इतिहास को जानबूझ कर नजरअंदाज किया जा रहा है : सबरीमाला और आदिवासी देवता का ब्राह्मणीकरण

विष्णु विश्वनाथ/द कैरेवन
02 November, 2018

28 सितंबर को, सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने केरल के पथानामथिट्टा जिले की पहाड़ी पर स्थित सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया. इस मंदिर का प्रबंधन सामाजिक-धार्मिक ट्रस्ट त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड करता है. यह मंदिर अय्यप्पा देवता का है. हिंदू पौराणिक मान्यता है कि अय्यप्पन शाश्वत ब्रह्मचारी हैं. 1955 के आसपास बोर्ड ने मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं का प्रवेश निषेध कर दिया ताकि देवता के शाश्वत ब्रह्मचर्य के प्रण की रक्षा हो सके. सर्वोच्च अदालत के फैसले के खिलाफ हजारों लोग केरल की सड़कों पर उतर आए और दावा किया कि यह फैसला उनके विश्वास पर हमला है. 17 अक्टूबर को मासिक पूजा के लिए छह दिनों के लिए मंदिर के द्वार खोल दिए गए. जिन महिलाओं ने मंदिर में जाने के प्रयास किया उन पर भीड़ ने हमला किया. दंगों जैसे हालात बन गए. कोई भी महिला मंदिर के अंदर नहीं जा सकी.

अपने फैसले में सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि महिलाओं को प्रवेश करने से रोकना अस्पृश्यता का एक रूप है. मंदिर में गैर ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति भी सबरीमाला में विवाद का मुद्दा है. उस फैसले में कहा गया है, “धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित होने पर भी धार्मिक कर्मकांड से महिलाओं के बहिष्कार की बात, स्वतंत्रता, गरिमा और समानता के संवैधानिक मूल्यों के अधीन है. बहिष्कार प्रथा संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है.” फैसले के मद्देनजर मला अराया, जिसे केंद्र सरकार की सूची में अनुसूचित जनजाति माना गया है, मंदिर में धार्मिक अनुष्ठानों का अभ्यास करने का दावा कर रहा है. मला अराया, शब्दमलय अरायणसे आया है जिसका अर्थ हैपहाड़ियों का राजा”. यह केरल के कोट्टयम, इड्डुक्कि और पत्तनमतिट्टा जिलों के क्षेत्र में सबसे बड़ी जनजातीय समुदायों में से एक है.

इस समुदाय का दावा है कि वे लोग 1902 तक इस मंदिर में पूजापाठ करते थे. उस साल एक ब्राह्मण परिवार ने मंदिर में पूजापाठ का जिम्मा ले लिया और समुदाय के लोगों का प्रवेश मंदिर में वर्जित कर दिया गया. उस समय सेथंत्रीअथवा मंदिर के मुख्य पुजारी का पद पारिवारिक हो गया है . मला अराया समुदाय का कहना है कि बाद में मंदिर के इतिहास और इसके अनुष्ठानों का ब्राह्मणीकरण हो गया और आदिवासी समुदाय को मंदिर से प्रभावकारी रूप से हटा दिया गया.

एक्या मला अराया महासभा संगठन जो कि केरल के मला अराया लोगों के कल्याण की दिशा में काम कर रहा है. कारवां की रिपोर्टिंग फेलो आतिरा कोनिक्करा के साथ एक साक्षात्कार में महासभा के महासचिव पी. के. सजीव ने मला अराया लोगों के विश्वास, मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से संबंधित विवाद और मंदिर के अनुष्ठानों का ब्राह्मणीकरण पर बातचीत की. सजीव कहते हैं, “मेरा सबसे बड़ा विरोध इस बात पर है कि इतिहास को जानबूझ कर नजरअंदाज किया जा रहा है.”

आतिरा कोनिक्करा- ताणमोन मडोम द्वारा हथिया लिए जाने से पहले मला अराया किस तरह के अनुष्ठान और रीति रिवाजों का पालन करते थे? 

