अफगानिस्तान में कोरोना के चलते फंसे भारतीय लौटना चाहते हैं अपने देश

अफगानिस्तान में कोरोना के कुल 299 मामलों में 206 हेरात में सामने आए हैं. परवीज/रॉयटर्स

पिछले दिनों में हजारों अफगानी कोरोना से बुरी तरह प्रभावित पड़ोसी देश ईरान से वापस आए. चूंकि अधिकतर लोग हेरात प्रांत की सीमा से लौटे हैं इसलिए यह क्षेत्र अफगानिस्तान का कोविड-19 केंद्र बन गया है. 4 अप्रैल तक अफगानिस्तान में कोरोना के कुल 299 मामलों की पुष्टि हुई है जिसमें से 206 हेरात इलाके में हैं. स्थिति को बिगड़ता देख अफगानिस्तान में रहने वाले भारतीय अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं और स्वदेश लौटना चाहते हैं. जगह-जगह यात्रा प्रतिबंधों के कारण वे लोग वहां फंसे हुए हैं. 17 मार्च को भारत ने अफगानिस्तान से आने वाले यात्री विमानों पर रोक लगा दी जिसके बाद मैंने वहां के कई भारतीयों से बात की जो वहां से जल्द से जल्द निकलना चाहते हैं. साथ ही, भारतीय डॉक्टरों ने मुझे बताया कि उनके कार्यस्थलों पर व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण या पीपीई की कमी है.

30 मार्च को मैंने हेरात में काम कर रहे एक भारतीय डॉक्टर से बात की. नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने सूबे में जमीनी हकीकत बताई. उन्होंने ईरान से लौटे अफगानों का जिक्र करते हुए कहा, "उनमें से ज्यादातर लोगों को स्क्रीनिंग के बिना ही आने दिया गया क्योंकि वहां ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. “यहां प्रांतीय अस्पताल के चार डॉक्टरों को संक्रमण हो गया है. रूढ़िवादीता और अशिक्षा इतनी अधिक है कि कोविड-19 के बारे में आम जनता में शायद ही कोई जागरूकता है. देश एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा के कगार पर है. हम एक टाइम बम पर बैठे हैं जो किसी भी वक्त फट सकता है. यहां परिणाम इटली और ईरान से अधिक घातक होंगे.”

अफगानिस्तान में कोविड-19 का पहला मामला फरवरी के अंत में सामने आया था. द लांसेट नामक एक मेडिकल जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, "एक 35 वर्षीय अफगान दुकानदार 9 फरवरी 2020 को 1 सप्ताह के लिए ईरान के कोम शहर गया था. ईरान में उसने अपनी कंपनी के लिए जूतों की आपूर्ति करने वाली जूता कंपनी के कर्मचारियों से मुलाकात की. वह 15 फरवरी 2020 को कार से अफगानिस्तान के हेरात अपने घर लौट आया.” कोरोना से संबंधित लक्षणों के दिखने के बाद उसे 22 फरवरी को एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां बाद में उसके कोरोना संक्रमित होने का पता चला. अफगानिस्तान के सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्रालय ने अनुमान लगाया है कि अगर कोई गंभीर कार्रवाई नहीं की गई तो कम से कम 110000 अफगानी कोविड-19 से अपनी जान गवां सकते हैं.

भले ही 28 मार्च को काबुल में लॉकडाउन लागू हो गया हो लेकिन अगले दिन अफगानिस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में बताया गया कि, “कई दुकानें खुली हैं और कारें अभी भी सड़कों पर आती-जाती नजर आ रही हैं. शहर में लॉकडाउन के बीच किसी को भी सार्वजनिक स्वास्थ्य के आदेशों का पालन करने की कोई जरूरत नहीं लग रही है.” स्वास्थ्य मंत्रालय ने चेतावनी दी कि यदि लोग स्वास्थ्य चेतावनी का पालन नहीं करते हैं तो अफगानिस्तान में लगभग 2.5 करोड़ लोग संक्रमित हो सकते हैं. हेरात के भारतीय डॉक्टर ने बताया, “हेरात प्रांत के गवर्नर अब्दुल कय्यूम रहीमी ने हाल ही में मीडिया को बताया था कि अगर सरकार ने संक्रमण के प्रसार की जांच के लिए कार्य शुरू नहीं किया तो देश में लाशों को इकट्टा करना मुश्किल हो जाएगा." डॉक्टर ने कहा कि वह अफगानिस्तान में काम करने वाले कम से कम 15 अन्य भारतीय डॉक्टरों को जानते हैं जो संक्रमित होने के खतरे के बीच काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उन्होंने भारतीय अधिकारियों को लिखा हैं कि उन्हें यहां से निकाला जाए. डॉक्टर ने कहा, "पिछले दो हफ्तों से हम विदेश मंत्रालय को बार-बार याद दिला रहे हैं. अधिकारियों से हमें यहां से निकालने की व्यवस्था करने का अनुरोध कर रहे हैं. दूतावास के अधिकारी बहुत सहयोग कर रहे हैं और हमारे साथ व्हाट्सएप पर लगातार संपर्क में हैं. हमें बताया गया है कि वे अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की सही संख्या जानने के लिए एक सर्वे कर रहे हैं."

