से पहले राज्य में मेडिकल ऑक्सीजन की मांग प्रति दिन 10 मीट्रिक टन से अधिक नहीं थी. "तो हमारे लिए खुद आक्सीजन समस्या नहीं थी बल्कि यह सुनिश्चित करना एक समस्या थी कि आपूर्ति प्रत्येक अस्पताल और प्रत्येक रोगी को समय पर पहुंचे," उन्होंने कहा.
पंजाब के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के प्रमुख सचिव हुसैन लाल ने 22 जुलाई को मुझे कुछ ऐसा ही बताया कि प्रोफारमा में यह बताने का विकल्प नहीं था कि क्या कोविड-19 मौतें ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई थीं. उन्होंने कहा, "और हमें कोई दूसरा रास्ता या कोई अन्य संकेत नहीं दिया गया था कि वह इस तरह का डेटा तलाश कर रहे हैं," उन्होंने कहा. अभी पिछले दिन दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मीडिया को बताया कि दिल्ली सरकार के पास डेटा नहीं है क्योंकि केंद्र सरकार ने उन्हें ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों की जांच के लिए समिति बनाने की इजाजत नहीं दी.
मध्य प्रदेश, जिसमें भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, और बिहार, जहां बीजेपी जनता दल (यूनाइटेड) के साथ गठबंधन में है, के अधिकारियों ने दावा किया है कि दूसरी लहर के दौरान उनके संबंधित राज्यों में ऑक्सीजन की कमी के कारण कोई मौत नहीं हुई. मैंने तमिलनाडु, जहां द्रविड़ मुनेत्र कड़गम सत्ता में है और उत्तर प्रदेश, जहां बीजेपी की सरकार है, के स्वास्थ्य सचिवों से भी बात की. दोनों राज्यों के अधिकारियों ने कहा कि वे अपने राज्यों में ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई मौतों पर डेटा एकत्र करने की प्रक्रिया में हैं.
27 जुलाई को राज्यसभा में दिए जवाब के एक हफ्ते बाद और मेरे देव और लाल से बात करने के बाद, समाचार एजेंसी एएनआई ने बताया कि केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर ऑक्सीजन की कमी के कारण होने वाली मौतों पर डेटा मांगा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र ने 13 अगस्त को मॉनसून सत्र खत्म होने से पहले इस आंकड़े को संसद में पेश करने की योजना बनाई है. इस तरह के किसी भी निर्देश का विवरण, जैसे कि मौत का ऑडिट कैसे किया जाना चाहिए और ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों का क्या कारण है, साझा नहीं किया गया है.
ऑक्सीजन की कमी से हुईं मौतों पर व्यापक डेटा एकत्र करने के लिए व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है क्योंकि ऑक्सीजन की आपूर्ति में व्यवधान से कई मौतें हुईं. "क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि ऑक्सीजन नहीं थी? क्या मौत ऑक्सीजन की आपूर्ति में देरी के कारण हुई या शायद गलत दबाव के कारण हुई?” नागराल ने पूछा. उन्होंने कहा, "अक्सर लोग किसी भी प्रकार की ऑक्सीजन मरीजों को दे रहे थे जबकि उनमें से अधिकतर को जीवित रहने के लिए विशेष रूप से उच्च प्रवाह ऑक्सीजन की आवश्यकता होती." उन्होंने ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों के आंकड़ों की कमी की तुलना दुर्घटना पीड़ितों के लिए रक्त आधान में देरी से हुई मौतों के आंकड़ों की कमी से की. "हमारे पास दुर्घटनाओं के कारण मरने वालों की संख्या का डेटा है लेकिन क्या हम जानते हैं कि वह दुर्घटना के कारण मरे या इसलिए मरे क्योंकि उन्हें समय पर आवश्यक रक्त नहीं मिला. यह हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के भीतर की समस्याओं को समझने के लिए आवश्यक डेटा है."
स्वास्थ्य अधिकारों पर काम करने वाले नागरिक समाज संगठनों के नेटवर्क जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय सह-संयोजक अभय शुक्ला ने मुझे बताया कि विस्तृत डेटा की कमी अपने आप में खराब स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे का संकेत है. उन्होंने कहा, "यह ऐसा विरोधाभास है जहां कम मौतों की रिपोर्ट करने वाले राज्य शायद खराब स्वास्थ्य सुविधाओं वाले हैं क्योंकि सर्वेक्षण करने और डेटा को सटीक रूप से एकत्र करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है." इसका एक उदाहरण है कि कैसे केरल और महाराष्ट्र ने लगातार कोविड-19 मामलों की उच्च संख्या दर्ज की है. राज्य-स्तरीय आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि केरल ने अधिक सटीक निगरानी की और वहां देश के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में मामलों की पहचान दर बेहतर है. इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च, केरल द्वारा किए गए नवीनतम सेरोप्रेवलेंस सर्वेक्षण के अनुसार, उसके बाद महाराष्ट्र में सबसे कम अंडर-रिपोर्टिंग थी. इन दोनों राज्यों ने अधिक कुशल स्वास्थ्य प्रणाली के कारण देश के अन्य राज्यों की तुलना में अधिक सटीक डेटा प्रदान किया है.
शुक्ला का मानना है कि निगरानी की कमी और पर्याप्त डेटा संग्रह के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारें कई अन्य तरीकों का इस्तेमाल करके अनुमान लगा सकती हैं कि देश में ऑक्सीजन की कमी के कारण कितने लोग मारे गए. उन्होंने कहा, “आप डॉक्टरों से इस तरह का डेटा जमा करने के लिए भी कह सकते हैं.अगर वे चाहें तो इस तरह के डेटाबेस को आसानी से बना सकते हैं."
(यह रिपोर्ट ठाकुर फैमिली फाउंडेशन के अनुदान द्वारा समर्थित है. इस रिपोर्ट की विषय वस्तु पर ठाकुर फैमिली फाउंडेशन का कोई संपादकीय नियंत्रण नहीं है.)