5 मई को गृह मंत्रालय द्वारा देशव्यापी लॉकडाउन को बढ़ाए जाने के कुछ ही दिन बाद, भारत ने कोविड-19 संक्रमण और इससे हुई मौतों की भारी संख्या दर्ज की. 3829 नए मामले सामने आए और 194 मौतें हुईं. नरेन्द्र मोदी प्रशासन को सलाह देने के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा गठित एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स के कई सदस्यों के अनुसार, दूसरी बार लॉकडाउन बढ़ाने के बारे में टास्क फोर्स से परामर्श नहीं किया गया. 1 मई को तीसरे चरण की घोषणा से कुछ घंटे पहले ही 21 वैज्ञानिकों वाली टास्क फोर्स की बैठक हुई लेकिन सरकार ने नीतिगत निर्णयों पर सलाह देने के लिए नियुक्त विशेषज्ञों की समिति के साथ इस मामले पर चर्चा नहीं की.
महामारी के तीन महीनों में भारत में मामलों की संख्या बढ़ती ही जा रही है और विशेषज्ञ सलाह को दरकिनार करना मोदी सरकार की आदत हो गई है. इसके चलते भारत के वैज्ञानिक समुदाय और प्रशासन के बीच तनाव पैदा हो गया है. "नीतिगत निर्णयों में विज्ञान के अलावा भी चीजें होती हैं लेकिन वैज्ञानिक इनपुट और निर्णयों तथा उनके प्रचार में वैज्ञानिक चेतना की भावना का अभाव दुर्भाग्यपूर्ण है," कोविड-19 के लिए केंद्र द्वारा गठित 11 सदस्यीय सशक्त समूह के एक सदस्य ने मुझे बताया. 24 अप्रैल को एक राष्ट्रीय प्रेस वार्ता के दौरान केंद्र का भविष्यवाणी करना कि महामारी 16 मई को समाप्त हो जाएगी, विज्ञान की अवहेलना का स्पष्ट संकेत था.
उस प्रेस वार्ता में नीति आयोग के सदस्य विनोद पॉल ने एक स्लाइड प्रस्तुत की जिसमें दावा किया गया कि भारत में 16 मई के बाद कोविड-19 के नए मामले आने बंद हो जाएंगे. सशक्त समूह के सदस्य ने कहा कि यह भविष्यवाणी गणित मॉडल के "बदनाम सिद्धांत" पर निर्भर थी. जिस गणितीय मॉडल ने महामारी के खत्म हो जाने की भविष्यवाणी की थी, उसे एक ग्राफ में चित्रित किया गया था. इसने अनुमान लगाया कि नए संक्रमणों की संख्या मई की शुरुआत में कम होने लगेगी, लॉकडाउन के दूसरे चरण के समाप्त होने के समय लगभग 1500 से अधिक नए मामले सामने आएंगे. इसके बाद आशावादी पूर्वानुमान लगा कि 10 मई तक नए मामलों की संख्या लगभग एक हजार हो जाएगी और 16 मई के बाद भारत में कोई नया मामला सामने नहीं आएगा. ब्रीफिंग के तुरंत बाद प्रेस सूचना ब्यूरो ने यह बताते हुए गणितीय मॉडल को ट्वीट किया कि पॉल ने कहा है, "#COVID के छिपे मामलों के बाहर आने से डरने की कोई जरूरत नहीं है, बीमारी नियंत्रण में है."
पॉल "चिकित्सा आपातकालीन प्रबंधन योजना" पर 21-सदस्यीय टास्क फोर्स के अध्यक्ष और पहले सशक्त समूह के अध्यक्ष भी हैं. उनकी प्रस्तुति का शीर्षक था "भारत कोविड-19 के प्रकोप से प्रभावी ढंग से निपटता हुआ" और उनकी अधिकांश ब्रीफिंग यह अनुमान लगाने पर केंद्रित थी कि लॉकडाउन स्पष्ट रूप से सफल रहा है. "देश ने दिखाया है कि लॉकडाउन प्रभावी था," पॉल ने कहा. हालांकि वह ग्राफ में जाहिर की गई भविष्यवाणी पर चर्चा करने से बचते रहे, जिसे उनके पीछे एक बड़ी स्क्रीन पर दिखाया गया था, उन्होंने लॉकडाउन और महामारी को लेकर सरकार की प्रतिक्रिया की प्रशंसा करने के लिए बार-बार स्लाइड का उल्लेख किया. "आज हम कह सकते हैं कि इस महामारी को दूर करने के लिए देश द्वारा उठाए गए कदम बड़े सामर्थ्य के साथ समयानुकूल थे, अच्छे रहे और पूरे हुए हैं, हम इस बीमारी को नियंत्रित करने और हराने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं," पॉल ने कहा.