उन्होंने आगे कहा, “भारत में लॉकडाउन की घोषणा जल्दबाजी में की गई थी. अफगानिस्तान में सुरक्षा के खतरे और चिकित्सा बुनियादी ढांचे की स्थिति को देखते हुए भारत सरकार को हमारे बारे में भी विचार करना चाहिए था." मीडिया रिपोर्टों के अनुसार 30 मार्च को एक कैम एयर की फ्लाइट 31 भारतीयों को अफगानिस्तान से नई दिल्ली वापस ले आई है. इस विमान में 4 राजनयिक, 26 सुरक्षाकर्मी और एक नागरिक सवार थे. अफगानिस्तान में कई भारतीयों ने इस सवाल को उठाया कि उन्हें इस उड़ान के बारे में सूचित क्यों नहीं किया गया और साथ ले जाया गया.

उन्होंने अफगानी नागरिकों को दिल्ली से अफगानिस्तान वापस ले जाने वाली उड़ानों की ओर भी इशारा किया. 27 मार्च को अफगानिस्तान टाइम्स ने बताया कि भारत ने अफगानी नागरिकों को 5 विमानों से वापस अफगानिस्तान भेजने की अनुमति दी है. अनुमान लगाया कि लगभग 2000 अफगानी नागरिकों को वापस भेज दिया गया. मैंने लाजपत नगर में अफगानी लोगों से बात की जिन्होंने पुष्टि की कि वे अपने देश के कुछ लोगों को जानते हैं जो 28 मार्च को भारत से विमान में निकल गए थे. अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों ने सवाल किया कि उन्हें भी इसी तरह वापस जाने की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है.

मुंबई की रहने वाली रेखा शेट्टी पिछले साल अक्टूबर से अफगानिस्तान में काम कर रही हैं. वह एक मानवीय सहायता संगठन, कैथोलिक रिलीफ सर्विसेज के हेरात कार्यालय की प्रमुख है. शेट्टी ने बताया कि उन्होंने दूतावास को लिखा था कि उन्हें वहां से ले जाए. रेखा ने कहा, "हम दूतावास की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं. जबकि अफगान नागरिकों को वापस लाने के लिए खाली विमान नई दिल्ली जा रहे हैं, हमें आश्चर्य है कि भारतीयों को वापस आने की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है. हमें पता चला है दो विमान, 3 और 5 अप्रैल को अफगानी नागरिकों की वापस लाने के लिए भारत रवाना होंगे." 1 अप्रैल को अफगान सरकार ने काबुल और हेरात के बीच उड़ानों को बंद कर दिया था. शेट्टी ने कहा, “मैं कल शाम 1 अप्रैल को हैरात से आखरी फ्लाइट से काबुल के लिए रवाना हुई थी. मैं यहां एक गेस्ट हाउस में रुकी हुई हूं लेकिन यहां और हेरात में कई अन्य लोगों के पास यह सुविधा नहीं हैं. बंद के मद्देनजर वे बेरोजगार हो जाएंगे.” शेट्टी ने जोर देकर कहा कि भारतीय अधिकारियों से उनका अनुरोध है कि अन्य भारतीयों की, जो घर वापस जाना चाहते है, सरकार मदद करे."

