नफरत का कारोबार

मुख्यधारा के लिए नैरेटिव गढ़ता दक्षिणपंथी यूट्यूबरों का समूह

एक यूट्यूब वॉक्स-पॉप चैनल 29 नवंबर को दिल्ली के पालिका बाजार में राहगीरों का इंटरव्यू लेता हुआ. इन यूट्यूब चैनलों पर बोलने वालों के चारों ओर छोटे-छोटे गुट बन जाते हैं, चाहे वे सत्ताधारी दल के पदाधिकारी हों या छोटे प्रभावशाली व्यक्ति, जो एक वायरल वीडियो के बाद प्रसिद्धि पा जाते हैं. कारवां/सीके विजयकुमार
29 December, 2022

"बुलडोजर बाबा ने दिया ऐसा जवाब तो बिलबिला उठा विपक्ष" शीर्षक वाले एक यूट्यूब वीडियो में- बाबा थके हुए लग रहे थे. उनकी थकान समझी जा सकती थी. यह वीडियो 22 फरवरी को जारी किया गया था और अजय सिंह बिष्ट लगभग डेढ़ महीने से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी स्थिति बरकरार रखने के लिए प्रचार कर रहे थे. बिष्ट ने अपनी सरकार द्वारा मुस्लिम घरों के विध्वंस के लिए "बुलडोजर बाबा" की उपाधि अर्जित की थी. अगले दिन दुनिया के सबसे बड़े प्रांतीय चुनावों में चौथे चरण का मतदान होना था, घोषणा से लेकर परिणाम तक तीन महीने का भीषण मैराथन. भारतीय जनता पार्टी के राज्य प्रचार अभियान के इकलौते चेहरे बिष्ट का बेहद व्यस्त कार्यक्रम था.

देश के सबसे बड़े मीडिया हाउस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के लिए उनका पीछा कर रहे थे, लेकिन उन्हें सीमित सफलता मिली थी. एक प्रमुख अंग्रेजी टेलीविजन चैनल के उत्तर प्रदेश चुनाव कवर करने वाले पत्रकारों में से एक ने हमें बताया कि उन्होंने तीन महीने से अधिक समय तक कोशिश की, लेकिन मुख्यमंत्री के साथ दस मिनट की बातचीत भी नहीं कर पाए. इसके बजाय एक यूट्यूब चैनल, खबर इंडिया को इंटरव्यू मिला, जिसने मात्र चार साल पहले अपना पहला वीडियो- एक मोटरबाइक कैसे बेचें - अपलोड किया था. इन इंटरव्यू की पहुंच को कम आंकना आसान है. बुलडोजर बाबा के इंटरव्यू को यूट्यूब पर लगभग चौथाई मिलियन और फेसबुक पर लगभग नौ लाख बार देखा गया. बिष्ट ने जल्द ही कई अन्य यूट्यूबरों को इंटरव्यू दिए : राजधर्म चैनल ने "सिर्फ 3 सवालों में सीम योगी का इंटरव्यू, जो यूपी चुनाव को पूरी तरह पलट देगा" शीर्षक से एक इंटरव्यू अपलोड किया, जबकि हेडलाइंस इंडिया ने "योगी आदित्यनाथ का सबसे तेज तर्रार इंटरव्यू, जिसे देख अपराधियों में मचा हड़कंप" शीर्षक से एक इंटरव्यू प्रकाशित किया. द राजधर्मा और हेडलाइंस इंडिया दोनों के इंटरव्यू को यूट्यूब पर पांच लाख से ज्यादा बार देखा गया.

ये यूट्यूब चैनल प्लेटफॉर्म पर अपनी सामग्री को इतनी तेजी से फैलाने में माहिर हैं कि मुख्यधारा के मीडिया चैनल रश्क कर सकते हैं और अक्सर ज्यादा वफादार दर्शक उन्हें मिलते हैं. रिपब्लिक टीवी के संस्थापक और तेजतर्रार एंकर अर्नब गोस्वामी का मुख्यमंत्री का लिया इंटरव्यू यूट्यू​ब पर केवल चार लाख बार देखा गया था. ओ न्यूज हिंदी नाम के एक यूट्यूब चैनल, जो इसी तरह की सामग्री प्रकाशित करता है, के ऋषभ अवस्थी ने कहा, "मुख्यमंत्री के साथ यूट्यूबरों के इंटरव्यू उनकी अपनी पीआर टीम द्वारा व्यवस्थित किए गए थे." उन्हें इस बात का दुख था कि उन्हें मौक नहीं मिला.

ये चैनल घोर-दक्षिणपंथी यूट्यूबरों के बढ़ते समूह से संबंधित हैं, कई हाल ही में कुछ बीस कॉलेज स्नातकों द्वारा शुरू किए गए आमतौर पर जिनके नाम ही इस तरफ इशारा करते हैं कि वे उच्च-जाति से हैं. वे अपनी पहुंच, समाचार एजेंडा सेट करने की अपनी क्षमता और नफरती बयान और इस्लामोफोबिया के सबसे चरम रूपों को पेश करने के मामले में तेजी से मुख्यधारा के समाचार चैनलों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं. हिंदी यूट्यूब की तुलनात्मक रूप से अनियमित निरंकुशता में, राष्ट्रीय राजधानी के आसपास स्थित इन दर्जनों अलग-अलग चैनलों ने सावधानीपूर्वक निर्धारित वोक्स-पॉप वीडियो और हिंदू चरमपंथी बैठकों के विजयपूर्ण कवरेज के आधार पर छोटे साम्राज्यों का निर्माण किया है.

इन चैनलों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. इस माध्यम के पुराने चैनलों को जितना देखा जाता है वह मुख्यधारा के समाचार संगठनों को यकीन के साथ चुनौती दे सकते हैं. खबर इंडिया की यूट्यूब पर कुल 160 मिलियन से अधिक दर्शक संख्या है, जबकि प्यारा हिंदुस्तान के लगभग 700 मिलियन दर्शक हैं, द न्यूज के 1.2 बिलियन दर्शक हैं, हेडलाइंस इंडिया के 2 बिलियन, एचडीवी न्यूज के पास 240 मिलियन और यूथ मीडिया टीवी के पास 150 मिलियन दर्शक हैं. उनके सब्सक्राइबरों की संख्या भी अच्छी-खासी है, खबर इंडिया के आठ लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं, जबकि शाइनिंग इंडिया के पास 1.34 मिलियन, राजधर्म के पास लगभग 2 मिलियन और प्यारा हिंदुस्तान के पास 2.84 मिलियन सब्सक्राइबर हैं. उनका हर वीडियो फेसबुक, व्हाट्सएप, टेलीग्राम और ट्विटर पर भी लंबे समय तक रहता है.

उनकी सामग्री वायरल होने वाली होती है, अक्सर ट्विटर और फेसबुक पर उस हफ्ते धड़ाधड़ हिंदुओं के खिलाफ अक्सर गढ़े गए अन्याय के बारे में अभियान चलाया जाता है. तब इस सामग्री का एक अच्छा खासा हिस्सा टेलीविजन स्टेशनों और उनके अपेक्षाकृत मध्यम दर्शकों के लिए अपना रास्ता बनाता है. यह व्यवस्था मुख्यधारा के मीडिया के साथ-साथ बीजेपी के नेताओं को मस्जिदों को गिराने, मुसलमानों पर हमला करने और मुंह में राम बगल में छुरी रखते हुए नरसंहार संबंधी बयानबाजी के अंधड प्रचार में शामिल होने की इजाजत देती है.

यूट्यूब चैनल खबर इंडिया, द राजधर्म, हेडलाइंस इंडिया और प्यारा हिंदुस्तान को 2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों के लिए अजय सिंह बिष्ट का साक्षात्कार करने का मौका मिला. देश के सबसे बड़े मीडिया घराने एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के लिए उनका पीछा कर रहे थे, लेकिन उन्हें सीमित सफलता मिली थी.

हर चैनल का कोई ऐसा समय होता है, एक वीडियो जो इसे धुर-दक्षिणपंथी दर्शकों की भूखी दुनिया के केंद्र में ले जाता है. अवस्थी के लिए, जिन्होंने खुद को ओ न्यूज हिंदी के प्रबंध संपादक के रूप में पेश किया, वह पल 2 अगस्त 2021 को था. अवस्थी ने मुझे बताया कि उत्तरी दिल्ली में आजादपुर फ्लाईओवर के किनारे एक छोटी मुस्लिम मजार बनाई गई है. खबर इंडिया पहले वहां गया और मौके पर जाकर इसे कवर किया. एक बंदा था, दीपक सिंह हिंदू नाम का, जो बजरंग दल में हुआ करता था. खबर इंडिया ने मजार पर उससे बातचीत की. लेकिन वह दर्शकों के मन और संवेदनाओं को पसंद नहीं आया. कुछ दिनों बाद, अवस्थी ने मज़ार की देखरेख करने वाले सिकंदर का इंटरव्यू लिया.

अवस्थी ने कहा, "बजरंग दल ने मुझसे संपर्क किया क्योंकि वे एक संदेश भेजने के लिए किसी तरह का आयोजन करना चाहते थे कि सनातन समाज वहां जागरूक और संगठित है और मजार के खिलाफ कार्रवाई चाहता है." उन्होंने कहा कि बजरंग दल के प्रदर्शन में शामिल हुए लोग मजार के पास उनसे बात करना चाहते थे. “जब मैंने एक प्रदर्शनकारी की बाइट लेना शुरू किया, तो सिकंदर वहां पहुंच गया और बहस करने लगा. इंटरव्यू यूं ही रह गया और वे बहस करते रहे. अवस्थी ने एक बेहतरीन फॉलो-अप वीडियो का मौका देखा.

फ्लाईओवर के ठीक बगल में आदर्श नगर थाना है. इसका स्टेशन हाउस अधिकारी, सीपी भारद्वाज नाम का एक मोटा सा गंजा आदमी, जल्द ही बहस रुकवाने के लिए घटनास्थल पर पहुंचा. भारद्वाज टी-शर्ट और जींस में थे, लेकिन उनकी तेज आवाज में उनके आधिकारिक अधिकार की भावना थी. 2 अगस्त को यूट्यूब पर जारी ओ न्यूज हिंदी के इस घटना के वीडियो में वह अवस्थी से कहते दिख रहे हैं कि "उनसे सड़क के किनारे इस तरह के संवेदनशील मुद्दों को उठाने की उम्मीद नहीं है." अधिकारी एक हिंदुत्व कार्यकर्ता, विजय गडेरिया से यह भी कहते हैं कि उन्हें इसे एक "कड़ी चेतावनी" माननी चाहिए और अगर वे सड़क किनारे हंगामा करने के बजाए "कानूनी कार्रवाई" करते हैं तो उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी. (न तो भारद्वाज और न ही गडेरिया इस घटना के बारे में हमसे बात करना चाहते थे.)

