अमित शाह को काला झंडा दिखाने वाली नेहा यादव का दावा, "पुलिस ने हमें एनकाउंटर की धमकी दी"

नेहा यादव शाहिद तांत्रे/कारवां
04 October, 2018

27 जुलाई को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इलाहाबाद में कुंभ मेले की तैयारी की समीक्षा करने और शहर के साधुओं से भेट करने पहुंचे थे. एयरपोर्ट से लौटते वक्त अमित शाह के काफिले को तीन छात्रों ने रोका. नेहा यादव, रमा यादव और किशन मौर्य काफिले के सामने आ गए और पुलिस की गाड़ी के सामने काला झंडा लहराते हुए 'अमित शाह वापस जाओ' के नारे लगाने लगे. इस घटना के थोड़ी ही देर बाद सोशल मीडिया में जारी एक वीडियो में देखा जा सकता है कि पुलिस छात्राओं को खींच कर हटा रही है और एक छात्रा को डंडे से मार रही है. इन विद्यार्थियों को गिरफ्तार कर लिया गया और 14 दिन की न्यायिक हिरास्त में भेज दिया गया. तीन दिन बाद इन सभी को जमानत मिल गई. तीनों विद्यार्थी समाजवादी पार्टी के छात्र संगठन से जुड़े हैं.

दिल्ली में कारवां के स्टाफ राइटर सागर ने नेहा यादव से उनके विरोध प्रदर्शन पर बातचीत की और जानना चाहा कि विरोध के बाद उनको किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा. नेहा के ऊपर राष्ट्र विरोधी नारे लगाने का आरोप है. 24 वर्षीय नेहा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आहार विज्ञान विषय में पीएचडी कर रही हैं. वह बताती हैं, ‘‘पुलिस चाहती थी कि वह हमें बुरी तरह से पीटे ताकि हम सरकार के खिलाफ बोलने से डर जाएं.’’ नेहा का दावा है कि, ‘‘हमें अमित शाह के कहने पर पीटा गया.”

सागरःहमें अपने बारे में बताएं?

नेहाः मेरा घर बरेली में है. मेरी मां उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव ऊंचा की प्रधान हैं. मेरे पिता आवकाश प्राप्त सरकारी कर्मचारी हैं. 2016 में मैंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से खाद्य एवं पोषण विज्ञान में ग्रेजुएशन किया और एक साल विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग में शोध फेलो रही हूं. मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पीएडी की प्रवेश परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त किया था. 2017 से मैंने अपनी पीएचडी की पढ़ाई शुरू की है.

सागरःआप लोगों ने अमित शाह के काफिले को कैसे रोका और उसके बाद क्या हुआ? सुरक्षा अधिकारियों की क्या प्रतिक्रिया थी?

नेहाः अमित शाह 27 जुलाई को इलाहाबाद आने वाले थे. हमारा मकसद उन्हें काला झंडा दिखाना या उनके काफिले को रोकना नहीं था. हम तो बस अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपना चाहते थे. हमने अलग अलग स्थानों पर इसकी कोशिशें की. जब वह संगम (इलाहाबाद में एक ऐसी जगह जहां गंगा, यमुना और मिथकीय नदी सरस्वती का मेल होता है) गए तो हमने उनसे वहां भी मिलने की कोशिश की. जब वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दू हॉस्टल से गुजर रहे थे तो भी हमने उनसे मिलने का प्रयास किया. जब हमारी सारी कोशिशें बेकार हो गईं तो धूमनगंज से लौटते वक्त हम लोग उनके काफिले के सामने आ गए. आरक्षण जैसी असल मांगों के लिए हमने ऐसा किया था. इस विश्वविद्यालय में आरक्षण लागू करने में भ्रष्टाचार हुआ है और इस बात को दबाया जा रहा था. हम महिला सुरक्षा का मामला भी उठा रहे थे. हम अपनी मांगें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के सामने रखना चाहते थे. यदि आप मुझसे पूछेंगे कि बीजेपी में आज सबसे ताकतवर नेता कौन है तो मैं कहूंगी अमित शाह. उन्होंने ही मोदी को प्रधानमंत्री बनाया है.