मैंने गुजरात के खेड़ा जिले के मनीषचंद्र मणिलाल पटेल से बात की जो हेरात में रह रहे हैं. वह एशिया हेरिव एनर्जी इंडस्ट्रियल कंपनी, जो हेरात में रिफाइनरी का संचालन करती है, में प्रयोगशाला केमिस्ट हैं. उन्होंने बताया, "मैं एक सप्ताह से अधिक समय से एक इमारत में अकेला रह रहा हूं. कोरोना के डर से स्थानीय कर्मचारी यहां से निकल गए. मेरे मालिक ने मेरी नौकरी का अनुबंध समाप्त कर दिया है." भारतीय प्रधानमंत्री के कार्यालय से लेकर विदेश मंत्री और संसद सदस्यों तक, पटेल ने अपने ट्वीट में सभी को टैग करके मदद मांगी है. लेकिन अभी तक किसी ने जवाब नहीं दिया है. 17 मार्च को उन्होंने विदेश मंत्रालय में कोविड-19 नियंत्रण कक्ष को ईमेल किया. उन्हें जवाब मिला, "कृपया हमारे दूतावास या अफगानिस्तान में वाणिज्य दूतावास के संपर्क में रहें."

पटेल ने कहा, “मेरी तरह कम से कम 35 भारतीय हैरात में फंसे हुए हैं जो यहां से जाना चाहते चाहते हैं. हमें बचाने के लिए सरकार से कहें. यहां हजारों लोग ईरान से आए हैं और हम कोरोनोवायरस को नियंत्रित नहीं कर सकते.” उन्होंने आगे कहा, "भले ही मैं कोरोनोवायरस से मरूं लेकिन मैं अपनी पत्नी और बेटी के पास अपने घर पर ही मरना पसंद करूंगा. उनसे दूर इस देश में नहीं.” अफगानिस्तान के अन्य हिस्सों में रह रहे भारतीयों ने भी इसी तरह का अनुरोध किया. महाराष्ट्र के रहने वाले साहिल कुरुककर पिछले दो साल से अफगानिस्तान में काम कर रहे हैं. वह बल्ख प्रांत के मजार-ए-शरीफ शहर में हयात बल्ख अस्पताल में डॉक्टर है. उनका अनुमान है कि उस शहर में 135 भारतीय नागरिक रहते हैं.

उन्होंने कहा, "मेरा तीन महीने का बच्चा है. मेरे माता-पिता और मेरी पत्नी मेरे लिए बहुत परेशान हैं. मैंने मजार में वाणिज्य दूतावास कार्यालय को यहां से ले जाने के लिए भी लिखा, लेकिन अधिकारी भी बेबस हैं. काउंसिल जनरल ने मुझे आश्वासन दिया है कि यदि यहां स्थिति और खराब हो जाती है तो वह तब तक इस क्षेत्र को नहीं छोड़ेंगे जब तक एक भी भारतीय यहां है. लॉकडाउन के बारे में पूछे जाने पर कुरुककर ने कहा, “यहां के अधिकांश कामकाजी लोग दैनिक वेतन भोगी हैं और अगर लॉकडाउन का सख्ती से पालन किया गया तो लोग खाने के लिए पैसा नहीं कमा पाएंगे. कुरुककर ने मुख्य स्वास्थ्य समस्या के बारे में बताते हुए कहा कि “उनकी मुख्य चिंता भूख है, वायरस नहीं. सामान्य जागरूकता और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण संक्रमित व्यक्तियों और कोरोनवायरस के कारण होने वाली मौतों की संख्या यहां छिपी हुई है. वास्तविक स्थिति को कोई नहीं जानता है."

ओपीडी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, “अस्पताल प्रशासन ने मुझे ओपीडी सुविधा बंद करने और टेली-ट्रीटमेंट लेने के लिए कहा है. लेकिन हम काम कर रहे हैं और किसी भी तरह अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन करने की कोशिश कर रहे हैं. यह पूरी तरह से जानते हुए भी हमारे साथ कभी भी यह हो सकता है.” कुरुककर ने कहा, "स्थानीय लोग सरकारी अस्पतालों पर भरोसा नहीं करते हैं. यदि कोई कोरोना के लक्षणों के साथ आता है और हम उसे एक सरकारी अस्पताल में भेजते हैं, तो वे झगड़ा करते हैं, बहस करते हैं, 'आप चाहते हैं कि हम मार जाएं' यह जमीनी सच्चाई है."