पी. के. सजीव- श्री अय्यप्पन का जन्म मला अराया समुदाय के कंदन और करुथम्मा के यहां पोन्नम्बलमेडु की एक गुफा में हुआ था. (सबरीमाला मंदिर के पास एक जिला में है पोन्नम्बलमेडु). उनके जन्म के समय चोल लोग सौ साल से केरल के प्रति आक्रमक थे. कंदन और करुथम्मा ने कोरमण नाम के पुजारी के यहां शरण ली और चोलों को पराजित करने के लिए पूजा की. ऐसा कहा जाता है कि उन्हें 41 दिनों तक उपवास करने के लिए कहा गया था जिससे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति होगी जो चोलों को पराजित करेगा. 41 दिनों के उपवास के बाद श्री अय्यप्पन का जन्म हुआ जिन्होंने चोल साम्राज्य के खिलाफ लोगों को गोलबंद किया. श्री अय्यप्पन ने मार्शल आर्ट्स में पारंगत लोगों को संगठित किया और एक ताकतवर सेना का गठन किया. इस तरह उन्होंने चोलों का सामना किया. 1800 तक मला अराया ने मंदिर की देखरेख की. अय्यप्पन के समाधि लेने के बाद अनुष्ठानों का आरंभ हुआ. 41 दिनों के अनुष्ठान की परंपरा सबरीमाला को अन्य मंदिरों से अलग करती है. 

जहां तक मेरी जानकारी है संख्या 18 (मंदिर का पवित्र भाग तक जाने वाली सीढ़ियां) और 41 (सबरीमाला की तीर्थयात्रा से पहले रखा जाने वाला 41 दिन का उपवास) का हिंदू पुराणों में कोई महत्व नहीं है. संख्या 18 का तात्पर्य मला अराया के विश्वासों में उन 18 पहाड़ियों से है जो सबरीमाला को घेरे हुई हैं. अय्यप्पन के दर्शन से पहले श्रद्धालु को 18 पहाड़ियों को नमन करना होता है. 

मला अराया के रीति रिवाजों ने सबरीमाला में प्रवेश किया. बाद में इनका ब्रह्मणीकरण हो गया. 18 सीढ़ियों को बाद में दूसरा नाम दे दिया गया- साम, धन, भेद तथा अन्य. नेयाभिषेकम यानी घी से अभिषेक जिसे मंदिर में आने के बाद सबसे पहले किया जाता है, पुरानी परंपरा नहीं है. इससे पहले मला अराया 41 दिनों के उपवास के बाद तेनाभिषेकम करते थे. वो लोग शहद इकट्ठा करते थे और अय्यप्पन की मूर्ति को स्नान कराते थे. यह सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान होता था.

एके- मला अराया को कब और कैसे सबरीमाला से बेदखल किया गया? 

पीकेएस - यह 1800 के आसपास हुआ जब पांडलम के राजा का शासन शुरू हुआ. केरल में सिर का कर और छाती का कर जैसे कानून थे. (उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक केरल ने निचली जाति के समुदायों के सभी सदस्यों के ऊपर सिर ढांकने पर कर लगाया था और महिलाओं पर स्थनों को ढंकने का कर लगाया जाता था.) दुर्व्यवहार और अत्याचार बहुत अधिक था. जो कुछ मैंने सुना है उसके अनुसार सभी को डरा धमका कर पहाड़ियों से खदेड़ दिया गया. उन्हें अपने घरों से पलायन करना पड़ा- करिमाला के हमारे पूर्वजों को थोडुपुझा तक पलायन करना पड़ा.

ये निर्दोष लोग थे जिनकी रक्षा करने वाला कोई नहीं था. आज हमारी रक्षा करने के लिए संविधान है. लेकिन उस वक्त ताकतवर लोग निदोर्षों पर हमला किया करते थे. 

एके- ताणमोन मडोम परिवार ने मंदिर का जिम्मा कैसे हासिल किया? क्या उनके हथियाने के बाद मंदिर के रीति रिवाजों में परिवर्तन हुआ? 

पीकेएस- उन्हें यह जिम्मेदारी त्रावणकोर राज्य ने सौंपी. 1942 के आसपास, जब राजा लोग पूजा के लिए मंदिर जाते तो वह अपने थंत्री (ताणमोन मडोम) ले कर आते. 18 सीढ़ियों की पूजा (पणी पूजा) उस समय प्रचलित नहीं थी. आज इस मंदिर में प्रचलित सभी अनुष्ठान उनके द्वारा लाए गए हैं. 

अय्यप्पन नाम अय्यन और अप्पन से बना है. अप्पन यानी पिता जिनका हम सम्मान करते हैं. प्रचीन लोग आमतौर पर अय्यन नाम का प्रयोग करते थे. हमारे समुदाय में अधिकांश ऐसे दादा-नाना थे जिसका नाम अय्यपन था. लेकिन अय्यपन नंबूदरी नाम के लोग नहीं होते. सदियों से इस मंदिर की कमाई खाने वाले परिवार में क्यों किसी का नाम अय्यपन नहीं है? 

