दलबदल कानून को ताक पर रखते पंजाब विधानसभा अध्यक्ष

पंजाब विधानसभा अध्यक्ष राणा कंवरपाल सिंह (दाएं), और राज्य के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल (बाएं), मार्च 2017 में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान. केशव सिंह/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस

इस साल 14 जनवरी को कांग्रेस पार्टी के सदस्य और पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष राणा कंवरपाल सिंह ने आगामी वर्ष के लिए विभिन्न कमेटियों में विधायकों को नामित किया. इनमें से आम आदमी पार्टी (आप) के पांच विधायक थे जो 2017 में चुने गए थे लेकिन बाद में इन लोगों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. ये पांच विधायक अभी तक दुबारा निर्वाचित नहीं हुए हैं परंतु स्पीकर ने इन्हें भी समितियों में शामिल किया है. चार दिन बाद शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने अध्यक्ष के निर्णय की आलोचना करते हुए इसे “नियमों के सभी मूल्यों और नैतिकता के खिलाफ” बताया.

बादल की यह आलोचना संविधान के अनुच्छेद-10 और दल-बदल कानून के तहत है, जो विधायकों को लालच में आकर दूसरी पार्टियों में जाने से रोकता है. यह कानून बताता है कि यदि कोई सदस्य पार्टी छोड़ता है या अपनी पार्टी के विरुद्ध कोई निर्णय लेता है तो विधानसभा से उसकी सदस्यता स्वेच्छा से समाप्त हो जाती है. इस परिस्थिति में, सदन का अन्य सदस्य स्पीकर से उसकी शिकायत कर सकता है. स्पीकर उपरोक्त सदस्य को अपनी बात रखने का एक मौका दे सकता है या जरूरत पड़ने पर मामले को विधानसभा की विशेष समिति के पास भी भेज सकता है. स्पीकर सदस्य को दल बदलने के कारण विधानसभा से अमान्य घोषित भी कर सकता है.

पंजाब विधानसभा स्पीकर की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार सदन के अध्यक्ष को “संसदीय लोकतंत्र की परंपरा का सच्चे संरक्षक की तरह कार्य करना होता है”. लेकिन आप के 5 सदस्य सुखपाल खैरा, बलदेव सिंह, एचएस फुल्का, अमरजीत सिंह संदोहा और नजर सिंह मनशाहिया जिन्हें राणा ने नियुक्त किया है, उन्हें अमान्य घोषित करने की प्रक्रिया को सदन की समिति ने पूरा नहीं किया है. इस मामले के दुबारा हल होने तक इन विधायकों के निर्वाचन क्षेत्र में पुनः चुनाव नहीं होगा. जब मैंने राणा से पूछा कि क्या यह मसला विधानसभा के सितंबर में होने वाले सत्र में उठेगा, तो उन्होंने जवाब देने से इनकार कर दिया.

पंजाब विधानसभा में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि स्पीकर ने अयोग्य विधायकों के मामलों में टालमटोल की हो. अक्टूबर 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह बादल को एसएडी से पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निकाला गया था. मनप्रीत उस समय पंजाब के गिद्दड़बाहा विधानसभा से विधायक थे. लगभग 6 माह बाद अपनी पार्टी ‘द पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब’ (पीपीपी) बनाने के बाद उन्होंने स्पीकर को अपना इस्तीफा सौंपा था. लेकिन दुबारा चुनाव लड़े बिना भी मनप्रीत सदन में गिद्दड़बाहा विधानसभा से विधायक बने रहे.

उसी साल, वरिष्ठ नेता बीर देवेंद्र सिंह भी एसएडी छोड़ मनप्रीत की पीपीपी में शामिल हो गए थे. बीर देवेंद्र ने बताया कि पीपीपी सदस्यों ने मनप्रीत से पार्टी की पवित्रता के बनाए रखने का आग्रह किया था लेकिन बादल के भतीजे अनुचित सुविधाएं लेते रहे. जिसके परिणामस्वरूप उपचुनाव नहीं हुए और गिद्दड़बाहा में चुनाव जनवरी 2012 में असेंबली का कार्यकाल पूरा होने पर नई विधानसभा के साथ ही हुए. मनप्रीत की पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया और वह अब राज्य के वित्तमंत्री हैं. मैंने उनसे कई बार बात करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल पाया.