27 मार्च को अफगानिस्तान टाइम्स में "देशव्यापी तालाबंदी आवश्यक" शीर्षक से एक संपादकीय छपा जिसने अफगानिस्तान की स्थिति को गंभीरता को उजागर किया. उसमें कहा गया, "यह वायरस बुरी तरह से प्रभावित पड़ोसी देश ईरान से प्रत्येक दिन सीमा पार करने वालों से हजारों की संख्या में फैल रहा है. महामारी मानवता के लिए एक बड़ी समस्या बन गई है. हमारे साथी अफगानियों को यह समझना चाहिए कि घर पर रहना और भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों से बचना उनके भले के लिए है. भले ही मस्जिदों में जाना भी अस्थायी रूप से दिया जाए. इस तरह हर खामी, जो भीड़ इकट्ठा होने देती है, उसे सरकार द्वारा दूर किया जाना चाहिए. अन्यथा हम यूरोप की तुलना में और अधिक भयावह स्थिति का सामना करेंगे जिसका सामना हमारी जर्जर और अपर्याप्त स्वास्थ्य प्रणाली नहीं कर पाएंगी."

कई भारतीय डॉक्टरों ने अफगानिस्तान में स्वास्थ्य के खराब बुनियादी ढांचे के बारे में बताया. शम्स राजा वाराणसी, उत्तर प्रदेश के एक डॉक्टर हैं और मजार-ए-शरीफ के रहनवार्ड इंटरनेशनल अस्पताल में काम करते हैं. उन्होंने पीपीई की कमी को लेकर कहा, "न तो हमारे पास कोविड-19 परीक्षण किट है और न ही पीपीई किट हैं. यहां एन95 मास्क भी नहीं हैं. हम काम करते समय सामान्य मास्क पहनते है. हमने दूतावास में यह मुद्दा उठाया है. हम बेहद चिंता में हैं. सुरक्षा में कमियों की वजह से हम असहाय बन गए हैं." उन्होंने कहा, "जब भी कोई कोरोना के लक्षण वाला व्यक्ति हमारे पास आता हैं तो हम उसे अन्य अस्पतालों में भेजते हैं. लेकिन बाकी सभी अस्पतालों में भी पूरे संसाधन नहीं हैं. प्रांतीय सरकार ने आज 1 अप्रैल से लॉकडाउन लागू करना शुरू कर दिया है लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है."

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था 'ह्यूमन राइट्स वॉच' के एक बयान में भी इसी तरह अफगानिस्तान में अपर्याप्त चिकित्सीय सुविधाओं के बारे में बताया गया है. बयान में कहा गया, "अफगान सरकार हेरात में प्रांतीय और जिला केंद्रों में कोविड-19 रोगियों के लिए कई नए क्लीनिकों के साथ ही 100-बैड के अस्पताल का निर्माण कर रही है, लेकिन सुरक्षात्मक उपाय, वेंटिलेटर और अन्य उपकरण अपेक्षित जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं हैं."

मैंने जम्मू-कश्मीर के एक डॉक्टर शाह असरार से भी बात की जो काबुल में कैशा हेल्थकेयर अस्पताल में आंतरिक चिकित्सा सलाहकार के रूप में काम करते हैं. उन्होंने भी यह कहा कि अस्पताल में डॉक्टरों के लिए सुरक्षात्मक उपकरणों का अभाव है और उन्होंने भारतीय दूतावास में भी इस मुद्दे को उठाया. वह इस बात को लेकर परेशान दिखे कि काबुल में रहें या यहां से चला जाए.

उन्होंने कहा "एक डॉक्टर होने के नाते अगर मैं संकट के समय अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं करूंगा तो मैं खुद को दोषी महसूस करूंगा. एक सैनिक की तरह मैं एक डॉक्टर होने के नाते युद्ध का मैदान नहीं छोड़ सकता."

वह आगे कहते हैं, "लेकिन आपको अच्छे उपकरणों की जरूरत है. जिस तरह से बम डिस्पोजल एक्सपर्ट को बम को डिफ्यूज करने के लिए सुरक्षा उपकरणों की जरूरत होती है उसी तरह हम डॉक्टरों को भी अपनी सुरक्षा के लिए पीपीई की जरूरत है."