जैसे ही बहस बढ़ी, भारद्वाज ने गडेरिया को हिरासत में ले लिया, ऐसे क्षण जिन्हें ओ न्यूज हिंदी के वीडियो में स्लो मोशन में तीन बार दोहराया गया था. कुछ अन्य लोगों को भी हिरासत में लिया गया था. पूरी घटना के दौरान अवस्थी गुस्से में भड़क गए थे. "मैंने एसएचओ को सिकंदर की पूरी क्लिप दिखाई और उससे पूछा कि अगर वह बोल सकता है, तो एक हिंदू भी क्यों नहीं बोल सकता?" अवस्थी ने हमें बताया. “क्या एक हिंदू को सवाल पूछने का अधिकार नहीं है? क्या मैं सवाल नहीं पूछ सकता? जब वह फ्लाईओवर पर चल रहा था तो मैंने इसे वीडियो में कम से कम दस बार दोहराया.”

कहासुनी के बाद भारद्वाज ने अवस्थी को थाने बुलाया. अवस्थी ने कहा, "उस दौरान कैमरे बंद थे. उन्होंने कहा कि वह हमारे समर्थन में हैं, लेकिन यह अच्छा होगा कि हमने जो वीडियो बनाया है उसे हटा दें. मैंने उनसे उन लोगों को रिहा करने के लिए कहा जिन्हें उन्होंने हिरासत में लिया था और बदले में मैं इसे हटा दूंगा. उसने जिन लोगों को हिरासत में लिया था, वे वहां अकेले कवरेज के लिए गए थे. अगर आप उन्हें यहां रखते हैं, तो अगली बार वे मुझे इंटरव्यू नहीं देंगे.” मैंने उनसे कहा. “यह मेरे संपर्कों को बर्बाद कर देगा. वे सोचेंगे कि वे यहां ओ न्यूज से बात करने के लिए आए थे और गिरफ्तार हो गए.” अवस्थी ने कहा कि जब वह घर पहुंचे तो उन्होंने वीडियो को हटाने का वादा किया और भारद्वाज ने उन्हें रिहा कर दिया, जिन्हें उन्होंने हिरासत में लिया था.

अवस्थी ने कहा , "मैं अपने स्टूडियो में लौट आया और बिना किसी एडिटिंग के मैंने पूरा वीडियो चैनल पर अपलोड कर दिया." वीडियो का शीर्षक था, “आजादपुर मजार में सिकंदर खान का सामना करता हिंदू शेर, पुलिस ने किया हस्तक्षेप, देखिए आगे क्या हुआ.” शीर्षक के बावजूद, वीडियो का फोकस अकेले भारद्वाज पर है. घटना के बाद उन्होंने जो सौहार्दपूर्ण बातचीत की, ऐसा लगता है कि अंतिम वीडियो पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. इसे वर्तमान में यूट्यूब पर 2 मिलियन से अधिक बार देखा गया है और यह अब तक ओ न्यूज हिंदी का सबसे अधिक देखा जाने वाला वीडियो है.

अगले ही दिन, किसी ने अवस्थी को एक ट्वीट का लिंक भेजा जिसमें हैशटैग #RemoveSHOBhardwaj था. वहीं खुद हैशटैग का उपयोग नहीं करते हुए, विधान सभा के पूर्व सदस्य कपिल मिश्रा सहित बीजेपी नेताओं ने मजार को नहीं गिराने के लिए पुलिस की आलोचना की. दक्षिण दिल्ली के पूर्व मेयर कमलजीत सहरावत ने भी भारद्वाज के बारे में ट्वीट किया. इस मुद्दे को जल्द ही दक्षिणपंथी समाचार मंच ऑपइंडिया द्वारा उठाया गया था. एशियन न्यूज इंटरनेशनल जैसी एजेंसियों को भी जल्द ही वीडियो मिल गया और इसने टीवी9 भारतवर्ष जैसे मुख्यधारा के समाचार चैनलों पर दैनिक सुर्खियां बटोरीं. अन्य समाचार संगठनों ने सीधे-सीधे व्याख्याकार लगा दिए. आजतक ने “दिल्ली पुलिस एसएचओ सीपी भारद्वाज ट्विटर पर क्यों ट्रेंड कर रहा है?” शीर्षक से एक स्टोरी चलाई. अवस्थी ने कहा कि ट्रेंड शुरू करने से उनका कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन चैनल ने ट्रैफिक को चालू रखने के लिए अपनी भूमिका निभाई. “हमने इस प्रवृत्ति से जुड़े लोगों का अनुसरण किया और यह बढ़ने लगा. अंग्रेजी में, हमारी अपनी वेबसाइट हम लोग ने एक रिपोर्ट की.”

मुख्यधारा की पत्रकारिता में बड़े नाम भी बहस में शामिल हुए. इंडिया टीवी के प्रधान संपादक रजत शर्मा ने 9 अगस्त को शाम के अपने प्रमुख समाचार शो में अवस्थी के वीडियो और सामाजिक सद्भाव के लिए सोशल मीडिया के खतरनाक होने की शिकायत करते हुए कई मिनट बिताए. शर्मा की कवरेज से अवस्थी नाराज थे. "उन्होंने इसे ऐसे दिखाया जैसे किसी यूट्यूबर सिर्फ पैसा कमाने के लिए यह सब साजिश रची," उन्होंने शिकायत की. ओ न्यूज हिंदी के शुरुआती वीडियो के एक हफ्ते बाद, भारद्वाज को असंबंधित आधार पर निलंबित कर दिया गया था. अवस्थी का कहना था कि यही वह क्षण था जिसने उन्हें साबित कर दिया कि वह अनुभवी रजत शर्मा और उनके चार दशक के लंबे करियर से बेहतर अपनी जमीन जानते हैं.

खबर इंडिया और इसी तरह के दूसरे चैनलों के लिए लोकप्रिय अड्डा पालिका बाजार है जो सस्ते कपड़े और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए प्रसिद्ध है. मुट्ठी भर यूट्यूब चैनलों का वहां दैनिक शो होता है, जिसमें कथित अजनबियों के समूह उस दिन की राजनीतिक और धार्मिक सुर्खियों के बारे में बहस करते हैं. इन्हें सराहनीय नियमितता के साथ शूट किया जाता है, बमुश्किल संपादित किया जाता है और अगले दिन अपलोड किया जाता है.

पालिका वाद-विवाद की कसौटी है भैयाजी कहिन, एक ऐसा शो जिसकी प्रतीक त्रिवेदी हर सप्ताह एंकरिंग करते हैं. त्रिवेदी करियर जर्नलिस्ट हैं, जिन्होंने अमर उजाला से 1990 के दशक में शुरुआत की थी. इसके बाद सहारा समय, आज तक और फिर इंडिया टीवी पहुंचे. भैयाजी कहिन को वर्तमान में न्यूज18 इंडिया में होस्ट किया गया है, जहां उनके शो ने दर्शाया है कि केवल आधे घंटे की जोरदार कसमेबाजी और जोश-खरोश के साथ गड़े मुर्दे उखाड़कर, कोई भी उद्यमी यूट्यूबर क्लिकों का धन पा सकता है और सामग्री मुद्रीकरण की सीढ़ी पर ज्यादा मेहनत और पूंजी वाले सघन वीडियो बनाने, ज्यादातर समाचार संस्थान जिसके आदी होते हैं, की तुलना में तेजी से चढ़ सकता है. खबर इंडिया और प्यारा हिंदुस्तान त्रिवेदी के तौर-तरीकों को अपनाने वाले शुरुआती लोगों में से थे.

धुर-दक्षिणपंथी हिंदी यूट्यूब पारिस्थितिकी तंत्र अपने वीडियो को ज्यादा से ज्यादा नफरती थंबनेल देने में कुख्यात है. औसत थंबनेल विपक्षी राजनेताओं और फिल्मी सितारों से लेकर वयस्क-फिल्मी सितारों तक सभी के बारे में सामग्री का वादा करते हैं. ये अक्सर इस्लामोफोबिक नफरती जुबान से भी भरे होते हैं.

हम 12 नवंबर की देर शाम पालिका बाज़ार पहुंचे, क्योंकि सप्ताहांत के खरीदारों की भीड़ बाजार के चौड़े फुटपाथों पर बहस करने वाले यूट्यूबरों के कई थूथनों के इर्द-गिर्द जुटना शुरू कर चुकी थी. हर चार पांच कदम पर उस शाम कम से कम पांच चैनल मौजूद थे, तीन में बीस से अधिक भीड़ थी. जबकि प्यारा हिंदुस्तान और खबर इंडिया गायब थे, जेटीवी इंडिया और द न्यूज 15 को उनके माइक्रोफोन पर लगे लोगो से पहचाना जा सकता था. हर चैनल के पास इन माइकों को थामे एक रिपोर्टर था और एक कैमरामैन अपने कैमरे के साथ एक वीडियो लाइट को अनिश्चित रूप से संतुलित कर रहा था.

अगले एक घंटे में हमने देखा कि घटनाओं का वही चक्र खुद को दोहराता है. एक रिपोर्टर किसी अजनबी के पास जाएगा और उनसे किसी राजनेता या नीति के बारे में उनकी राय पूछेगा. आगामी दिल्ली नगर निगम चुनाव के आलोक में उस दिन ज्यादातर सवाल इस बात को लेकर थे कि राज्य के मुख्यमंत्री आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने कैसा काम किया या गुजरात की तुलना में राष्ट्रीय राजधानी में सरकारी सेवाओं के बारे में. ज्यादातर राहगीरों ने बात नहीं की. जब कोई बात करता, जिसकी राय बीजेपी के लिए अस्पष्ट रूप से आलोचनात्मक लगती थी - या किसी अन्य पार्टी की सराहना करने वाली लगती- तो बाकी भीड़, जो किनारे पर धैर्यपूर्वक इंतजार कर रही थी, बहस करने के लिए मंडली में शामिल हो जाती, तब विरोध करने वालों को ललकारा जाता.