भुलत्थ से आप के विधायक सुखपाल खैरा ने सदन में अपनी सदस्यता का बचाव करते हुए कहा है कि मनप्रीत से अलग वह 6 माह पहले पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं. इस साल जनवरी में खैरा आप छोड़कर पंजाब एकता पार्टी (पीईपी) में शामिल हो गए. उसी समय जैतो से विधायक बलदेव सिंह भी आप छोड़कर पीईपी में शामिल हुए. बाद में स्पीकर राणा ने खैरा को नोटिस भेजकर 15 दिन में जवाब मांगा. राणा ने खैरा पर नोटिस का जवाब न देने का आरोप लगाया है. जब मैंने खैरा से पूछा कि नई पार्टी बनाने के बाद भी उन्होंने आप से इस्तीफा क्यों नहीं दिया तो उन्होंने कहा, “भुलत्थ विधानसभा के लोगों ने मुझे काम करने के लिए चुना है”.

25 अप्रैल को खैरा ने भटिंडा से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए अपना इस्तीफा स्पीकर को भेजा. बलदेव सिंह ने भी फरीदकोट से चुनाव लड़ा. दोनों हारने के बावजूद विधायक बने रहे. 14 जून को स्पीकर ने खैरा को राज्य विधानसभा समिति का और बलदेव को सरकारी आश्वासनों की समिति का सदस्य नियुक्त किया. बलदेव ने बताया कि स्पीकर ने हमें 20 अगस्त तक अपनी बात रखने को कहा है. जब मैंने बलदेव से पूछा कि क्या वे इस्तीफा देने पर विचार कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा, “देखते हैं... लेकिन मैं निश्चित ही अगले विधानसभा सत्र में उपस्थित रहूंगा”.

आप के पूर्व सदस्य एचएस फुल्का का 8 माह पुराना केस भी अभी नहीं सुलझ पाया है. पेशे से वकील फुल्का 2017 में दाखा विधानसभा से विधायक चुने गए. फुल्का ने अक्टूबर 2018 में पार्टी नेता द्वारा गुरु गोविंद साहब का अपमान करने के बावजूद सरकार के कदम न उठाने के चलते इस्तीफा दे दिया था. जनवरी 2018 में फुल्का ने आप छोड़ दी. उन्होंने मीडिया से कहा कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का पार्टी बन जाना गलत है. लेकिन फुल्का का इस्तीफा सदन में अब तक स्वीकार नहीं हुआ है. उन्होंने फरवरी 2019 के बजट सत्र में भी भाग लिया था. राणा ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा है कि फुल्का का मामला एडवोकेट जनरल के पास भेज दिया है. 14 जून को राणा ने फुल्का को विधानसभा की एक समिति में नियुक्त कर दिया.

आप पार्टी के दो और विधायक रूपनगर से अमरजीत सिंह संदोहा और मानसा से नजर सिंह मनशाहिया कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद भी सदन में बने हुए हैं. वे भी 2019 लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी बदल चुके हैं. सामाजिक कार्यकर्ता दिनेश चडढ़ा ने संदोहा को हटाने के लिए स्पीकर के सामने एक याचिका दायर की है. चडढ़ा ने लिखा, “संदोहा के पार्टी बदलने के समय आप भी वहां मौजूद थे, इसलिए इस बात की जानकारी आपको पहले से थी”. मनशाहिया ने मुझे बताया कि स्पीकर ने उन्हें अपना स्पष्टीकरण देने के लिए 31 जुलाई को एक मीटिंग बुलाई है. संदोहा और मनशाहिया क्रमश: विशेषाधिकार और लाइब्रेरी कमिटि के लिए नामित किए गए हैं. जब मैंने राणा से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि अभी यह प्रकरण “विचाराधीन” है.

(अंग्रेजी में प्रकाशित रिपोर्ट का अनुवाद मोहम्मद ताहिर शब्बीर ने किया है.)