इस साल मार्च की शुरुआत में संयुक्त किसान मोर्चा ने पश्चिम बंगाल में ‘नो वोट टू बीजेपी’ यानी बीजेपी को वोट नहीं अभियान शुरू किया. 12 मार्च को महापंचायत से पहले कोलकाता में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसान आंदोलन के वरिष्ठ नेता बलवीर सिंह राजेवाल ने कहा था, “हम आपसे यह नहीं कह रहे कि किसे वोट दीजिए, बस आपसे यह अपील हैं कि बीजेपी के खिलाफ और किसान हितों के पक्ष में वोट करें. आप बीजेपी के सिवा किसी भी पार्टी को वोट दें.”
2 मई को जब परिणाम आए और तृणमूल कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की तो दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर, जहां आंदोलनरत किसान जमा हैं, जश्न का महौल था. सिंघु बॉर्डर से किसान धर्मेंद्र सिंह में मुझे शाम 4 बजे फोन पर बताया कि वहां जश्न मनाया जा रहा है. उन्होंने कहा, “लोग कह रहे हैं कि जाटों ने ममता को जिता दिया. अब हम लोग पकोड़े तल हैं. आपका स्वागत है यहां.”
पश्चिम बंगाल चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 280 में से 213 सीटों में जीत दर्ज की है. जब मैंने धर्मेंद्र को बताया कि मैं सिंघु बॉर्डर नहीं आ पाऊंगा तो उन्होंने पंजाब की किसान यूनियन जम्हूरि किसान सभा के महासचिव सतनाम सिंह अजनाला को फोन थमा दिया. अजनाला भी बीजेपी के खिलाफ वोट मांगने कोलकाता पहुंचे थे और बीजेपी की हार से बहुत खुश लग रहे थे. उन्होंने मुझसे कहा, “जब हम लोग वहां थे तो हम लोगों के चेहरों में पढ़ पा रहे थे कि वे बीजेपी को नहीं जिताएंगे. हमने अपने अभियान में कहा था कि बीजेपी एक फासीवादी पार्टी है जो लोगों को धर्म के नाम पर बांटती है और देश के किसानों को कारपोरेट के हाथों बर्बाद करवाना चाहती है.”
किसान नेताओं ने कोलकाता में नो वोट टू बीजेपी अभियान व्यापक स्तर पर चलाया. 14 मार्च को किसान नेता राकेश टिकैत ने नंदीग्राम में आयोजित महापंचायत को संबोधित किया. यहां से टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी पूर्व टीएमसी नेता शुभेंदु अधिकारी, जो फिलहाल बीजेपी में हैं, से हार गई हैं. टिकैत ने वहां जमा लोगों से कहा था कि जब भारत की सरकार दिल्ली बॉर्डर पर मौजूद पांच लाख किसानों से नहीं डर रही जो वहां स्थाई घर बना कर बैठे हैं तो आप कल्पना कर सकते हैं कि पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज होने के बाद वह क्या हाल करेगी.” अजनाला ने मुझे बताया, “हमारे मोर्चा ने बीजेपी के खिलाफ राजनीतिक ध्रुवीकरण किया. बीजेपी ने चुनावी जुआ खेला था और टीएमसी के उम्मीदवारों को तोड़कर अपने में मिला लिया था. इन लोगों ने हिंसा और धनबल का सहारा लिया. हम लोग बीजेपी की हार से खुश हैं और कौन जीता यह अलग बात है. हमें बंगाल में बीजेपी को मिली हार की खुशी है.”
लेकिन राज्य में बीजेपी की बढ़त जबरदस्त रही है. 2016 के विधानसभा चुनावों में उसे सिर्फ तीन सीटें मिली थीं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में उसने 18 सीटें जीती. इन 18 सीटों में 128 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र आते हैं और बीजेपी को इन सीटों पर बड़ी जीत की उम्मीद थी.
राजेवाल ने मुझे कहा, “लोगों पर भावनात्मक अपील का असर पड़ा है. ममता बनर्जी तीसरी बार सरकार बनाने जा रही हैं और यह अच्छा है. इससे मोदी सरकार को सबक लेना चाहिए कि किसानों का प्रतिरोध उन पर भारी पड़ेगा. हमने बीजेपी को हराने पर फोकस किया था. हमारे विरोध प्रदर्शनों में वामपंथी दलों के समर्थक भी पहुंचे थे. हमने यह लोगों पर छोड़ दिया कि वह बंगाल में किसकी सरकार बनाएंगे.” राजेवाल ने कहा कि किसान नेताओं ने सोच-समझकर किसी भी पार्टी का समर्थन न करने का फैसला लिया था क्योंकि इससे बीजेपी को उनके खिलाफ हथियार मिल जाता. हमने बीजेपी को यह मौका नहीं दिया कि वह कहे कि हम फलां-फलां पार्टी का समर्थन कर रहे हैं. यदि उसे यह मौका मिलता तो हमारा अभियान कमजोर पड़ जाता.”