इस तरह के पहले चक्र में हमने एक मुस्लिम राहगीर को देखा जिसने कहा कि केजरीवाल ने शहर के स्कूलों में सुधार किया है. भीड़ ने उसे यह कहते हुए घेर लिया कि क्या वह व्यक्तिगत रूप से किसी स्कूल के अंदर गया है. अगले ही पल तनाव बढ़ने लगा. बातचीत के पांच मिनट बाद ही भीड़ ने वक्ता को जिहादी कहते हुए उसका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. महिला रिपोर्टर जो बातचीत को निर्देशित कर रही थी, हिंसा के डर से दूर हट गई. कैमरा बंद कर दिया गया और एक छोटी उपद्रवी भीड़ ने मुस्लिम व्यक्ति को भगा दिया. चैनल ने इसके बाद इस मंडली के सबसे मुखर लोगों के साथ आगे का इंटरव्यू किया, जो सभी हिंदू थे.

हमने पास खड़े एक आदमी से पूछा कि क्या आम तौर पर ऐसा ही हुल्लड़ होता है. "इस बार किसी को थप्पड़ या मार नहीं पड़ी," उन्होंने कहा. उन्होंने कहा कि वह पास के एक होटल में काम करते हैं और आमतौर पर हर शाम नाटक देखने आते थे. "चैनल किसी भी तरह की हिंसा शुरू होने से पहले अपने कैमरे बंद करने में बेहतर हो गए हैं." भले ही वह मुस्लिम थे, उन्होंने कहा कि बहस ने उन्हें परेशान नहीं किया क्योंकि उन्होंने वहां बोलने वाले किसी भी व्यक्ति को महत्व नहीं दिया. "मुझे यह सिर्फ मनोरंजक लगता है." हम होटल कर्मचारी जैसे अन्य नियमित गवाहों से मिले.

विकास चंद्र गुप्ता पहाड़गंज स्थित सैम बार में महाप्रबंधक हैं. "मैं हर शाम को जल्दी बंद कर देता हूं ताकि मैं आ सकूं और इसे देख सकूं," उन्होंने हमें बताया. "मैं कभी भी अखबार नहीं पढ़ता या टीवी पर समाचार नहीं देखता, यह मेरे लिए यह समझने के लिए काफी है कि वास्तव में हमारे देश में क्या चल रहा है. यह काम के बाद मेरा जीवन है. उन्होंने हमें नियमित रूप से भूदेव “मास्टरजी” शर्मा से मिलवाया. दिल्ली की पूर्वी सीमा पर करावल नगर के एक निजी स्कूल में कम वेतन पर अर्थशास्त्र के शिक्षक भूदेव शर्मा हर शाम ट्यूशन खत्म करने के बाद पालिका के लिए घंटे भर की मेट्रो की सवारी करते हैं. वह विनम्र और मृदुभाषी व्यक्ति हैं. लेकिन जिस क्षण वह कैमरे के सामने गए, वह पूरी तरह से एक अलग काया थे. अपनी उंगलियों पर विभिन्न धार्मिक ग्रंथों को सूचीबद्ध करते हुए, उन्होंने दर्शकों को समझाया कि इस्लाम उग्रवाद और हिंसा को बढ़ावा देता है और किसी भी प्रश्न को किनारे नहीं लगने देगा.

पालिका के अस्थिर वाद-विवाद में कई वक्ता स्कूली शिक्षा के अंतिम वर्षों के नाबालिग हैं. वीडियो के वायरल होने के बाद कुछ ने अपनी खुद की फॉलोइंग बढ़ा ली है. ऐसा ही एक नाबालिग, जिसे अपने वीडियो में "राष्ट्रवादी" उपनाम से जाना जाता है, उस दिन कई यूट्यूब चैनलों पर बाइट दे रहा था. उसकी प्रसिद्धि एक वायरल वीडियो से हुई, जिसमें वह दिल्ली के लोगों को मुफ्त पानी और सब्सिडी वाली बिजली के बदले वोट देने के लिए अपमानित कर रहा था, जबकि उत्तर प्रदेश के लोग "बुलडोजर का आनंद ले रहे थे." हम मूल वीडियो का पता नहीं लगा सके, लेकिन जब भी मुस्लिम-बहुल इलाकों के खिलाफ विध्वंस अभियान का आदेश दिया जाता है, तो यह सोशल मीडिया पर फिर से अपलोड हो जाता है.

जिस रात हम गए, उस रात "राष्ट्रवादी" को एक अधिक अनुभवी दक्षिणपंथी वक्ता ने किनारे खींचा और हर शूट से पहले क्या कहना है, इस पर सिखाया. अगर वह पटकथा से भटक जाता -अक्सर नारे लगाने या गालियां देने के लिए जो दर्शकों को अच्छी तरह से नहीं भाता—कैमरों के बंद होने के बाद उसे डांट पड़ती. जब हमने खबर इंडिया के मालिक-संपादक सुशील चौधरी से पूछा कि उनके हर दूसरे वॉक्स-पॉप वीडियो में एक ही वक्ता क्यों होते हैं, इस बारे में उन्होंने कहा, “इसका कारण यह है कि वे विशेष विषयों पर अच्छा बोलते हैं. इसीलिए."

नियमित वक्ता, जैसे नाबालिग, इन यूट्यूब चैनलों की लोकप्रियता के केंद्र में हैं. उन्हें शायद ही कभी नाम से पेश किया जाता है, लेकिन वे आसानी से तैयार की गई स्टीरियोटाइप बहस में पड़ जाते हैं. "राष्ट्रवादी" नाराज युवाओं का प्रतिनिधित्व करता है जो बिष्ट की प्रशंसा करते हैं और महसूस करते हैं कि सरकार को मुसलमानों के खिलाफ ज्यादा कठोर रुख अपनाना चाहिए. "मास्टरजी" राज्य सरकार की आवश्यक सेवाएं प्रदान करने में विफलताओं से नाराज मध्यवर्गीय व्यक्ति, या असंतुष्ट शिक्षक की शिकायत की नुमाइंदगी करते हैं कि युवाओं का ब्रेनवॉश कैसे किया जा रहा है. पात्रों के इस सामान्य वर्ग में अन्य "मुस्लिम बहन", "राष्ट्रवादी मौलवी", "असली किसान" और “हरियाणवी लड़का'' हैं.

इनमें से कई बीजेपी नेताओं के करीबी हैं. एक व्यक्ति को अक्सर "शार्प टीनएजर" के रूप में पेश किया जाता है, जिसे अक्सर ख़बर इंडिया, ओ न्यूज हिंदी, हेडलाइंस इंडिया और द न्यूजपेपर के वीडियो में देखा जाता है. वह न्यूज18 के भैयाजी में भी नजर आ चुका है. अपने खुद के एक वीडियो में, वह "भारत माता की जय" का जाप करने के लिए एक बूढ़े मुस्लिम व्यक्ति को धमकाते हुए एक समूह का नेतृत्व करते हुए दिखाई दे रहा है. “शार्प टीनएजर” की एक रिवर्स इमेज सर्च से हमें उसका नाम और सोशल-मीडिया हैंडल मिले. 16 साल इस टीनएजर ने बीजेपी की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष आदेश कुमार गुप्ता सहित कई वरिष्ठ बीजेपी नेताओं और सांसदों के साथ तस्वीरें साझा की हैं. उनके सभी हालिया पोस्ट शहर के नगरपालिका चुनावों में पार्टी के लिए डोर-टू-डोर प्रचार के हैं.

"मुस्लिम बहन" की भूमिका अक्सर निघत अब्बास द्वारा निभाई जाती है जो बीजेपी की आधिकारिक प्रवक्ता हैं. अगस्त 2020 में, प्यारा हिंदुस्तान ने अब्बास के साथ एक वीडियो इंटरव्यू डाला जिसका शीर्षक था "15 अगस्त के दिन इस मुस्लिम बहन ने पीएम मोदी योगी की दिल खोलकर तारीफ,ओवैसी कांग्रेस को हिला डाला" प्यारा हिंदुस्तान की पेशकश के उलट, इस माहौल के दूसरे चैनलों के कम से कम कुछ वीडियो में उनका नाम लिया गया है. उदाहरण के लिए ओ न्यूज हिंदी के पास एक वीडियो है जिसका शीर्षक है “ओवैसी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दी चुनौती, निघत अब्बास ने दिखाई उसे जगह. किसी भी वीडियो में यह जिक्र नहीं है कि अब्बास पार्टी की प्रवक्ता हैं. यह खास तरीका यूट्यूब चैनलों से भी आगे तक फैला हुआ है. आज तक ने निघत अब्बास को कई शो के पैनल में "सामाजिक कार्यकर्ता" के रूप में पेश किया है. न्यूज 18 इंडिया के भैयाजी कहिन पर, उन्हें "राजनीतिक विश्लेषक" के रूप में पेश किया जाता है. अब्बास ने हमें बताया कि वह बीजेपी की प्रवक्ता थीं, लेकिन वह एक “एनजीओ स्त्री रोशनी चलाती हैं, जिसके तहत मैं और मेरी टीम मुस्लिम महिलाओं के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं और यही वजह है कि वे अक्सर मुझे एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में संदर्भित करते हैं.” उन्होंने यह भी कहा, "पत्रकार मेरे साथ फोन या सोशल मीडिया पर जुड़े हुए हैं जहां यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि मैं बीजेपी प्रवक्ता हूं." न तो आज तक न ही न्यूज 18 ने अब्बास की कवरेज के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब दिए .

अवस्थी ने इस बात से न तो इनकार किया कि वीडियो भ्रामक थे न ही इसके लिए कोई बहाना बनाया. "हम नामों का उपयोग नहीं करते हैं क्योंकि इससे हमें ज्यादा दर्शक मिलते हैं," उन्होंने कहा. “इस तरह के शीर्षकों से दर्शकों में उनके बारे में जानने का उत्साह आता है और वीडियो पर बने रहने में मदद मिलती है. इसमें एक सरप्राइज फैक्टर काम करता है. कोई क्यों देखेगा निघत अब्बास का वीडियो अगर हम उन्हें पहले ही पता चल जाए की वह बीजेपी प्रवक्ता हैं? यह बेहतर है कि हम उन्हें ''मुस्लिम बहन'' के रूप में वर्णित करें.

इन यूट्यूब चैनलों पर बोलने वालों के चारों ओर छोटे-छोटे गुट बन जाते हैं, चाहे वे सत्ताधारी दल के पदाधिकारी हों या छोटे प्रभावशाली व्यक्ति जो किसी वायरल वीडियो के बाद प्रसिद्धि के लिए कूद पड़ते हैं. यह प्रोत्साहन कई लोगों को हिंदू जनता की मुखर आवाज बनने के लिए आकर्षित करने के लिए काफी है, जिस आवाज को कथित तौर पर मुख्यधारा के मीडिया द्वारा खामोश कर दिया गया है.