लेकिन पॉल के ग्राफ में भविष्यवाणी वास्तविकता से बहुत दूर रही है. दो हफ्तों के भीतर ही वायरस ने इसे गलत साबित कर दिया और यह फिलहाल कमजारे पड़ता नहीं दिख रहा है. 2 मई को भारत ने 24 घंटे के भीतर 2000 से अधिक नए कोविड-19 संक्रमणों की जानकारी दी है. उस दिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले दिन से 2411 मामलों की वृद्धि के साथ कुल 37776 पॉजिटिव मामलों की सूचना दी. तब से हर दिन 2000 से अधिक नए मामले देखे गए हैं. वायरस से होने वाली मौतों की संख्या में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है. भारत में अप्रैल के मध्य तक प्रति दिन 50 के आसपास और 5 मई तक 100 के आसपास मौतें दर्ज की गईं थीं लेकिन उसके बाद अचानक 24 घंटों में 194 मौतें दर्ज की गईं. 7 मई को सुबह 8 बजे तक भारत ने कुल 52952 पुष्ट मामले और 1783 मौतें दर्ज की थीं.
प्रेस ब्रीफिंग के बाद से पॉल की स्लाइड सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गई है, खासकर पॉल की प्रस्तुति में वायरस के खत्म हो जाने के अनुमानित वक्त में भारत में कोविड-19 संक्रमण के मामलों में तेज वृद्धि दिखाई है. प्रेस वार्ता के दौरान और बाद के साक्षात्कारों में पॉल ने यह नहीं बताया कि मोदी प्रशासन की लॉकडाउन तिथियों के साथ ही नए मामलों की संख्या इस तरह नाटकीय ढंग से क्यों कम होती चली जाएगी.
4 मई को मैंने दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में बाल रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. सिद्धार्थ रामजी से बात की. रामजी ने ही स्लाइड तैयार की थी. रामजी ने मुझे बताया कि उन्होंने पॉल के अनुरोध पर आंतरिक अभ्यास के लिए स्लाइड बनाई थी और उन्हें नहीं पता था कि इसका इस्तेमाल राष्ट्रीय मीडिया ब्रीफिंग में किया जाएगा. उन्होंने कहा कि जब ब्रीफिंग में स्लाइड प्रस्तुत की गई तो वह आश्चर्यचकित रह गए. साक्षात्कार के दौरान, रामजी ने स्वीकार किया कि अनुमान पहले ही गलत साबित हो चुके हैं. "गणितीय मॉडल का वक्र हमारी धारणाओं और उपलब्ध डेटा द्वारा सीमित है," उन्होंने समझाया. "अगर आप इसे अब देखें तो ग्राफ तेजी से ऊपर की ओर जा रहा है. इसका वक्र अब उस तरह का नहीं है जैसा स्लाइड में दिखता है. पिछले कुछ दिनों में हमने बहुत बड़ा उछाल देखा है. हमने अभी तक अधिकतम को नहीं छुआ है, हम अभी ऊपर की ओर बढ़ रहे हैं.”