हमने जब उनका काफिला रोका तो उन्हें गाड़ी से बाहर आकर पूछना चाहिए था कि हम लड़कियां उनसे क्या कहना चाहती हैं, हम क्यों सड़क पर उतर आईं हैं? उनके पास जेड श्रेणी की सुरक्षा है. हमसे बात करने के बजाए उन्होंने अपने कमांडो को हमें पीटने के लिए भेज दिया. पुलिस ने हमें बालों से खींचा और पीटने लगी. हमें गाड़ियों में डाल कर जंगल की ओर जाने लगी और एनकाउंटर कर देने की धमकी देने लगी. वे लोग रात में फिर आए और हमें पीटने लगे यह सब सुबह तक चलता रहा. लेकिन न अमित शाह ने और न ही प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया कि ये लड़कियां कौन हैं. किसी ने जानने की कोशिश नहीं की कि हमारी मांगें क्या हैं. हम लोगों का कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है. मैं पीएचडी कर रही हूं. अपनी पढ़ाई को खतरे में डालना नहीं चाहती. मैं जेल जाना या अपने ऊपर मामले दर्ज करवाना नहीं चाहती. हमारे देश में ऐसा कभी नहीं हुआ, कांग्रेस के कार्यकाल में भी ऐसा नहीं हुआ जो आज भाजपा के शासन में हो रहा है.

सागरःक्या आप विस्तार से बताएंगी कि आप की गिरफ्तारी के बाद क्या क्या हुआ?

नेहाः जैसे ही हमने काफिले को रोका, अमित शाह के कमांडो गाड़ियों से बाहर निकल आए. वे लोग डंडों से हमें पीटने लगे. उसके बाद यूपी पुलिस का एक कांस्टेबल हम पर कूद पड़ा और हमें बालों से पकड़ कर खींचने लगा. सामने से दूसरा कमांडो डंडे से हम लोगों को पीट रहा था. हमें जबरन गाड़ियों में डाल कर धूमनगंज के एक वीरान रेलवे क्रॉसिंग की ओर ले गए. जहां से उठाया गया था उससे दो-तीन किलोमीटर के फासले पर यह जगह है. दो-चार घंटों तक वे लोग यहां से वहां घूमाते रहे. उस जगह के आसपास पुलिस चौकी भी नहीं थी. सिर्फ जंगल ही जंगल था. एक दो बार उन लोगों ने हमें गाड़ी से निकाला और डराने की कोशिश करने लगे. उनके साथ कोई महिला पुलिस नहीं थी. हममें से किसी को नहीं पता था कि हम लोग कहां हैं. चार—पांच घंटे तक डराने, धमकाने और पीटने के बाद हमें आशा ज्योति केन्द्र (पीड़ित महिलाओं के लिए सरकारी आवास) ले जाया गया. हमारे छात्र साथी किशन मौर्य को पुलिस स्टेशन के शौचालय में पूरी रात बंद करके रखा गया. हम लड़कियों को केन्द्र के एक अजीब से कमरे में ले जाया गया. हमें किसी से भी नहीं मिलने दिया. रातभर भूखा रखा गया. सुबह जब हमारे लोग खाना लेकर मिलने आए तो उन्हें दूर से भी मिलने नहीं दिया गया. समाजवादी पार्टी के बहुत से नेता भी आए लेकिन किसी को भी हमसे मिलने नहीं दिया गया. सत्ताधारी पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता यह पूछने नहीं आया कि हम लोग क्यों विरोध कर रहे थे. विपक्ष के लोगों को हमसे मिलने नहीं दिया गया.

रात भर वहां रखने के बाद जब सुबह महिला पुलिस स्टेशन की इंचार्ज कल्पना चौहान आईं तो हम लोगों को गालियां देने लगीं. मैं और रमा जिस कमरे में थे वहां एक महिला कांस्टेबल के साथ कल्पना हमारा वीडियो बनाने लगीं. हमें डराने लगीं कि हम लोग राष्ट्र विरोधी हैं और राष्ट्र विरोधी नारे लगा रहे थे. हमारे बाल खींचने लगीं और हमें थप्पड़ मारने लगीं. उसके बाद हम लोगों को नीचे ले जाकर गाड़ियों में भरने लगे. ये बात 28 जुलाई की सुबह की है. उस दिन हम लोगों को मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया था. हमारी मेडिकल जांच भी ठीक से नहीं होने दी गई. मेरे पैरों में बहुत चोट आई थी और मैं ठीक से चल नहीं पा रही थी. मैंने एक्स-रे करवाने की मांग की लेकिन वे लोग इसके लिए तैयार नहीं हुए. उन लोगों ने सतही तरह की जांच की और हमें कोर्ट ले गए और वहां से हमें जेल भेज दिया गया.

पुलिस की कोशिश थी हम पर दवाब बनाए और इतना पीटे कि हम लोगों के भीतर हमेशा के लिए भाजपा का डर समा जाए. उन्होंने सिर्फ हमें ही नहीं हमारे परिवार वालों को भी बार बार यह कह कर डराया कि हम लोगों को देशद्रोही करार दे दिया जाएगा. हम लोगों ने कभी भी देश विरोधी नारे नहीं लगाए. हम लोग तो कह रहे थे ‘‘अमित शाह वापस जाओ वापस जाओ’’. (9 अगस्त को जब कल्पना चौहान से फोन से संपर्क किया गया था तो उन्होंने लड़कियों के साथ मारपीट करने की बात से इनकार कर दिया था.)