ये चैनल बीजेपी के पदाधिकारियों को सड़क पर नियमित लोगों के रूप में पेश करते हैं. 2020-21 के किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान द न्यूजपेपर और खबर इंडिया द्वारा बनाए गए वीडियो इसके अच्छे उदाहरण हैं. (अकेले खबर इंडिया में किसानों के विरोध पर दो प्लेलिस्ट हैं, 267 और 123 वीडियो हैं.) इसका उद्देश्य यह दिखाना था कि किसान आंदोलन माओवादी, इस्लामी या सिख उग्रवाद के लिए एक मोर्चा था और रोज़मर्रा के किसानों से इसे कोई समर्थन नहीं मिला. जबकि द न्यूजपेपर के कुछ वीडियो अधिक दूरगामी दावे करते दिखाई दिए - एक वीडियो की थंबनेल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पूर्व पोर्न-फिल्म स्टार मिया खलीफा के बीच छिपे हुए लिंक को उजागर करने का वादा किया गया है - उनकी नियमित सामग्री, जो बहुत अधिक लोकप्रिय थे वह, "क्रोधित किसानों" के वॉक्स-पॉप थे. 

जनवरी 2021 के अंत में, उत्तर प्रदेश के साथ दिल्ली की सीमा पर गाजीपुर विरोध स्थल पर प्रदर्शनकारी किसानों की संख्या घट रही थी. गाजियाबाद जिला प्रशासन द्वारा प्रदर्शनकारियों को अल्टीमेटम जारी करने के बाद दिल्ली और उत्तर प्रदेश पुलिस बलों ने विरोध स्थल के आसपास बड़े पैमाने पर नई तैनाती की थी. 28 जनवरी को आंदोलन स्तर के सबसे बड़े संगठन भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने उत्तर प्रदेश के उन किसानों से भावनात्मक अपील की, जो अगले दिन तक हजारों की संख्या में विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए. 

सिंघू बॉर्डर से खबर इंडिया का 29 जनवरी का वॉक्स-पॉप वीडियो, आस-पास के चालीस गांवों के स्थानीय लोगों को दिखाने का दावा करता है, जिन्होंने पहले विरोध का समर्थन किया था, लेकिन बाद में उनके खिलाफ हो गए थे क्योंकि विरोध प्रदर्शन "राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों" को बढ़ावा दे रहे थे. कार्यक्रम को कवर कर रहे खबर इंडिया के रिपोर्टर ने कहा कि स्थानीय लोगों ने प्रदर्शनकारी किसानों को धरना खत्म करने के लिए 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया था. वीडियो में एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा, "इन लोगों ने दंगे फैलाए हैं और हमारे देश का अपमान किया है, इसलिए वे किसान नहीं हो सकते." वीडियो को कई प्लेटफॉर्म पर व्यापक रूप से साझा किया गया था. एक अन्य "स्थानीय" वक्ता सोहन लाल थे, जो बीजेपी की युवा शाखा भारतीय जनता युवा मोर्चा की दिल्ली इकाई के एक नेता हैं. वीडियो में लाल कहते हैं, "एक किसान देश की सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट नहीं करेगा, सेना के जवानों को नहीं मारेगा और पुलिस पर तलवारों से हमला नहीं करेगा. एक किसान अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्वक विरोध करता है. उन्हें खालिस्तान द्वारा भारी धन मुहैया कराया जा रहा है.” फिर भी इन वीडियो में एक अन्य वक्ता विनोद शर्मा हैं, जो सुदर्शन वाहिनी नामक एक अति-दक्षिणपंथी हिंदू संगठन का नेतृत्व करते हैं, जिसका उद्देश्य मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार करना है. लाल उस दिन अखबारों के वोक्स पॉप में एक वक्ता के तौर पर भी दिखे, जबकि शर्मा पीछे से देख रहे हैं. किसी भी वीडियो में सत्ताधारी पार्टी से उनके सीधे राजनीतिक जुड़ाव को स्पष्ट नहीं किया गया है. लाल और शर्मा ने वीडियो से संबंधित सवालों का जवाब नहीं दिया. भाजयुमो ने भी सवालों का जवाब नहीं दिया. 

उसी दिन, बीजेपी समर्थकों की भीड़ ने स्थानीय किसानों के रूप में सिंघू बॉर्डर पर एक पुलिस बैरिकेड को पार किया और प्रदर्शनकारी किसानों पर हमला किया. दोनों पक्षों में कई को चोटें आईं. उस दिन एक वीडियो में खबर इंडिया के चौधरी भीड़ से पूछते हैं, "क्या देश को तोड़ने वालों को बर्दाश्त किया जाएगा?" स्थानीय लोगों के रूप में प्रस्तुत करने वाले उन्हें बताते हैं, “उन्होंने हमारे झंडे का अपमान किया. हम उस अपमान का बदला जरूर लेंगे और सीमा को खाली कराएंगे. जय श्री राम. उन्हें लाठियों से खदेड़ा जाएगा.” भीड़ चिल्लाती है, "देश के गद्दारों को गोली मारो...." वीडियो को तब से हटा दिया गया है, लेकिन चौधरी के ट्विटर अकाउंट पर इसके कुछ हिस्से अभी भी उपलब्ध हैं . 

स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया, जिन्होंने बड़े पैमाने पर किसान आंदोलन को कवर किया था, घटना के दौरान भी मौजूद थे. उन्होंने हमें बताया कि चौधरी ने ही भीड़ को उकसाया था. पुनिया ने कहा, "वह भीड़ के साथ थे और किसानों को खालिस्तानी कह रहे थे." फ़ैक्ट-चेकिंग संगठनों ने एक विस्तृत जांच की, जिससे पता चला कि भीड़ में शामिल कई सदस्य बीजेपी कैडर थे. हालांकि, यह खबर इंडिया का "स्थानीय लोगों" और विरोध करने वाले किसानों के बीच संघर्ष का लेखा-जोखा था जिसने मुख्यधारा के प्रेस के बीच अपनी जगह हासिल की. टाइम्स नाउ ने हमलावरों को "स्थानीय लोगों के रूप में संदर्भित किया जो प्रदर्शनकारियों द्वारा क्षेत्र को खाली करने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं." जी न्यूज ने भी यही रिपोर्ट की थी. 

मई में वर्त्तमान भारत का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें रिपोर्टर दिल्ली के शाहीन बाग में राहगीरों से पूछता है कि क्या वे बांग्लादेश से थे. बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा साझा किए जाने के बाद, कुछ ही घंटों में वीडियो को 10 मिलियन से अधिक बार देखा गया. दो दिन बाद दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने इस जगह पर एक विध्वंस अभियान चलाया.

इस साल मई में, मुख्य रूप से फेसबुक आधारित वोक्स-पॉप चैनल वर्त्तमान भारत का एक वीडियो वायरल हुआ था. रिपोर्टर शाहीन बाग से गुजर रहे कई राहगीरों से पूछता नजर आ रहा है वे लोग कहां से हैं. सबसे तुरंत जवाब मिलता है कि वे बांग्लादेश से हैं. वीडियो के नीचे लिखा है, “खुलासा, कैसे शाहीन बाग बांग्लादेशियों का गढ़ है.” कुछ ही घंटों में, वीडियो को 10 मिलियन से अधिक बार देखा गया- वर्तमान में इसके 22 मिलियन दर्शक हैं. वीडियो से क्लिप किए गए फुटेज को सुरेंद्र पूनिया समेत बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं ने शेयर किया था. पूनिया ने वीडियो को ट्वीट करते हुए कहा, "रोहिंग्या -बांग्लादेशी घुसपैठिए दिल्ली में खुलेआम घूम रहे हैं!" पार्टी के पूर्व प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अपने फेसबुक पर वीडियो अपलोड किया और लिखा: " रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों की 100 प्रतिशत संपत्ति को जब्त करने और 10-20 साल की कैद देने के लिए कानून बनाना अत्यावश्यक है." फेसबुक पर, इसे पहले तीन दिनों में दो लाख से अधिक बार साझा किया गया और 18 मिलियन बार देखा गया. सवालों के जवाब में उपाध्याय ने वीडियो का लिंक मांगा. हमारे भेजे जाने के बाद उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

आल्ट न्यूज के सह संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर ने हमें बताया कि धुर-दक्षिणपंथी यूट्यूब इकोसिस्टम के इस और इसी तरह दूसरे वीडियो आम तौर पर मिलने वाली गलत सूचनाओं से अलग हैं. उन्होंने कहा, "फर्जी खबरों को रोकना आसान है, लेकिन उन प्रचारों को उजागर करना कठिन है, जो कपटपूर्ण तरीके से तथ्यों का दुरुपयोग करते हैं. इस वीडियो को ही लीजिए, क्या वीडियो में दिख रहे लोग बांग्लादेशी हैं? हां. क्या जिस जगह यह वीडियो बनाया जा रहा है वह शाहीन बाग है? हां. हालांकि, वे पर्यटक हैं और अवैध अप्रवासी नहीं हैं. वीडियो में इसका जिक्र नहीं है. इस तरह की सामग्री में तथ्यों को चुनिंदा तरीके से पेश करना इसे मुख्यधारा के अधिकांश मीडिया संगठनों के कमजोर संपादकीय फिल्टर से आसानी से पार करने की इजाजत देता है.

 23 जुलाई 2021 को प्यारा हिंदुस्तान ने मदनपुर खादर के एक जीर्ण-शीर्ण शिविर में कई रोहिंग्या शरणार्थियों का इंटरव्यू लिया. वहां के शरणार्थियों ने एक दिन पहले ही उत्तर प्रदेश में अपना अस्थायी शिविर खो दिया था. प्यारा हिंदुस्तान के रिपोर्टर ने शरणार्थियों को यह स्वीकार करने के लिए बदनाम किया कि उन्हें दिल्ली सरकार से मदद मिली है. कुछ लोगों ने पानी, टेंट और सीमित बिजली मिलने की बात स्वीकार की, लेकिन भाषा की थोड़ी समझ के साथ, वे प्रश्नों के बारे में अनिश्चित और अनुभव से अभिभूत दिखे. कई लोगों ने उन्हें जो कुछ भी मिला है, उसके बारे में बात की, जिसमें सहायक व्यक्तियों या गैर-सरकारी संगठनों से मिली मदद भी शामिल है. दर्शकों को यह विश्वास दिलाने के लिए वीडियो को संपादित किया गया था कि दिल्ली सरकार द्वारा हर जरूरत का ध्यान रखते हुए शरणार्थी आलीशान विलासिता का जीवन जी रहे हैं. उसी शिविर में सेट किया गया एक फॉलोअप वीडियो भी उनके द्वारा अगले दिन प्रकाशित किया गया था.