ग्राफ में दर्ज गणितीय गिरावट ब्रिटिश महामारीविद विलियम फार्र के 1840 के लॉ ऑफ एपिडेमिक्स के सिद्धांत पर आधारित है. यह सिद्धांत कहता है कि महामारी का उभार और पतन मोटे तौर पर सममित पैटर्न पर होता है जो घंटी के वक्र की तरह दिखता है. लेकिन ऐसा गणितीय मॉडल, जो मानता है कि उभार और पतन मोटे तौर पर सममित होगा, उस वास्तविकता को प्रतिबिंबित करने में विफल रहता है कि समुदायों में बीमारियां कैसे फैलती हैं. 1995 में एचआईवी महामारी के अंत की भविष्यवाणी करने के लिए इसका सबसे प्रसिद्ध और सबसे गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया था. यह अनुमान लगाया गया था कि एचआईवी महामारी लगभग 200000 लोगों को अपनी चपेट में लेगी लेकिन 2018 तक 37.9 मिलियन लोगों को एचआईवी है.
4 मई को जब मैंने पॉल से मिलने की कोशिश की, तो उन्होंने यह मानने से पूरी तरह इनकार किया कि उन्होंने दावा किया था कि 16 मई तक संक्रमणों की संख्या शून्य रह जाएगी. "यह रेखा एक प्रवृत्ति को दर्शाती थी," पॉल ने कहा. “आप इसकी गलत व्याख्या कर रही हैं. इससे केवल यही जाहिर होता है कि आप ग्राफ को पढ़ना नहीं जानती हैं. मुझे बताइए कि इसमें कहां कहा गया है कि संख्या शून्य हो जाएगी.” यह देखते हुए कि ग्राफ में स्पष्ट रूप से एक्स-अक्ष पर नए मामलों की संख्या दर्शाती रेखा 16 मई को शून्य को छूती है, यह स्पष्ट नहीं है कि पॉल ने ग्राफ की व्याख्या कैसे की.
यह पूछे जाने पर कि क्या वैज्ञानिक टास्क फोर्स या सशक्त समूह ने इस प्रेजेंटेशन को तवज्जो दी थी, पॉल ने कहा कि पत्रकार टास्क फोर्स को अपना काम करने नहीं दे रहे और कॉल काट दिया. लेकिन सशक्त समूह के साथ काम करने वाले महामारी विज्ञानियों ने कहा कि उनसे कभी सलाह नहीं ली गई. उनमें से एक, जिसने पहचान न जाहिर करने का अनुरोध किया, ने कहा कि स्लाइड "बेतहाशा गलत" थी. महामारी विज्ञान विशेषज्ञ ने कहा, "हम रोजाना मिलते रहे हैं लेकिन इस अध्ययन पर हमसे कभी सलाह नहीं ली गई."
पॉल का ग्राफ का उपयोग ही विज्ञान आधारित निर्णय लेने में सरकार की आनाकानी का लक्षण है. एक अन्य सशक्त समूह के एक सदस्य ने मुझे बताया, "इसका कोई मतलब नहीं है कि उन्होंने एक गणितीय मॉडल के लिए एक बाल रोग विशेषज्ञ से पूछा, जबकि उनके पास महामारी विज्ञानियों की एक पूरी टीम थी". पहले सशक्त समूह के सदस्य ने कहा, "मुझे भारत में मई में महामारी के चरम पर पहुंचने के बारे में सुझाव देने वाले किसी भी वैध मॉडल के बारे में पता नहीं है.” पहले सदस्य ने कहा, "कुछ सांख्यिकीय मॉडल तो हैं, लेकिन वे सामान्य गलतियों से ग्रस्त हैं और महामारी विज्ञान पर आधारित नहीं हैं. हालांकि कोविड-19 पर बहुत काम उभर रहा है, नीति निर्माताओं के लिए यह आवश्यक है कि वे इसकी छंटाई करने और सार्थक परिणामों को अलग करने के लिए संबंधित वैज्ञानिकों की मदद लें.”
कई वैज्ञानिकों ने, जिनसे मैंने लॉकडाउन बढ़ाए जाने के बाद बातचीत की, इस सार्वजनिक-स्वास्थ्य संकट के दौरान विज्ञान को राजनीति और नौटंकी के नीचे रखे जाने पर अपनी निराशा और बेचैनी व्यक्त की. नौटंकीबाजी से आशय भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना द्वारा 3 मई को किए गए फ्लाइ-पास्ट्स था, जिसमें हेलीकॉप्टरों से भारत के अस्पतालों पर फूल बरसाए गए. इससे पहले थाली और ताली बजाई गई थी और दिये जलाए गए थे.
