वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 सितंबर को चौंकाने वाली घोषणा करते हुए कॉरपोरेट कर को 20 फीसदी कम कर दिया. कर और उपकर को मिला कर कंपनियों को फिलहाल अपनी आय का 34.9 फीसदी करों के रूप में भुगतान करना पड़ता है. कर में की गई कटौती के बाद यह दर 25.17 फीसदी रह जाएगी. हाल के महीनों में यह बात एकदम साफ हो चुकी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ढलान पर है. सीतारमण की घोषणा इसी का एक उपाय है. सरकार को उम्मीद है कि कर में कटौती करने से कंपनियां अपने उपभोक्ताओं को सामान और सेवाओं में छूट देंगी जिससे अर्थतंत्र में तरक्की और पूंजी निवेश और रोजगार में बढ़ोतरी होगी. इस घोषणा ने बाजार पर अच्छा असर डाला और सेंसेक्स पांच साल में पहली बार एक ही दिन में 1800 अंक चढ़ गया.
इससे पहले सीतारमण मंदी को मानने को तैयार नहीं थीं. सितंबर की शुरुआत में जब भारत की विकास दर 8 फीसदी से गिरकर 5 फीसदी रह गई तो सीतारमण आर्थिक गिरावट के सवालों से बचती नजर आईं. दूसरी बार उन्होंने ऑटो उद्योग में जारी संकट के सवाल पर भी ऐसा ही किया. अगस्त में वाहनों की बिक्री 22 सालों में सबसे कम थी. घरेलू कारों की बिक्री पिछले साल अगस्त की तुलना में 41 फीसदी नीचे आ गई. इस माह व्यवसायिक वाहनों की बिक्री 38 फीसदी नीचे पहुंच गई और मोटरसाइकिल तथा स्कूटर जैसे दोपहिया वाहनों की बिक्री भी 22 फीसदी लुढ़क गई. अगस्त में भारत की सबसे बड़ी वाहन निर्माता कंपनी मारूति सुजुकी ने 3000 ठेका मजदूरों को काम से निकाल दिया. सितंबर में अशोक लेलैंड ने घोषणा की है कि वह 52 दिनों के लिए अपने संयंत्रों में उत्पादन रोक देगी. इन 52 दिनों का वेतन मजदूरों को नहीं मिलेगा.
सितंबर के मध्य में सीतारमण ने दावा किया था कि चौपहिया वाहनों की बिक्री इसलिए कम हो रही है क्योंकि वर्तमान पीढ़ी मासिक किस्तों में कार खरीदने की जगह कैब सेवाओं का इस्तेमाल करने में ज्यादा यकीन रखती है. उनकी यह टिप्पणी मांग के कम होने के असली कारणों पर पर्दा डालने जैसी थी. इसी आयु वर्ग के लोगों पर किया गया एक सर्वे, मंत्री सीतारमण के दावे से अलग तस्वीर पेश करता है. 2018 में मिंट और ब्रिटेन की बाजार पर शोध करने वाली कंपनी यूगोव ने 180 शहरों के 5000 लोगों का सर्वे किया. जिसमें पाया गया था कि सर्वे में भाग लेने वालों लोगों में से 80 फीसदी, अपना खुद का वाहन खरीदने की इच्छा रखते हैं.
आर्थिक मंदी को अस्वीकार करने की सरकार की कोशिश चिंताजनक तो है ही इससे भी बड़ी चिंता उसके समाधानों से पैदा हो रही है. सरकार मानकर चल रही है कि कॉरपोरेटों को करों में छूट देने से आर्थिक मंदी से निपटा जा सकता है और इस छूट से कॉरपोरेटों को मिलने वाला लाभ नीचे की ओर रिसकर लोगों तक पहुंचेगा. बीजेपी सरकार इसी लाइन पर सोच रही है लेकिन सच्चाई यह है कि ये एक गलत उपाय है. इस लाइन की एक कमजोरी तो यह है कि यह ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में घटी हुई मांग को नजरअंदाज करती है. साथ ही यह असंगठित क्षेत्र को भी ध्यान में नहीं रखती जो भारतीय अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा हिस्सा है. सरकार के पास उस समस्या की समझदारी का अभाव है जिसमें भारतीय अर्थव्यवस्था आज फंसी हुई है. इसके अलावा सरकार सिर्फ कॉरपोरेट को फायदा दे रही है लेकिन नोटबंदी और माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के अर्थतंत्र पर पड़े असर को जानबूझकर अनदेखा कर रही है.
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