वीडियो में किए गए दावों को ऑल्ट न्यूज ने लगभग तुरंत ही खारिज कर दिया था, लेकिन इससे इसके वायरल प्रसार को रोकने में बहुत कम मदद मिली. बीजेपी दिल्ली के आधिकारिक हैंडल ने वीडियो साझा किया, जैसा कि बीजेपी के एक प्रवक्ता तजिंदर बग्गा ने किया, जिसने एक साथ लगभग अस्सी हजार व्यू बटोरा. केजरीवाल पर रोहिंग्या समुदाय की सहायता करने का बीजेपी का आरोप एक प्रमुख राजनीतिक विवाद में बदल गया जो अगले महीने प्राइमटाइम समाचार बन गया.

शाहीन बाग के "बांग्लादेशियों का गढ़" बनने के झूठे वायरल वीडियो दावे के बाद, नगर निगम ने 10 मई को धरना स्थल पर विध्वंस अभियान चलाने का प्रयास किया. चिंता की बात यह है कि कुछ दिन पहले इसी चैनल ने एक वीडियो बनाया था जिसमें वादा किया गया था, "बुलडोजर चलेगा और शाहीन बाग की होगी सफाई!” अमल केएस / हिंदुस्तान टाइम्स

वर्तामान भारत का शाहीन बाग और प्यारा हिंदुस्तान का मदनपुर खादर वीडियो इस्लामोफोबिक सामग्री को यूट्यूब से मुख्यधारा के प्लेटफॉर्म पर लाने में बीजेपी नेताओं की भूमिका को प्रदर्शित करते हैं. पार्टी का नेतृत्व और धुर-दक्षिणपंथी सामग्री बनाने वालों के सितारे पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंध साझा करते हैं. अवस्थी ने हमें बताया कि जहां तक उनकी जानकारी है, बीजेपी इनमें से किसी भी क्रिएटर को सीधे भुगतान नहीं करती है. "बेशक, कुछ व्यक्तिगत नेता कुछ मामलों में खुद को चैनल पर प्रदर्शित करने के लिए भुगतान कर सकते हैं, लेकिन इससे परे प्रणालीगत भुगतान या ऐसा कुछ भी नहीं है," उन्होंने कहा. 

फिर भी, उनके वीडियो को बीजेपी नेताओं से जिस तरह का प्रचार मिलता है, उनकी व्यक्तिगत आय मुख्यधारा के मीडिया में उनके समकक्षों के वेतन से कहीं अधिक है. अवस्थी अब एक उभरते हुए व्यवसायी के भरोसे के साथ बोलते हैं. उन्होंने हमें बताया कि ओ न्यूज हिंदी एक महीने में 1 लाख रुपए से भी कम कमाता है, फेसबुक से मासिक आय कभी-कभी 5 लाख रुपए तक पहुंच जाती है. ओ न्यूज हिंदी का द्वारका में एक आरामदायक कार्यालय है और आसानी से अपने पत्रकारों के लिए यात्रा का खर्च उठा सकता है. यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि अवस्थी के प्रतिस्पर्धियों के लिए चुनावी सर्किट सबसे लाभदायक दौड़ है. उनकी टीम ने शुरुआती जोड़ी से विस्तार किया है जिन्होंने सभी शूटिंग, संपादन, रेंडरिंग और खुद ही अपलोड भी किया. उन्होंने हमें बताया कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में वोक्स पॉप के सीजन की योजना बनाई गई है. लेकिन इन्हें वह आसान मानते थे. "मैंने 2024 पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है, हम पहले से ही उस चुनाव के लिए सामग्री बना रहे हैं." अन्य चैनलों ने भी अपनी 2024 यूट्यूब प्लेलिस्ट भरना शुरू कर दिया है.

बीजेपी के आधिकारिक सोशल-मीडिया हैंडल, साथ ही साथ उनके नेता, अपनी सामग्री को बढ़ाकर एहसान वापस करने के लिए तत्पर हैं. केवल आठ दिनों की अवधि में, हमने पाया कि बीजेपी दिल्ली इकाई के ट्विटर हैंडल ने उन चैनलों के कम से कम नौ वीडियो साझा किए जिनका हमने उल्लेख किया है. जैसे-जैसे नगरपालिका चुनाव नजदीक आ रहे थे, ये मुख्य रूप से नागरिक मुद्दों, अस्पतालों और बिजली की कमी के बारे में थे. अवस्थी ने कहा , "यह दोनों संस्थाओं के लिए पारस्परिक रूप से सहायक है. बीजेपी को हमारी रिपोर्टिंग से उनके सोशल मीडिया के लिए सामग्री मिलती है और जब वे वीडियो वायरल करते हैं, तब भी हमारे चैनल का नाम और लोगो बना रहता है. यह हमारी पहुंच में हमें लाभ पहुंचाता है.” 

मुख्यधारा की मीडिया में मंच की कमी के साथ, हिंदू अतिवादियों के कुछ सबसे चरम तत्वों को डिजिटल मीडिया में घर मिल गया है.भाजयुमो के पूर्व नेता संजीव भाटी, जो अब हिंदू सेना नामक एक संगठन का नेतृत्व करते हैं, ऐसी ही एक हस्ती हैं. मई 2022 में एक वायरल व्हाट्सएप मैसेज में दावा किया गया था कि शिर्डी साईं बाबा, एक "जिहादी" थे. एक अन्य वायरल संदेश में आरोप लगाया गया है कि वह झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की हत्या की साजिश में शामिल थे. 

"हम एक जागरूकता अभियान चला रहे हैं," भाटी अपने फेसबुक पेज पर जल्द ही अपलोड किए गए एक वीडियो में कहते हैं . “हमारे मंदिरों में एक जिहादी स्थापित किया गया है- चांद मियां- जिसे तुम साई कहते हो और उसकी पूजा करते हो. इस अभियान के तहत हम बहुत जल्द जिहादी साई चांद मियां का हमारे मंदिरों से सफाया करेंगे. सबसे पहले, हम मंदिरों में जाएंगे और पुजारियों से साईं की मूर्तियों को हटाने के लिए बात करेंगे. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो हम साईं की मूर्तियों को तोड़ने और फेंकने के लिए हथौड़े और छेनी लेकर मंदिरों के अंदर जाएंगे.” एक निम्न वीडियो ऐसी मूर्ति को हटाने को दर्शाता है. भाटी ने दक्षिणपंथी यूट्यूब चैनलों पर एक वक्ता के रूप में अपना आना-जाना बढ़ाया और प्यारा हिंदुस्तान, ओ न्यूज हिंदी और एचसीएन के वीडियो में दिखाई दिए. हम  टिप्पणी के लिए संजीव भाटी तक नहीं पहुंच सके.

ऐसे अन्य कार्यकर्ता हैं जिन्हें यूट्यूब अर्थव्यवस्था ने प्रोत्साहित किया है और प्रसिद्ध बनाया है. इनमें राम त्यागी जैसे लोग शामिल हैं, जिन्होंने एक वीडियो प्रसारित किया, जिसमें एक भीड़, जिसने बाद में एक चर्च में तोड़फोड़ की, "देश के गद्दारों को गोली मारो" के नारे लगा रही थी; पिंकी चौधरी, जिन्होंने 5 जनवरी 2020 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पर हुए हमले की जिम्मेदारी ली थी; और रागिनी तिवारी, जिन्होंने फेसबुक लाइव इवेंट चलाए, जहां उन्होंने पूर्वोत्तर दिल्ली में हिंसा के दौरान भीड़ को उकसाया, जिसके कारण 53 लोगों की मौत हुई, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम थे. त्यागी ने सवालों का जवाब नहीं दिया. 

मदनपुर खादर में जीर्ण-शीर्ण रोहिंग्या शरणार्थी शिविर में एक अस्थायी घर का प्रवेश द्वार. यूट्यूब चैनल प्यारा हिंदुस्तान के एक वायरल वीडियो के बाद, जिसे यह दिखाने के लिए संपादित किया गया था कि दिल्ली सरकार शरणार्थियों की हर जरूरत का ध्यान रख रही थी, बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और आप के नेतृत्व वाली राज्य सरकार दोनों ही शरणार्थियों को सुरक्षित रूप से बसाने की योजना से मुकर गए. सलमान अली/ हिंदुस्तान टाइम्स

जबकि मुख्यधारा का मीडिया बीजेपी को अपना आधिकारिक संदेश साझा करने की इजाजत देता है, पार्टी के कैडर और मुख्य समर्थन आधार खास तौर पर इस डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र के दर्शक हैं. यह बड़ी मात्रा में विशेष रूप से हिंदुत्व सामग्री को दर्ज कर सकता है जिसे मुख्यधारा के सबसे घृणित मंच भी ठीक से प्रसारित नहीं कर सकते हैं. इस अक्टूबर में ही, खबर इंडिया ने अस्सी से अधिक वीडियो जारी किए, जबकि प्यारा हिंदुस्तान ने 118 जारी किए. इनमें से प्रत्येक वीडियो, जो आम तौर पर लगभग दस मिनट तक चलता है, को व्हाट्सऐप और फेसबुक सहित सभी प्लेटफार्मों पर प्रसारित होने वाले छोटे टुकड़ों में भी काटा जा सकता है. बीजेपी ने अपने चुनाव अभियानों के लिए बड़ी मेहनत से समूहों का निर्माण किया. जब इस तरह के वीडियो वायरल होते हैं, तो पार्टी नेतृत्व या तो कार्रवाई करने या अपने जनाधार को अलग करने के लिए तैयार हो जाता है. 

अवस्थी का मानना है कि धुर-दक्षिणपंथी यूट्यूब की दुनिया में उनकी यात्रा अपेक्षाकृत विशिष्ट है. पत्रकारिता में उनका पहला प्रवेश केवल तीन साल पहले हुआ था, जब उन्होंने अपने स्नातक पाठ्यक्रम के पहले सेमेस्टर को पूरा किया था. उन्होंने हमें बताया कि वह शुरू में राजनीति विज्ञान का अध्ययन करना चाहते थे, लेकिन एक प्रतिष्ठित कॉलेज में एडमीशन पाने के लिए नंबर कम थे. घर की आर्थिक स्थिति अस्थिर होने के चलते एक एनजीओ और अपने स्कूल के शिक्षकों से पैसा जुटाने में जूझने के बाद, उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्रकारिता पाठ्यक्रम में दाखिला लिया. 