महामारी के दौरान सरकार के लिए अपने सार्वजनिक-स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह पर ध्यान देना अत्यंत महत्वपूर्ण है. ऐसा करने में विफलता वेंटीलेटर, बेड, परीक्षण किट और अन्य सुविधाओं को तैयार रखने के मामले में भारत की तैयारी पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है. सरकार के लिए महामारी की प्रकृति के बारे में पारदर्शिता बनाए रखना महत्वपूर्ण है, ताकि उसके अनुसार निर्णय लिया जा सके. लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस बात से लगातार इनकार किया है कि भारत वायरस का किसी भी तरह समुदाय संक्रमण हुआ है - भले ही राष्ट्रीय सीमाएं लगभग पांच सप्ताह तक बंद रही हैं.
4 मई की प्रेस वार्ता में स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा कि भारत का महामारी वक्र "अपेक्षाकृत सपाट" है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि जनता कैसे वायरस के प्रति प्रतिक्रिया करती है, महामारी अपने शीर्ष पर "शायद कभी नहीं आए." यह दावा करना स्पष्ट रूप से सही नहीं है कि महामारी वक्र किसी भी मीट्रिक-सापेक्ष या अन्य वजहों से-तीव्र वृद्धि की अवधि के दौरान समतल है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि शीर्ष पर शायद कभी नहीं आने का दावा करने से अग्रवाल का मतलब क्या था. अब तक भारत नए मामलों के संबंध में अपने चरम पर है और ऐसा लगता है कि यह अभी और ऊपर उठेगा. लेकिन 5 मई को स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की कि वह वायरस के पैमाने के लिए दिन में केवल एक बार संख्या जारी करेगा. पहले दो बार संख्या जारी होती थी. मंत्रालय ने निर्णय के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया.
दैनिक प्रेस ब्रीफिंग में विज्ञान के प्रति उपेक्षा स्पष्ट है. सरकार ने आईसीएमआर में प्रमुख महामारी विज्ञानी और पैनल में वैज्ञानिक समुदाय के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत डॉ. आरआर गंगाखेडकर को हटा दिया है. 21 अप्रैल तक, गंगाखेडकर ब्रीफिंग में नियमित उपस्थिति होते थे. यह स्पष्ट नहीं है कि वह अब ब्रीफिंग का हिस्सा क्यों नहीं है. गंगाखेडकर ने इस बारे में टिप्पणी करने से इनकार किया है और आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने ईमेल या संदेशों का जवाब नहीं दिया. 4 मई को हिंदू बिजनेस लाइन की हैल्थ रिपोर्टर मैत्री पोरचा ने ट्वीट किया था, "@MoHFW_India की प्रेस ब्रीफिंग से @ICMRDelhi की अनुपस्थिति सुस्पष्ट है. ऐसे समय में हमारे पास थोड़ा-बहुत जितनी भी वैज्ञानिक समझदारी से भरी आवाजें थीं वे अब हमसे छीन ली गई हैं. प्रेस कॉन्फ्रेंस पर कोई वैज्ञानिक या डॉक्टर क्यों नहीं है, जो वैज्ञानिक/क्लीनिकल प्रगति के बारे में अपडेट कर सके?"
मई के पहले सप्ताह में लगता है कि भारत संक्रमित मामलों में जबरदस्त वृद्धि का गवाह बनेगा. इसने स्वतंत्र भारत में लंबे समय से उपेक्षित पड़े एक मुद्दे को सतह पर ला दिया है यानी विज्ञान में निवेश करने, वैज्ञानिकों को सुनने और साक्ष्य-आधारित नीतियों के लिए अनुमति देने की आवश्यकता. हृदय रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ और निजी-अस्पताल उद्यमी महामारी विज्ञानियों, वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य-नीति विशेषज्ञों का स्थान नहीं ले सकते. अगर सरकार ने वैज्ञानिकों को दरकिनार करना जारी रखा तो अज्ञानी राजनीतिक और नाटकीय उपायों पर भरोसा करते हुए, भारत वायरस के लिए विनाशकारी इनक्यूबेटर में बदल जाएगा.