“मैं यहां अफगानिस्तान में अकेला हूं. इसलिए कोरोना से लड़ाई में यदि मैं इससे संक्रमित हो जाता हूं, तो कोई भी मेरी देखभाल करने के लिए नहीं होगा.” उन्होंने आगे कहा कि एक डॉक्टर होने के अलावा, वह एक बेटा, एक पति और एक पिता भी हैं. ''हालांकि कई बार मुझे चिंता होती है लेकिन मैं अपने कर्तव्य से भाग नहीं सकता. मुझे ऐसी शिक्षा नहीं मिली है. अगर मैं यहां से निकल भी जाता हूं तो भी मैं लॉकडाउन में घर कैसे पहुंचूंगा. इसलिए मुझे यहीं पर सावधानी से रहना होगा."

अन्य डॉक्टरों ने कहा कि अफगानिस्तान में जनता को स्थिति की गंभीरता का एहसास नहीं है. गाजियाबाद के मूल निवासी गोविंद गोयल पिछले 10 साल से अफगानिस्तान में काम कर रहे है. वह काबुल में अमीरी मेडिकल कॉम्प्लेक्स में कार्डियोलॉजिस्ट हैं. उन्होंने कहा, "सरकार द्वारा लोगों को जागरूक करने के लिए इतने प्रयासों के बावजूद आम जनता वायरस को लेकर लापरवाह है. उनका मानना है कि कोरोनावायरस उन्हें प्रभावित नहीं कर सकता. यह हमारे लिए एक बड़ी समस्या है." अपने कार्यस्थल की स्थितियों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, “अपने अस्पताल में हम बेहद सावधानी बरत रहे हैं और डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं. हमने अस्पताल के मुख्य गेट पर एक थर्मल डिटेक्टर लगाया है. चिकित्सा कर्मचारियों को सुरक्षात्मक उपकरण प्रदान किए हैं. जिन लोगों में लक्षण दिख रहे हैं उनके लिए ओपीडी सुविधाएं परिसर में बनाई गई हैं और हम उन्हें अस्पताल की इमारत के अंदर जाने की अनुमति नहीं दे रहे हैं.” उन्होंने आगे कहा, "हम रोगियों से हाल ही में की गई यात्राओं के बारे में पूछ रहे हैं क्योंकि बहुत सारे लोग ईरान से आ रहे हैं. बाकी लोगों को खतरे से बचाने के लिए अस्पताल में कोरोनोवायरस से पीड़ित लोगों को नहीं रखा जाता है. हम उन्हें अफगान-जापान संक्रामक रोग अस्पताल में भेज देते हैं."

नाम न छापने की शर्त पर एक अन्य भारतीय डॉक्टर ने मुझे बताया कि उन्होंने पिछले सप्ताह काबुल में दूतावास को मदद के लिए पत्र लिखा था. उन्होंने अपने कार्यस्थल पर पीपीई की कमी के बारे में बताया था. उन्होंने कहा कि दूतावास ने उन्हें बताया कि दूतावास के अधिकारियों ने "दिल्ली में मंत्रालय" से बात की है और वे प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं. अफगानिस्तान में रह रहे अन्य भारतीयों ने मुझे बताया कि भारतीय दूतावास लगभग 200 भारतीयों का एक व्हाट्सएप समूह चलाता है.

हाल ही में, ग्रुप में भेजे एक संदेश में भारतीय दूतावास ने सदस्यों को योग करने का सुझाव देते हुए "मोदी के साथ योग" शीर्षक से एक वीडियो पोस्ट किया है. "अभूतपूर्व कठिनाइयों के इन घंटों में नीचे दिए गए योग के ये वीडियो आपके मन को शांत करेंगे और मन की जागरूकता बढ़ाएंगे." भारतीय दूतावास ने इस बारे में मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया.

व्हाट्सएप ग्रुप पर आए मैसेज में आगे कहा गया, “भारतीय दूतावास कठिनाइयों को समझता है. कोविड-19 से बचने के लिए लॉकडाउन और यात्रा न करना ही हमारे लिए अच्छा होगा. एक दूसरे से दूरी बनाए रखें और स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा निर्धारित प्रॉटोकॉल का पालन करें. जैसे ही भारत में लॉकडाउन हट जाएगा और यात्रा प्रतिबंधों में ढील दी जाएगी हम अपने लोगों के पास वापस जा सकेंगे."

अनुवाद : अंकिता