उन्होंने कहा कि छह महीने के कोर्स के बाद उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें क्षेत्र में अनुभव की जरूरत है. उनका पहला उद्यम एक्सप्रेस इंडिया न्यूज नामक एक वेबसाइट था जो वेब डिजाइन और होस्टिंग के साथ अवस्थी के संघर्ष के एक महीने के बाद बंद हो गया. "लेकिन मुख्य मुद्दा यह था कि हमारे पास कोई राजस्व नहीं था," उन्होंने हमें बताया. "एक गलत धारणा है कि सिर्फ वेबसाइट बना लेने से डॉलर में भारी कमाई हो सकती है. मुझे एहसास हुआ कि ऐसा नहीं था. यह सच नहीं है. हम उस समय यह भी नहीं जानते थे कि बाजार में क्या चीजें काम करती हैं. अवस्थी को उम्मीद थी कि एक यूट्यूब चैनल वेबसाइट की खराब आर्थिक हालत को दूर करने में मदद कर सकता है और इसलिए उन्होंने अपने एक दोस्त के घर से कुछ महीनों तक चला भी, जिसे उन्होंने एक अस्थायी स्टूडियो में बदल दिया था. यह चाल भी कामयाब नहीं हुई. हमें व्यूज नहीं मिल रहे थे जबकि मैं अपना पैसा लगाता रहा.”

अवस्थी ने अपने पहले उद्यम से जो सबक सीखा, वह देश के मीडिया के माहौल को बता रहा है. उन्होंने हमें बताया, "इस काम को करने के लगभग दो सालों में मुझे एहसास हो गया कि अगर आप मीडिया में काम करना चाहते हैं, तो नैतिकता का पालन करने के लिए पैसे की उम्मीद करना बंद कर दें. इसके बजाय, पैसे कमाने के लिए कुछ करें और अपने मीडिया उपक्रमों का उपयोग पूरी तरह से समाचार प्रसारित करने के लिए करें." अपने कॉलेज के दूसरे वर्ष में, अवस्थी ने आम चुनाव को लेकर समानांतर रूप से आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी के लिए प्रचार वीडियो पर काम करना शुरू कर दिया. इस सामग्री का अधिकांश भाग खराब तरीके से बनाए गए वोक्स-पॉप वीडियो थे. “अभियान मेरे चैनल का स्वतंत्र काम था. मैं इस मॉडल का पालन करते हुए खुद को बनाए रखने की कोशिश कर रहा था.” इवेंट की वीडियोग्राफी से भी उन्हें प्रति शूट करीब दो हजार रुपए मिले. इस बीच, मुंबई में एक कंटेंट क्रिएटर ने भी उन्हें "दिल्ली में राष्ट्रीय मुद्दों पर जनमत वीडियो" बनाने के लिए अनुबंधित किया, जिसने कोविड-19 लॉकडाउन के इस परियोजना पर ब्रेक लगाने से पहले प्रति पीस सात सौ रुपए तक का भुगतान किया. 

लॉकडाउन के दौरान अवस्थी की मुलाकात ओ न्यूज हिंदी के बिहार स्थित मालिक आनंद शंकर झा से हुई. अवस्थी ने कहा, "उन्होंने मेरे साथ एक चैनल बनाने की अपनी योजना साझा की, लेकिन उस समय उनके पास चैनल पर काम करने के लिए कोई टीम नहीं थी." झा को वीडियो का सीमित अनुभव था और वह पत्रकार नहीं थे, लेकिन उन्होंने कई फेसबुक पेज और एक छोटा ब्लॉग और एक कंटेंट राइटिंग कैरियर का प्रबंधन किया. "उन्होंने मुझे यह भी बताया कि उनके पास पहले से ही एक स्थापित दर्शक वर्ग है और केवल एक टीम की जरूरत है. उन्होंने मुझे बताया कि मेरी टीम”—बस अवस्थी और एक कैमरापर्सन जो उनके सहपाठी थे-“में काम करने की प्रतिभा थी. इसलिए, हम मिले और हम लोग नाम से एक चैनल शुरू करने का फैसला किया. अक्सर स्टॉक वॉलपेपर और तस्वीरों का उपयोग करने के लिए यूट्यूब पर बार-बार कॉपीराइट हमलों के कारण हम जूझ रहे थे, इसलिए दोनों ने ओ न्यूज हिंदी को अपना प्रमुख उद्यम बनाने की सोची. अवस्थी को इसका प्रबंध संपादक बनाया गया था. उन्होंने मुख्य रूप से वोक्स-पॉप वीडियो के रूप में ग्राउंड रिपोर्टिंग पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया. 

अवस्थी ने मुझे बताया, "माहौल में ढलने में मुझे लगभग चार महीने लग गए." प्यारा हिंदुस्तान, खबर इंडिया और हेडलाइंस इंडिया जैसे नामों की धुर-दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं की दुनिया में एक निश्चित गौरव था और उनके एंकरों के चेहरों दर्शकों को याद थे, ऐसा ओ न्यूज हिंदी के साथ नहीं था. उन्होंने कहा, "उन चार महीनों में जब हम इंटरव्यू के लिए जाते थे तो वे हमेशा हमारे चैनल के नाम के बारे में पूछताछ करते थे क्योंकि वे हमें पहचान नहीं पाते थे. ओ न्यूज हिंदी नाम सुनने के बाद, वे हमें खारिज कर देते थे क्योंकि हमारे चैनल के पास कोई विश्वसनीय क्रेडेंशियल नहीं था. 'क्या यह कोई चैनल भी है?' वे मजाक करते. लेकिन अवस्थी के लिए चीजें जल्दी बदल गईं. “अब कम से कम जब भी हम हिंदू सनातन संस्कृति से संबंधित संगठनों और आयोजनों में जाते हैं तो लगभग हर कोई हमें वहां पहचानता है.'' 

नरसंहार के खुले आह्वान के साथ बड़े पैमाने पर सभाएं, कभी-कभी मुसलमानों के संपूर्ण बहिष्कार की शपथ लेने वाले हजारों लोगों के साथ, उत्तर भारत में आश्चर्यजनक रूप से नियमित तौर पर होने लगी थीं, लेकिन मुख्यधारा के मीडिया संगठन शायद ही उनके बारे में जानते थे. आमतौर पर केवल खबर इंडिया, ओ न्यूज हिंदी और हिंदुस्तान 9 जैसे चैनलों ने इन्हें कवर किया था. ओ न्यूज हिंदी ने 9 अक्टूबर को दिल्ली की सीमा से सटे सुंदर नगरी में "विराट हिंदू सभा" नामक एक प्रमुख नफरती भाषण सभा को कवर किया था. सभा में बीजेपी सांसद डाॅ परवेश वर्मा ने मुस्लिम समुदाय के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान किया. जब अवस्थी हिंदू सांस्कृतिक कार्यक्रमों को कवर करने की बात कर रहे थे, तो वे इन्हीं घटनाओं का जिक्र कर रहे थे. ओ न्यूज हिंदी के वीडियो के वायरल होने के बाद ही ज्यादातर मेनस्ट्रीम मीडिया ने इस घटना की खबर दी. 

3 अप्रैल को, उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में एक "हिंदू महापंचायत" आयोजित की गई, जिसमें उग्रवादी हिंदू पुजारी यति नरसिंहानंद ने कहा कि हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ हथियार उठाना चाहिए. उसने भीड़ से कहा, “अब जाओ और बच्चे पैदा करो और अपने बच्चों को लड़ने के लायक बनाओ.” कार्यक्रम को कवर करने गए मुख्यधारा के संगठनों के पत्रकारों पर हमला किया गया, ओ न्यूज हिंदी ने लगभग हर भाषण के वीडियो बनाए

अवस्थी ने हमें अपने छोटे पत्रकारिता करियर में दूसरे बड़े पल के बारे में बताया. उन्होंने कहा, 'हम करीब एक साल से इसका इंतजार कर रहे थे. आजादपुर फ्लाईओवर पर भारद्वाज के साथ अपने टकराव के कुछ दिनों बाद, अवस्थी ने सुबह-सुबह अपने उपकरण पैक किए और भारत जोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए जंतर मंतर की ओर चल पड़े. इसमें हिंदुत्व के कई सुपरस्टार नफरती भाषणबाज उपस्थित थे. “पूरे भारत में, संदेश था और लोग कह रहे थे कि पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ , अश्विनी उपाध्याय और प्रीत भाई शामिल हो रहे हैं,” उन्होंने उत्साह से कहा. सभा का उद्देश्य "हिंदू-विरोधी औपनिवेशिक कानून व्यवस्था, जो भारत को हिंदू राष्ट्र बनने से रोकती है" का विरोध करना था. सभा से पहले बड़े पैमाने पर सोसल-मीडिया अभियान चलाया गया था. अवस्थी इसके बारे में मुतमइन थे. “अगर मैं जाता, तो मैं एक ही दिन में कम से कम चार से पांच वीडियो बनाता. और यह अच्छा कंटेंट होता.'' 

इस आम सभा के शुरुआती घंटे अपेक्षाकृत शांत थे, लेकिन जल्द ही जुड़ते-जुड़ते मामला नरसंहार के आह्वानों तक पहुंच गया. दोपहर तक, वक्ता और उनके विशाल दर्शक "जब मुल्ले काटे जाएंगे, राम राम चिल्लाएंगे" के नारे लगा रहे थे'' नेशनल दस्तक के कार्यक्रम को कवर करने वाले कैरियर रिपोर्टर अनमोल प्रीतम ने हमें बताया, "उनके आक्रामक भाषणों में नफरत चरम पर है." एक बड़ा तबका असंतुष्टों के खिलाफ नरमी बरतने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर खुले तौर पर हमला करता है.”

ओ न्यूज हिंदी के इस कार्यक्रम के वीडियो में, दीपक सिंह हिंदू चिल्लाते हैं, "समाज एकजुट है और आज का यह शक्ति प्रदर्शन यह संदेश देगा कि हम देश के लिए मर-मिट सकते हैं." जैसे-जैसे जोश बढ़ता गया, अधिक सिर मुख्यधारा के समाचार संगठनों के पत्रकारों की ओर मुड़ गए, जो आंशिक अविश्वास में कार्यवाही देख रहे थे. यहां, राष्ट्रीय राजधानी के केंद्र में एक सार्वजनिक सड़क पर, मुख्यधारा के मीडिया संगठनों को राजनीतिक सक्रियता में एक प्रमुख अंतर्धारा देखने का अवसर मिला, जो शायद ही कभी ब्रॉडशीट में आता है. और इसके लिए, प्रदर्शनकारी खुश नहीं थे. 