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के ऑर्गेनाइजिंग सचिव सविक साहा पश्चिम बंगाल में 45 दिनों तक रहे और किसान नेताओं की बैठक कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने मुझसे कहा, “बंगाल चुनाव अभियान में मैं आपको कह सकता हूं कि जहां भी हम लोगों ने महापंचायतें कीं वहां बीजेपी हार गई.” साहा ने सिंगुर, आसनसोल उत्तर और कोलकाता पोर्ट निर्वाचन क्षेत्रों का नाम गिनाया. साहा ने मुझे बताया, “हमने पश्चिम बंगाल अपनी स्थिति को समझाने के लिए पांच लाख पंपलेट बांटे थे.” उन्होंने कहा, “हालांकि बीजेपी की बड़ी कोशिश थी कि वह पश्चिम बंगाल के चुनावों में दिल्ली के किसान आंदोलन का मुद्दा न उठने दे लेकिन हम लोगों ने लोगों को समझाया कि किसान आंदोलन का जो रूप टीवी में दिखाया जाता है उससे वह किस तरह अलग है.”
साहा ने कहा, “टिकैत, योगेंद्र यादव और गुरनाम सिंह चढूनी को लोग पहचानते थे और अचानक वे उनके सामने स्कूली मैदानों में भषाण करने लगे. लोग यह भी जानते थे कि यह किसान नेता दिल्ली में अपने अधिकारों के लिए चार महीनों से बैठे हैं. हमें ज्यादा समझाने की जरूरत नहीं पड़ी.”
दिसंबर 2020 में पश्चिम बंगाल के चुनावों से पहले तृणमूल कांग्रेस ने अपने राज्य सभा सदस्य डेरेक ओ’ब्रायन को सिंघु को भेजा था और फिर सिंघु बॉर्डर पर मौजूद किसान नेताओं से ममता बनर्जी ने फोन में बात की थी और किस कृषि कानूनों के खिलाफ अपना समर्थन जताया था. ओ’ब्रायन के सिंघु पहुंचने के बाद बनर्जी ने किसानों के समर्थन में ट्वीट भी किया था. इसके साथ ही टीएमसी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी और कहा था कि मुख्यमंत्री ने किसानों से फोन पर बात की है और किसानों ने पूर्व में जमीन के अधिकारों का समर्थन करने के लिए मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया है. इसके बाद के महीनों में कई वरिष्ठ किसान नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ चुनावी अभियान में सक्रिय रूप से भाग लिया. लेकिन साहा ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसानों का अभियान बीजेपी के खिलाफ था और उसका ओ’ब्रायन के सिंघु आने से कोई लेना-देना नहीं था. उन्होंने बताया कि ओ’ब्रायन का वहां जाना किसी भी अन्य नेता के वहां आने जैसा था.
3 मई को संयुक्त किसान मोर्चा ने एक प्रेस नोट जारी किया था जिसका शीर्षक था : “किसानों-मजदूरों के भारी विरोध का परिणाम है चुनावी नतीजे”. इस नोट में कहा गया है, “बीजेपी को केवल चुनाव की भाषा समझती है और इसलिए किसानों ने बीजेपी के खिलाफ चुनाव प्रचार किया. यह देश के लोगों का सयुंक्त किसान मोर्चा में विश्वास और किसानों के प्रति सम्मान का नतीजा है कि बीजेपी को विधानसभा चुनावों में बुरी हार का सामना करना पड़ा है. हम बीजेपी सरकार को फिर चेतावनी देते है कि अगर सरकार हमारी मांगे नहीं मानती तो उत्तर प्रदेश से लेकर देश के किसी भी हिस्से में बीजेपी की सरकार नहीं बनने दी जाएगी. देश के किसान मजदूर व संघर्षशील लोग अब एकजुट हो चुके है.” संयुक्त किसान मोर्चा ने यह भी स्पष्ट किया कि वह तीन विवादास्पद किसी कानूनों को रद्द करने की अपनी मांगों पर डटा हुआ है और प्रदर्शन जारी रहेगा.
प्रेस नोट में कहा गया है, “कल चुनाव परिणाम आने के बाद किसान नेताओं ने देश की जनता का धन्यवाद किया जिन्होंने सयुंक्त किसान मोर्चो के ‘नो वोट टू बीजेपी’ अभियान को सफल बनाया. अब इस ऊर्जा को किसान आंदोलन मजबूत करने की दिशा मे लगाने की जरूरत है. कोरोना महामारी में जरूरी सावधानियां बरतते हुए इस आंदोलन को तेज किया जाएगा. हम देश के किसानों, मजदूरों व आम नागरिकों से अपील करते हैं कि वे पहले की तरह किसान आंदोलन में पूरा सहयोग बनाए रखे.”
गौरतलब है कि बीजेपी को केवल 77 सीटें मिली हैं लेकिन यह पिछली बार के चुनावों के मुकाबले बहुत बड़ी जीत है. इससे भी जरूरी बात है कि बीजेपी को 38 फीसदी वोट मिला है जबकि 2019 के चुनावों में उसे 40 प्रतिशत वोट मिला था. लेकिन इन बात ने सिंघु बॉर्डर में उल्लास को कम नहीं किया और राजेवाल ने मुझसे कहा, “लोग भांगड़ा कर रहे हैं और एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं और मिठाईयां बांट रहे हैं.”