एके-1950 में टीडीबी की स्थापना के बाद क्या बदलाव आया? 

पीकेएस- केरल में अधिकांश ऐसे मंदिर, जो पारायर, पुलायर, संबावर या आदिवासियों से संबंधित थे लेकिन बाद में उनका ब्राह्मणीकरण हो गया और दूसरी परंपराओं को अपना लिया. यहां तक कि मेरे समुदाय द्वारा संचालित करिमाला और निलाकल महादेव मंदिरों का भी ब्राह्मणीकरण हो गया. ये अब देवस्वाम बोर्ड द्वारा संचालित हैं. वलियंकावू देवी मंदिर जहां भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं वह भी अब देवस्वाम बोर्ड द्वारा संचालित है.

एके - मकर ज्योति कैसे मला अराया के विश्वासों में स्थापित हुआ? 

पीकेएस - जब श्री अय्यप्पन ने समाधि ली, पोन्नम्बलमेडु में उनके माता-पिता इस बात को सहन नहीं कर सके. तब श्री अय्यप्पन उनके सामने प्रकट हुए और कहा कि वह हर साल ज्योति के रूप में प्रकट होंगे. यह अनुष्ठान उस ज्योति (पोन्नम्बलमेडु में) को जीवित करने के लिए किया जाता है. पहले तेलीपाडी का प्रयोग होता था अब कपूर जलाया जाता है. 

वन अधिकारियों ने वनों में रहने वाले मला अराया लोगों को अनेक प्रकार से परेशान किया. उसके बाद भी वे लोग अनुष्ठान को पूरा करने जाते रहे. लेकिन जब बहुत परेशान किया जाने लगा तो ऐसा करना असंभव हो गया. अरुविकल अप्पोप्पन करिमाला में पुजारी थे. धमकियों के चलते उन्हें कलाकेट्टी गांव जाना पड़ा. तो भी उन्हें दिया जलाने के लिए आना पड़ता और ऐसा करने के लिए कई पहाड़ियों को लांघना होता. वन अधिकारियों और देवस्वाम बोर्ड के लोगों ने उन्हें डराया और खदेड़ दिया. 

एके - सबरीमाला में मला अराया के जीवन से जुड़े पुरातात्विक सबूत क्या हैं? 

पीकेएस- ये मंदिर तकरीबन 10 हजार साल पुरानी पहाड़ियो पर बने हैं. मंदिर के खंबों में बारीक नक्काशी है. ये नक्काशी करिमाला, पोन्नम्बलमेडु, कोताकुतितारा, निलाक्कल, थलापरामला और अन्य स्थानों में पाई जाती हैं. अब ये खंडहर हो चुका है. ये जंगलों में हैं. इन्हें जानबूझ कर नजरअंदाज कर दिया गया है ताकि नए अनुष्ठान और परंपराओं को स्थापित किया जा सके. आज के समय में इस तरह की मूर्तियां नहीं दिखाई पड़ती. पुरानी मूर्तियों को बदल दिया गया है और नई मूर्तियों को स्थापित किया गया है. 

एक सभ्यता और संस्कृति मिट गई है. मेरा सबसे बड़ा विरोध इस बात पर है कि इतिहास को जानबूझ कर नजरअंदाज किया जा रहा है.

एके - क्या मला अराया समुदाय में ऐसे लोगे हैं जो आज भी सबरीमाला के आस पास रह रहे हैं?

हां ये लोग चार पहाड़ियों, उडुमबरमाला, कोपणमाला, निलाक्कल और करिमाला में रहते हैं. इन लोगों ने अपने लिए नए मंदिर बनाए हैं क्योंकि ये लोग देवस्वाम बोर्ड के नियंत्रण वाली जगहों में नहीं जा सकते. देवस्वाम को चुनौती नहीं दी जा सकती. 

एके- क्या आपने कानूनी सहायता लेने का विचार किया है?

पीकेएस- हां हम लोग सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालने पर विचार कर रहे हैं. मुझसे लोग पूछते हैं कि हमने पहले ऐसा क्यों नहीं किया. अंग्रेजो ने यहां 200 साल राज किया. हमारे पुर्खे 10 साल बाद या 100 साल बाद अपने अधिकारों की मांग कर सकते हैं. लेकिन धमकियों के कारण वह ऐसा नहीं कर सके. अमेरिका में जिस तरह से रेड इंडियन लोगों को खदेड़ा गया उसी प्रकार हम लोगों को भी पोन्नम्बलमेडु से भगाया गया. राजा के शासन के बाद यहां वन अधिकारियों का राज कायम हो गया. 