सागरःआपके खिलाफ क्या आरोप थे और जेल के अंदर आप के साथ क्या हुआ?

नेहा: इस मामले में पुलिस ने हमसे कभी भी ठीक से पूछताछ नहीं की. उन्हें पूछना चाहिए था कि हमने अपनी जान को दांव पर लगा कर क्यों ऐसा किया. पूछना चाहिए था न? हम लोग इतने बड़े काफिले के सामने आ गए. गाड़ियां सौ की रफ्तार से दौड़ रही थीं. तो भी हमने काफिले को रोक दिया. हमारे खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 147 (गैरकानून जमावडे की सजा), धारा 188 (कार्यकारी आदेश का उल्लंघन), धारा 341 (गलत तरीके से अवरोध खड़ा करना) धारा 505 (सार्वजनिक उपद्रव) और आपराधिक काननू संशोधन अधिनियम की धारा 7 के तहत मामला दर्ज किया गया. ये धाराएं इसलिए लगाई कि हमारा आपराधिक रिकॉर्ड बन जाए. उसके बाद हम लोगों को जेल भेज दिया गया.

हम लोग जेल के भीतर गए ही थे कि जेल गार्ड ने हम लोगों को पहचान लिया और कहने लगा ‘‘ये वही लड़कियां है जो पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रही थीं. ये लोग देशद्रोही हैं. इन लड़कियों को अलग बैरक में रखना चाहिए नहीं तो दूसरों पर गलत असर पड़ेगा.’’ हम लोगों को अलग बैरक में भेज दिया गया. जब जेलर आए तब जाकर हम लोगों को सामान्य बैरक में लाया गया. हम लोग रातभर अलग बैरक में रहे और सुबह सामान्य बैरक में भेज दिया गया.

सागरःआपको क्या लगता है कि क्यों छात्रों को सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने पर देशद्रोही कहा जाता है? आपके मामले में यह कैसे किया गया?

नेहा: यदि आप हमारा मामला देखेंगे तो पाएंगे कि हम लोग राष्ट्रीय और विश्वविद्यालय से जुड़े मामले उठा रहे थे. 2014 में मोदी की सरकार बनाने के बाद से जिस भी विश्वविद्यालय में विरोध हुआ उसे इस या उस बहाने से राष्ट्र विरोधी बताया गया. उदाहरण के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कन्हैया कुमार को देशद्रोही बताया गया. सर्वोच्च अदालत ने उसे छोड़ दिया लेकिन जाली वीडियो बना बना कर ऐसी मानसिकता बनाई गई कि देशविरोधी नारे लगाए गए थे. जब हम लोगों ने इसका विरोध बीएचयू में किया तो कहा गया कि इस संस्थान में भी देशद्रोही रहते हैं. इसी तरह जब हम लोग इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कोई मामला उठाते तो हमें किसी न किसी प्रकार से पाकिस्तान से जोड़ दिया जाता है, देशद्रोही कहा जाता है, आतंकवादी कहा जाता. आज छात्र जिस भी मुद्दे को उठाते हैं, ‘‘सर, हमे हॉस्टल नहीं मिल रहा, हमसे गलत तरीके से फीस वसूली जा रही है, दाखिले में भ्रष्टाचार हो रहा है या आरक्षण नीति का सही क्रियांवयन नहीं हो रहा है’’ आप कोई भी मुद्दा उठाइए आपको देशद्रोही बोला जाता है. और यह आप के साथ तब ज्यादा किया जाएगा जब आप भाजपा के समर्थक नहीं होंगे. तब तो आप पक्का देशद्रोही हैं.

जेल से छूटने के बाद जब यूनिवर्सिटी गई तो मेरे अपने गाइड ने पूछा कि क्या मैंने देश के खिलाफ नारेबाजी की है. 'अमित शाह वापस जाओ' का नारा अमित शाह के लिए था और हमने पाकिस्तान का नाम तक नहीं लिया था. हमे झटका लगा कि हमारा अपना गाइड, हमारा अपना विभाग हम पर विश्वास नहीं कर रहा है. वे लोग कह रहे थे कि ऐसे नारा लगाना लोकप्रियता पाने के लिए आज कल चलन में है. अगर हमने ऐसे नारे लगाए होते तो देशद्रोही गतिविधियों से संबंधित आईपीसी की धारा हमारी एफआईआर में जोड़ दी गई होती और हम लोग जेल से बाहर नहीं होते.