प्रीतम सुबह से कार्यक्रम को कवर कर रहे थे. "मुझे लगता है कि यह सब एक बहुत संगठित तरीके में होता है. मेरे साथ जो हुआ वह भी उसी का हिस्सा था,” उन्होंने हमें बताया. दोपहर करीब 2 बजे, प्रीतम के इर्द-गिर्द भीड़ जमा हो गई और उनसे सवाल करने लगी कि वह किस तरह के पत्रकार हैं. "सवाल दोहराए गए. वे बहुत सारे अन्य पत्रकारों से भी यही बातें पूछना चाहते थे. अगर रवीश कुमार होते, आरफा या राणा अय्यूब होते," उन्होंने सरकार के कठिन सवाल पूछने वाले पत्रकारों का जिक्र करते हुए कहा,"उन्होंने उनसे वही सवाल पूछे होते जो मुझसे पूछे थे. इसके बाद उन्होंने धक्का-मुक्की और मारपीट शुरू कर दी. भीड़ ने बार-बार मांग की कि वह "जय श्री राम" का नारा लगाएं और जब उन्होंने नारा नहीं ​लगाया, तो भीड़ ने उन्हें "जिहादी" कहना शुरू कर दिया. 

प्रीतम के मामले को हिंदुस्तान 9 द्वारा फिल्माया गया था. उन्होंने हमें बताया कि हिंदुस्तान 9 के रिपोर्टर रोहित शर्मा ने अपने हमलावरों को उकसाया. उस महीने की शुरुआत में, शर्मा ने एक भीड़ का नेतृत्व किया जिसने पानीपत में एक मस्जिद के ऊपर झंडा फहराने की कोशिश की. जब भारत जोड़ो आंदोलन के बारे में खबरें मुख्यधारा की सुर्खियों में आईं, तो एबीपी न्यूज जैसे चैनलों को अपने कवरेज में यूट्यूबरों के फुटेज पर निर्भर रहना पड़ा.  

3 अप्रैल को दिल्ली के बुराड़ी में हिंदू महापंचायत कार्यक्रम में यति नरसिंहानंद (बीच में) और प्रीत सिंह (दाएं से दूसरे). पंचायत में वक्ताओं ने कहा कि हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ हथियार उठाना चाहिए. कार्यक्रम को कवर करने गए मुख्यधारा के मीडिया संगठनों के पत्रकारों पर हमला किया गया, ओ न्यूज हिंदी ने लगभग हर भाषण के वीडियो बनाए. शाहिद तांत्रे/कारवां

जैसे-जैसे घटना की रिपोर्ट मुख्यधारा के मीडिया में फैलती गई, यह स्पष्ट होता गया कि कार्यक्रम के आयोजकों को गिरफ्तार किया जाएगा. “जब आयोजकों में से एक प्रीत सिंह जंतर-मंतर में नारेबाजी के सिलसिले में गिरफ्तार होने वाले थे, वह मेरे पास आए और मुझे उनका इंटरव्यू करने के लिए कहा,” अवस्थी ने मुझे बताया. “उन्होंने कहा कि अब केवल मैं ही इंटरव्यू कर सकता हूं क्योंकि उनके साथ जुड़ना मुख्यधारा के चैनलों के लिए खतरनाक होगा. उनके जोर देने पर मैं इंटरव्यू के लिए राजी हो गया लेकिन जब मैं उनके घर पहुंचा तो इंडिया टीवी वहां से लाइव ब्रॉडकास्ट कर रहा था.'' अवस्थी की इंडिया टीवी और रजत शर्मा पर नाराजगी फिर भड़क उठी. “मैं टीवी पर था और प्रीत सिंह से जुड़ा हुआ था लेकिन मैंने इंटरव्यू पर ध्यान देने का फैसला किया. बातचीत के कुछ ही घंटों के भीतर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.' सिंह जो खुद को बुराड़ी और जंतर-मंतर के कार्यक्रम का आयोजक बताते थे, ने अपने जवाब में हमें बताया, ''हमें किसी कवरेज की जरूरत नहीं है. हम छपने के भूखे नहीं हैं.'' जब हमने अवस्थी के साथ उनकी बातचीत और उनके डर के बारे में पूछा कि मुख्यधारा के चैनल उनकी घटनाओं को कवर नहीं करेंगे, तो उन्होंने यह कहते हुए जवाब देने से इनकार कर दिया कि हमारा सवाल "व्यक्तिगत द्वेष से प्रेरित" था. 

बाद में उसी महीने, प्रमुख हिंदुत्व विचारक उत्तम उपाध्याय, भूपिंदर तोमर और दीपक सिंह हिंदू और बीजेपी के पूर्व प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय, जिन सभी ने कार्यक्रम में बात रखी थी, उन्हें दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. ये सभी फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. दीपक सिंह हिंदू ने सवालों का जवाब नहीं दिया. दिल्ली पुलिस ने उस घटना या अन्य समान घटनाओं के बारे में सवालों का जवाब नहीं दिया जिनमें पत्रकारों पर हमला किया गया था. 

अपर सत्र न्यायाधीश जंतर-मंतर से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहे थे. उन्होंने दिल्ली पुलिस से पूछा, ''क्या आपने रिपोर्टर को नोटिस दिया है?'' वह घटना के खबर इंडिया के कवरेज का जिक्र कर रहे थे. न्यायाधीश ने कहा, "उसे जानबूझकर सीधे सवालों से उन्हें भड़काने और कुछ कहने के लिए उत्तेजित करते हुए देखा गया है. सबसे पहले तो उसे ही बुलाया जाना चाहिए." खबर इंडिया के वीडियो का शीर्षक "हिंदू शेर दहाड़ते हुए (युद्ध) 5 कानूनों पर" एक ही दिन में 2.1 मिलियन से अधिक बार देखा गया था और अदालत की टिप्पणियों के बाद जाकर इसे हटाया गया था. वीडियो में एक वक्ता कह रहा है, ''हम उन्हें जड़ से खत्म कर देंगे.'' चौधरी ने हमें बताया कि पुलिस ने उनसे घटना के बारे में संक्षिप्त पूछताछ की थी, लेकिन उसके बाद से उनसे संपर्क नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि उन्होंने अदालत की टिप्पणियों के बारे में कुछ नहीं सुना और जल्द ही बातचीत समाप्त कर दी. 

जंतर-मंतर में एक अन्य कार्यक्रम का एक और वीडियो घूम रहा था. संकल्प मार्च नामक इस कार्यक्रम को राजस्थान में दो मुस्लिम पुरुषों द्वारा एक हिंदू दर्जी की हत्या के विरोध में आयोजित किया गया था. जब एक स्वतंत्र रिपोर्टर पूजा माथुर, उस कार्यक्रम को कवर करने के लिए गई, उसे तुरंत भीड़ ने घेर लिया. "जब मैंने उनसे सवाल पूछना शुरू किया, तो उनमें से किसी के पास कोई जवाब नहीं था और इसके बजाय मुझे 'जय श्री राम' का नारा लगाने के लिए मजबूर करना शुरू कर दिया, जिस पर मैंने जवाब दिया कि मैं यहां अपना काम करने, रिपोर्ट करने आई हूं, नारे लगाने नहीं," उन्होंने हमें बताया. “इससे उनका दावा था कि नारा नहीं लगाने से ही यह साबित होता है कि मैं एक पाकिस्तानी हूं, एक मुल्ली हूं, पूजा खान हूं और बार-बार मुझसे इसे स्वीकार करने के लिए कहती रही. एक शख्स ने तो मेरा हाथ भी पकड़ लिया. मेरा कैमरापर्सन भी डर गया.'' माथुर ने कहा कि उन्होंने भीड़ में लोगों को फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर का सिर कलम करने की धमकी देते हुए सुना. एचसीएन और प्यारा हिंदुस्तान ने कार्यक्रम के कई भाषणों के वीडियो डाले. 

खबर इंडिया, प्यारा हिंदुस्तान, वर्तमान भारत, द राजधर्म , हिंदुस्तान 9 और ओ न्यूज़ हिंदी ने इस लेख में जिन वीडियो का उल्लेख किया है, उनके बारे में विस्तृत प्रश्नावली का जवाब नहीं दिया. न तो अवस्थी ने और न ही चौधरी ने दिए. हिंदुस्तान 9 के रिपोर्टर रोहित शर्मा ने भी सवालों के जवाब नहीं दिए. 

दक्षिणपंथी यूट्यूब पारिस्थितिकी तंत्र भारत के लिए अनोखा नहीं है. उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में एलेक्स जोन्स जैसे दक्षिणपंथी ने, जिसने षड्यंत्रकारी चैनल इंफोवार्स बनाया, इस मंच से करियर बनाया है. हालांकि, उस तरह के अधिकांश समूह, जैसे कि टीकाकरण विरोधी समूह और क्यूएनोन, यूट्यूब के कायदे जिन पर लगाम रखते रहे हैं, लगातार उकसाने या गलत सूचना देने की तरफ मंच को धकेल चुके हैं, या उनकी अधिकांश सामग्री को विमुद्रीकृत कर दिया गया है. पहुंच या राजनीतिक प्रभाव के मामले में विरासती मीडिया संगठनों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करने के लिए कुछ काफी बड़े हो गए हैं. 

भारत में यह चलन नहीं है. इसका एक संभावित कारण दक्षिण एशियाई भाषाओं में अभद्र भाषा सामग्री को चिन्हित करने के लिए फेसबुक और यूट्यूब के एल्गोरिदम की अक्षमता है. 2021 में व्हिसलब्लोअर फ्रांसेस हॉगेन द्वारा लीक किए गए आंतरिक फेसबुक दस्तावेज बताते हैं कि भारत में भड़काऊ सामग्री, साथ ही उपयोगकर्ता द्वारा रिपोर्ट की गई घृणास्पद सामग्री, 2019 और 2020 में इजाफा दिखाती है. जून 2020 के आंकड़ों पर आधारित एक आंतरिक प्रस्तुति में कहा गया है कि हिंदी में “भड़काऊ सामग्री प्रसार”, जिसे फेसबुक संघर्ष या हिंसा के लिए जोखिम के रूप में दर्शाता है, अधिकांश अन्य देशों की तुलना में अधिक थी. 