सुप्रीम कोर्ट का आदेश ऐतिहासिक है क्योंकि इसने हम लोगों को बोलने का मौका दिया. इस फैसले ने हम लोगों को ऐतिहासिक सच को सामने लाने का बहुत बड़ा अवसर दिया है. हम अपने अधिकारों की पुनः स्थापना चाहते हैं.

मंदिर पर हमारे समुदाय का अधिकार था. हम लोग थेनाभिषेकम करना चाहते हैं जो मलयालम कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक माह की एक तारीख को किया जाता है. हम लोग पोन्नम्बलमेडु में मकर ज्योति अनुष्ठान करना चाहते हैं. हम कोई नई चीज नहीं मांग रहे. ये हमारे दादा-परदादाओं की परंपरा है. 

लोकतंत्र में जिन लोगों के पास शक्ति है उन्हें शक्तिहीन कर दिए गए लोगों का अधिकार दिलाना होता है. मला अराया लोगों की तुलना दूसरे समुदाय से नहीं की जा सकती क्योंकि हमारे लिए हमारी परंपराएं मछली के लिए पानी और मनुष्य के लिए वायु के समान है. जब पेड़ ऊंचा उठता है तो भी उसकी जड़ जमीन में ही रहती है. 

एके- क्या सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आप स्वीकार करते हैं?

पीकेएस- यदि महिलाएं देवता पर विश्वास कर मंदिर जाती हैं तो जा सकती हैं. निष्पक्ष रूप से कहूं तो मेरे समुदाय की महिलाएं अपने पीरियड के सात दिनों तक मंदिर नहीं जातीं. मैंने कभी नहीं सुना कि मला अराया समुदाय की युवतियां पीरियड के दौरान सबरीमाला गई हों. लेकिन उस वक्त भी गर्भवती होने के (एक) दो साल बाद ही महिलाओं का पीरियड शुरू होता था. वे 41 दिनों का उपवास निरंतर कर सकती थीं. एक या दो महिलाएं ऐसी स्थिति में वहां गई हैं. 

समुदाय के रूप में हम लोग अपने विश्वासों से जुड़े हैं. लेकिन लोकतंत्र का हिस्सा होने के नाते हम लोग संविधान, न्यायपालिका, सरकार पर बहुत हद तक निर्भर हैं और हमें पता है कि ऐसी व्यवस्थाएं हर अवस्था में राष्ट्र को बचाए रखती हैं. यह एक परिपक्व समाज बनने की दिशा में बदलाव है. 

हम लोग इन्हें श्री सबारीसन (अय्यप्पन के अपने लोग) मानते हैं. यदि इस उम्र की महिलाएं वहां जाती हैं तो हमारा विश्वास है कि वे महिलाएं अय्यप्पन को देखने जा रही हैं क्योंकि अय्यप्पन ने उन्हें बुलाया है. आंदोलनकारियों की बात नहीं है. वो जो विश्वास के कारण वहां जाती हैं उनकी बात है. हम उन्हें कैसे रोक सकते हैं जो स्वामी, अय्यप्पन, को देखने जाना चाहती हैं? उनको रोकना अय्यप्पन को रोकने के समान है.

एके- मैंने एक लेख पढ़ा था जिसमें आपने लिखा था कि मला अराया स्त्री और पुरुष में भेद नहीं करते?

पीकेएस- जी हां हम लोग इस तरह का भेद नहीं करते. नीली माला पहाड़ी का नाम नीली पर पड़ा है जो महिला का नाम है. रामायण में सबरी आश्रम प्रवेश अध्याय है. उस पहाड़ी का नाम सबरी पर पड़ा है. हमें याद रखना चाहिए कि श्री अय्यप्पन ने तपस्वी सबरी की अराधना करने के बाद सबरीमाला को अपनी तपस्या के लिए चुना था. करिमाला के ऊपर चक्की समुदाय की एक महिला ने शासन किया था. इस इलाके में बहुत से लोग बसे हुए हैं. समुदाय की महिला शासन कर सकती थीं. इसी प्रकार साध्वी भी ऊपर उठ सकती है. हमारे विश्वासों में इन दोनों बातों पर रोक नहीं है.