सागरःआप समाजवादी पार्टी के छात्र संगठन से जुड़ी हैं इसलिए लागे कह सकते हैं कि आपके विरोध प्रदर्शन के पीछे राजनीतिक कारण हैं. आप इसका क्या जवाब देंगी?

नेहाः अमित शाह की कार के सामने आना हमारा मकसद नहीं था. यह कहना कि यह एक राजनीतिक स्टंट है सरासर गलत होगा. अगर वे (सरकार) हमारी समस्या को सुनते तो हम भला क्यों विरोध करते? उन्हें हमारी मांगों को सुनना चाहिए और नीतियों को लागू करना चाहिए. आज सेक्यूलर लोगों को उनके सम्प्रदायवाद से लड़ने की स्ट्रेटजी बनानी पड़ेगी. उनकी विचारधारा आरएसएस की विचारधारा है, जो महिला विरोधी है, वे लोग हमारे मामलों को जगह देना नहीं चाहते.

सागरःप्रधानमंत्री बनने के बाद से ही नरेन्द्र मोदी बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कह रहे हैं. आपको एसा क्यों लगता है कि भाजपा महिला विरोधी है?

नेहाः यह नारा बस 2019 के आम चुनावों तक के लिए है. धरातल पर यह लोग इसका पालन नहीं करते. इसके उलट उन लोगों ने बेटियों को मारापीटा और जेल भेजा. किसी भी विश्वविद्यालय में जब—जब लड़कियां अपनी मांगो कें साथ सड़क पर आईं हैं तो उन पर लाठियां चली हैं, उन्हें देशद्रोही कहा गया है. हम लोगों को अमित शाह के कहने पर पीटा गया और किसी ने भी नहीं कहा कि डंडो से पीटना सरकार की गलती थी. क्या इसे गलत कहना उनकी जिम्मेवारी नहीं है? जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कहा था कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा को वह कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे. लेकिन उनके शासन में महिलाओं पर सबसे ज्यादा हिंसा हुई है. उनकी सरकार महिलाओं के लिए खतरा है. न यह सरकार बेटियों को पढ़ा रही है, न बेटियों को बचा रही है.

सागरःआप ये क्यों कहती हैं कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एससी, एसटी, ओबीसी छात्रों के दाखिले में और शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण संबंधी नीतियों को लागू नहीं किया जा रहा है?

नेहाः आरक्षण एक बड़ा मामला है. यह कोई उपकार नहीं है, यह प्रतिनिधित्व का अधिकार है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जुलाई 12 और 15 के बीच खुली श्रेणी में स्नातक कोर्स के लिए काउंसलिंग के लिए उम्मीदवारों को बुलाया गया. खुली श्रेणी सभी वर्ग के छात्र—छात्राओं के लिए होती है. इसमें 49.5 प्रतिशत आरक्षित कोटे को बाहर कर दिया गया. ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यक छात्र भी काउंसलिंग के लिए आए थे लेकिन सामान्य श्रेणी के छात्रों को छोड़ सभी को यह कह कर वापस भेज दिया कि किसी और दिन उन्हें काउंसलिंग के लिए बुलाया जाएगा. बाद में उनसे कहा गया कि प्रवेश प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. हमें कभी पता नहीं चला कि इन सीटों को कैसे भरा गया है. उसके बाद सामान्य श्रेणी के छात्रों को उनकी इच्छा के कोर्स में दाखिला दे दिया गया. जब कोई ओबीसी छात्र ऐसी मांग करता है तो उसे उसकी इच्छा के विपरीत पाठ्यक्रम दिया जाता है. आरक्षित श्रेणी के छात्रों को उनका पसंदीदा विषय नहीं दिया जाता. उन्हें उनका अधिकार नहीं दिया जा रहा. आपको पता है वे लोग इंटरव्यू कैसे करते हैं? जब कोई आरक्षित छात्र इंटरव्यू के लिए आता है तो उसके प्रमाणपत्रों को अपूर्ण या अमान्य कह दिया जाता है या वह छात्र इंटरव्यू देने आया ही नहीं ऐसा कह दिया जाता है.

ये लोग विद्यार्थियों के प्रवेश, ऐड—होक और एसोसिएट शिक्षकों की भर्ती या हॉस्टल आवंटन में आरक्षण नियमों का पालन नहीं कर रहे है. विश्वविद्यालय के दिशानिर्देश के बावजूद मुझे हास्टल नहीं दिया गया है. हमारे पास यह साबित करने के कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय आरक्षण नीति की परवाह नहीं करता पुख्ता प्रमाण हैं. लेकिन यह सिर्फ इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थिति नहीं है. यह प्रत्येक राज्य और केन्द्रीय विश्वविद्यालय की स्थिति है. आरक्षण बस नाम मात्र की चीज रह गई है.


Sagar is a staff writer at The Caravan.