हौगेन की फाइलों से पता चलता है कि फेसबुक के शोधकर्ताओं ने दिल्ली, लखनऊ, मुंबई और कोलकाता में 37 उत्तरदाताओं के साथ इंटरव्यू किए. इनमें से 22 हिंदू और 15 मुस्लिम थे. प्रस्तुति से ऐसा लगता है कि इंटरव्यू में चिन्हित की गई सामग्री में कुछ फर्क था और फ़ेसबुक के भड़काऊ-सामग्री दिशानिर्देशों को हानिकारक के रूप में वर्गीकृत किया गया था. उदाहरण के लिए, प्लेटफॉर्म के दिशानिर्देशों में कुछ ऐसी सामग्री शामिल नहीं थी जिसका उत्तरदाताओं ने उल्लेख किया, जैसे "अंतर-धार्मिक विवाह और डेटिंग (यानी लव जिहाद) से संबंधित संवेदनशील नैरेटिव, मुसलमानों द्वारा गायों के वध के बारे में संवेदनशील नैरेटिव-ऐतिहासिक रूप से इस्तेमाल किए गए साम्प्रदायिक आक्रोश को भड़काना और हिंसक घटनाओं का वर्णन करने वाली सामग्री (जैसे सांप्रदायिक दंगों के बारे में समाचार)." 

2018 में फेसबुक ने हिंदी और बंगाली के लिए हेट स्पीच क्लासिफायर जोड़े- इशारा इसके हेट स्पीच डिटेक्शन एल्गोरिदम की तरफ है, जबकि 2021 की शुरुआत में दो भाषाओं में हिंसा और उकसावे के लिए क्लासिफायर जोड़े गए थे. हालांकि, फेसबुक और यूट्यूब क्लासिफायर से आसानी से बचा जाता है. दक्षिणपंथी माहौल के कई रचनाकार जानते हैं कि मुस्लिम विरोधी किन शब्दों को इस्तेमाल करना है जिन्हें वे जानते हैं कि एल्गोरिथ्म अक्सर नहीं पकड़ पाता है. अवस्थी ने समझाया , "आपको केवल कुछ शब्दों से बचना है. उदाहरण के लिए, शब्द सुअर बहुत जल्दी पकड़ में आ जाता है, इसलिए मैं शांतिदूत शब्द का उपयोग करता हूं." शब्द "शांतिदूत" एक तरह से हिंदुत्व के इस आग्रह का इशारा है कि इस्लाम एक अंतर्निहित हिंसक धर्म है. अवस्थी ने आगे कहा, "संदेश भी भेजा जाता है और वीडियो को भी रोका नहीं जाता है. आप जिहादी नहीं लिख सकते इसलिए हम जी-हादी का इस्तेमाल करते हैं. कुछ नए चैनल चुसलमान, मु#लला और अन्य विकृत शब्दों का उपयोग करते हैं. कुछ चैनल हरे टिड्डे का इस्तेमाल करते हैं.” अवस्थी, हरे टिड्डे से बहुत खुश नहीं दिखे और उन्होंने हमें समझाया कि वह अपने माहौल में उदारवादी थे. "मैं शीर्षक में उस आखिरी वाले का उपयोग नहीं कर सकता, लेकिन अगर कोई और कहता है, तो मैं इसे अपने थंबनेल में एक डायलॉग बॉक्स में जोड़ सकता हूं." 

फेसबुक का एल्गोरिदम कितना प्रभावी था, यह जांचने के लिए, हमने 6 नवंबर को प्लेटफॉर्म पर एक नया अकांउट बनाने का फैसला किया. हमने ओ न्यूज हिंदी के पेज को सर्च और लाइक किया. मंच ने तुरंत सुझाव दिया कि हम द राजधर्म चैनल, प्यारा हिंदुस्तान, यूथ मीडिया टीवी, शाइनिंग इंडिया, हिंदुस्तान 9 न्यूज, द न्यूजपेपर और वर्तमान भारत को भी फॉलो कर सकते हैं, जिन्हें हमने लाइक या सब्सक्राइब किया. पहले ही दिन हमारा होमपेज इस्लामोफोबिक सामग्री की बाढ़ से भर गया. हमें जो वीडियो सुझाए गए थे उनमें से एक का शीर्षक था, "मुस्लिम यही योजना बना रहे हैं, यह भाई गणित समझाता है" और दूसरा वीडियो "क्या इसी वजह से हिंदू आबादी कम हो रही है?" 

जब हमने अपने निष्कर्ष उडुपा के साथ साझा किए तो उन्होंने कहा, “यह आश्चर्य की बात नहीं है, विश्व स्तर पर कई अनुभवजन्य अध्ययनों ने स्थापित किया है कि सोशल-मीडिया एल्गोरिदम ध्रुवीकरण सामग्री, नेटवर्क और उपयोगकर्ता के बीच नफरत के पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाने और फैलाने में योगदान करता है. उदाहरण के लिए, यूएस में अध्ययनों ने स्थापित किया है कि यूट्यूब पर उपयोगकर्ताओं के केवल कुछ क्लिकों के बाद एल्गोरिथम रूप से बनाए रखने वाले अति-दक्षिणपंथी वैचारिक बुलबुले में डूब जाने की बहुत संभावना है. 

यूट्यूब के एक प्रवक्ता ने कहा, "यूट्यूब के पास अच्छी तरह से स्थापित सामुदायिक दिशानिर्देश हैं, जिनमें अभद्र भाषा, कुछ विशेषताओं के आधार पर व्यक्तियों या समूहों के खिलाफ हिंसा या घृणा को बढ़ावा देने वाली सामग्री को प्रतिबंधित करना शामिल है. हम फ्लैग किए जाने पर इन नीतियों का उल्लंघन करने वाले वीडियो को तुरंत हटा देते हैं, और हमारी नीतियों का बार-बार उल्लंघन करने वाले चैनल को बंद कर सकते हैं. यूट्यूब की नीतियां वैश्विक हैं, और हम विषय या निर्माता की पृष्ठभूमि, राजनीतिक दृष्टिकोण, स्थिति या संबद्धता की परवाह किए बिना उन्हें लगातार मंच पर लागू करते हैं. 

एक मेटा प्रवक्ता ने कहा, "हमने फेसबुक पर किस चीज की अनुमति है और किस की नहीं, इसके लिए सामुदायिक मानक विकसित किए हैं. हम ऐसी सामग्री की अनुमति नहीं देते हैं जो हमारे सामुदायिक मानकों का उल्लंघन करती है और जब हमें यह पता चलता है या इसके बारे में जानकारी मिलती है तो हम इसे हटा देते हैं. इस मामले में हमारे लिए हाइलाइट किए गए लिंक हमारे सामुदायिक मानकों का उल्लंघन नहीं करते हैं." उन्होंने यह भी कहा, "हम अपने प्लेटफॉर्म को सुरक्षित रखने के लिए लोगों और प्रौद्योगिकी में हर साल अरबों डॉलर का निवेश करते हैं. हमने अभद्र भाषा, गलत सूचना, और हानिकारक सामग्री के अन्य रूपों को मंच से दूर रखने के लिए टीमों और तकनीकों में महत्वपूर्ण निवेश किया है ... हम प्रवर्तन में सुधार कर रहे हैं और अपनी नीतियों को अपडेट करने के लिए प्रतिबद्ध हैं क्योंकि अभद्र भाषा ऑनलाइन विकसित हो रही है. 

खबर इंडिया का आलीशान कार्यालय नोएडा फिल्म सिटी में वासमे भवन में है. यहीं जी न्यूज, आज तक, टाइम्स नाउ, रिपब्लिक टीवी, इंडिया टुडे और​ विआन सहित देश के सबसे बड़े मीडिया घराने हैं. चार साल पहले खबर इंडिया सिर्फ एक यूट्यूब चैनल था, जिसने अपना पहला वीडियो अपलोड किया था- मोटरबाइक कैसे बेचें. कारवां/ शाहिद तांत्रे

हम उस दिन खबर इंडिया गए थे जब उनके अधिकांश कर्मचारी - वर्तमान में 15- दिल्ली के नगरपालिका चुनावों पर रिपोर्टिंग कर रहे थे. चौधरी खुद गुजरात में वोक्स-पॉप इयकट्ठा करने के लिए जुगत लगा रहे थे. एक आलीशान लॉन के पीछे, आफिस एक गेटेड परिसर में है, जहां कुछ बड़े स्टॉक ब्रोकर्स और कानून फर्मों के दफ्तर भी हैं. 

टीम ने गूगल मैप पर अंदर की जो तस्वीरें साझा की हैं, उनमें एप्पल मैक कंप्यूटर और लैपटॉप के साथ किताबों से भरा लकड़ी का सुंदर फर्नीचर दिखाई देता है. इसके इंटर्न इसके पेज पर शानदार रिव्यू देते हैं. "इसमें एक आत्मा है," एक रिव्यू कहता है. "एक आत्मा जो जीवंत, संक्रामक और उत्साही है. मैं इस आरामदायक माहौल में पूरी तरह से आनंद लेता हूं और बहुत कुछ सीखता हूं. यह बिल्कुल अद्भुत और ज्ञानवर्धक अनुभव है.'' खबर इंडिया सिर्फ एक यूट्यूब चैनल है ऐसा कम ही लगा. ऐसा चैनल जिसने बस चार साल पहले अपना पहला वीडियो अपलोड किया था- मोटरबाइक कैसे बेचें. 

इसी कंपाउंड में टेलीविजन समाचार चैनल इंडिया न्यूज 24x7 भी है, जिसे 2021 में केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर और उनके डिप्टी एल मुरुगन द्वारा बहुत धूमधाम से लॉन्च किया गया था. जब हम कंपाउंड के बाहर चाय की दुकान पर गए तो वहां एक ग्रुप था जो ऐसा लग रहा था कि न्यूज 24×7 से है, सभी उदास थे. वे पांच अधेड़ उम्र के पत्रकार थे, जिनमें से कुछ के गंजे होने के लक्षण दिख रहे थे. चैनल अच्छा नहीं कर रहा था (खबर इंडिया की तुलना में यूट्यूब पर उसके कम सब्स्क्राइबर हैं).

"उन्होंने उन्हें नोटिस देने की भी जहमत नहीं उठाई," बेल्ट के नीचे अपनी शर्ट को बड़े करीने से दबाए हुए एक मिलनसार व्यक्ति ने कहा. दूसरे ने कहा, "अब किसी की नौकरी सुरक्षित नहीं है." बगल की चाय की दुकान के बाहर, चमकीले कपड़े पहने द क्विंट के पत्रकारों का एक समूह जोर-जोर से अंग्रेजी में बात कर रहा था. हाल ही में अंबानी ने इसमें अच्छा निवेश किया था. इंडिया न्यूज 24x7 के लोगों की बातचीत शोर में गुम होती चली गई. अंत में किसी बिना किसी खास से पूछे कहा, "अब हम कहां जाएं," उसने पहली बार एंग्लोफोन मिलेनिअल की दिशा में दूरी पर देखा, फिर धीरे-धीरे, खबर इंडिया के कार्यालय की ओर.