23 फरवरी 2020 तक दिल्ली हिंसा अपने चरम पर पहुंच गई थी लेकिन सीएए को लेकर बीजेपी की राजनीतिक लामबंदी दिल्ली चुनाव अभियान के मुख्य मुद्दे के रूप में बहुत पहले से ही शुरू हो गई थी. 8 फरवरी 2020 को राजधानी दिल्ली में चुनाव संपन्न होने के कई दिन पहले से ही बीजेपी ने बड़ी संख्या में अपने कार्यकर्ताओं को स्थानीय हिंदुओं को सीएए विरोधी आंदोलनकारियों के खिलाफ भड़काने और हिंसा के लिए प्रेरित करने के काम में लगाया था.
उत्तर पूर्व दिल्ली के सोनिया विहार वॉर्ड के बीजेपी मंडल अध्यक्ष अनुपम पांडे ने अपने संगठन के लिए सीएए के समर्थन में सक्रिय रूप से प्रचार किया. 31 दिसंबर 2019 को पांडे ने एक रैली को संबोधित करते हुए सीएए के विरुद्ध आंदोलन करने वालों को देशद्रोही बताया. उनके एक सहयोगी द्वारा पोस्ट की गई रैली की एक वीडियो में पांडे को लोगों से कहते हुए सुना जा सकता है कि, “मैं आपको कुछ बताने आया हूं कि अगर इस देश मे कोई हिंदुओं की बात करता है तो वह सिर्फ बीजेपी है. अगर दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री बीजेपी का होता है, तो ये गद्दार जो सड़कों पर बैठे हैं, जो बसें जला रहे हैं, हमें कम से कम उनसे छुटकारा मिल जाएगा.''
उत्तर पूर्वी दिल्ली के बाबरपुर वार्ड की बीजेपी पार्षद कुसुम तोमर भी सीएए के समर्थन में लामबंदी करने सक्रिय थीं. 30 जनवरी को बाबरपुर विधान सभा से बीजेपी के प्रत्याशी नरेश गोड के लिए प्रचार करते हुए तोमर ने भीड़ से कहा, "जब आप लोग अपना वोट डालें तो ऐसा लगना चाहिए जैसे आप गद्दारों का गला घोंट रहे हो." चातक की तरह ही तोमर भी युवा हिंदू संघ से जुड़ी हुई हैं, जिसने हिंसा से कुछ महीनों पहले ही मौजपुर मंदिर में हनुमान चालीसा का आयोजन कराया था.
तोमर ने मुझे बताया कि वह मौजपुर केवल इसलिए गई क्योंकि उनकी पार्टी के बहुत से लोग वहां मौजूद थे. लेकिन उन्होंने अपने भाषण से भीड़ को उकसाने वाली बात से इनकार किया. उन्होंने कहा, "सब लोग वहां पर थे तो हम भी चले गए, इससे ज्यादा तो और कुछ नहीं हुआ." जब मैंने उनसे उनके उत्तेजक भाषण के वीडियो के बारे में पूछा तो उन्होंने मेरी ही नियत पर सवाल उठाते हुए पूछा, "अब आप क्यों सीएए आंदोलन के बारे में पूछ रहे हैं?" फोन रखने से पहले तोमर ने भाषण में दिए प्रदर्शनकारियों के गले घोटने वाले अपने बयान से पल्ला झाड़ते हुए कहा, "ये ऐसी चीजें हैं जो हर कोई चुनाव प्रचार के दौरान कहता है. मैंने भी शायद ऐसा ही कुछ बोल दिया होगा. हालांकि मुझे याद नहीं है कि मैंने ऐसा कुछ कहा था या नहीं."
23 फरवरी को तोमर अपनी पार्टी के नेता कपिल मिश्रा के साथ थीं जब उन्होंने पुलिस को अंदोलनकारियों से जाफराबाद रोड खाली करने वाला भड़काऊ भाषण दिया था. और धमकी दी थी कि ऐसा न होने पर पुलिस से इस मामले को अपने हाथ में लेकर खुद कार्रवाई करेंगे. उनके साथ सीलमपुर विधान सभा क्षेत्र से हारे हुए बीजेपी के उम्मीदवार कौशल मिश्रा भी मौजूद थे. मॉडल टाउन निर्वाचन क्षेत्र के कौशल और कपिल दोनों ने अपने चुनाव अभियानों के दौरान ध्रुवीकरण के सहारे वोट बटोरने की कोशिश की थी. आखिर में दोनों ही हार गए लेकिन कपिल 41 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रहे और कौशल को 27 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए.
4 फरवरी को अपनी चुनावी रैली के दौरान कौशल ने लोगों से कहा, "हमारा मुकाबला देश विरोधी मानसिकता वालों से है." इसके बाद कौशल ने भीड़ से वादा करते हुए कहा कि अगर वह चुनाव जीतते हैं तो सभी सीएए आंदोलनकारियों को सड़कों से हटा देंगे. उन्होंने आगे कहा, ''जिस तरह से सीलमपुर में उपद्रव फैलाया जा रहा है, ऐसे में आपको शांति स्थापित करने के लिए बीजेपी को जरूर जिताना चाहिए. यदि मुझे आपका समर्थन मिलता है, तो मैं आपसे वादा करता हूं कि कोई भी देश विरोधी मानसिकता वाला व्यक्ति यहां विरोध या प्रदर्शन नहीं कर सकेगा." उनके इन बयानों के बारे में पूछे जाने पर कौशल ने न तो इनकार किया और न ही पूरी तरह जवाब दिया. "जो हुआ, सो हुआ, आपके सामने ही है सब कुछ." उनके कहने पर मैंने उन्हें बाकी सवाल ईमेल किए लेकिन उन्होंने इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई उत्तर नहीं दिया. 2020 के अंत में संगठन में हुए फेरबदल के बाद कौशल को बीजेपी के पूर्वांचल मोर्चा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है.
मौजपुर में इकट्ठे हुए अनेक भाजपाइयों में कपिल पर ज्यादा ध्यान दिया गया. भारतीय जनता युवा मोर्चा के कई सदस्यों ने मुझे बताया कि वे कपिल के लिए वहां गए थे और वीडियो में कई कार्यकर्ता उनके साथ खड़े होने और सेल्फी लेने की जद्दोजेहद में दिखाई भी दिए. इनके अलावा मुख्यधारा की मीडिया भी कपिल का साक्षात्कार करने के लिए इंतजार करती दिखाई पड़ी. फिर भी इन सब संकेतों को देखते हुए कपिल का मौजपुर में उपस्थित होना पहली नजर में ही हिंदुओं को सीएए आंदोलनकारियों के खिलाफ उकसाने का प्रयास लग रहा था. लेकिन ऐसा उन्होंने पहली दफा नहीं किया था.
दिसंबर से फरवरी तक उन्होंने अपनी चुनावी रैलियों, जुलूसों और सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए सीएए आंदोलनकारियों के खिलाफ द्वेषपूर्ण अभियान चलाया. 19 दिसंबर 2019 को कपिल ने मध्य दिल्ली के कनॉट प्लेस में "देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को," नारा लगाते हुए एक जुलूस निकाला. पांच दिन बाद करावल नगर में हुई रैली के वीडियो में कपिल को सांप्रदायिक तर्ज पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करते हुए और लोगों को सीएए आंदोलनकारियों का विरोध न करने पर फटकार लगाते देखा जा सकता है. उन्होंने लोगों से पूछा, "क्या आपका विवेक मर चुका है? क्या आपकी आंखें तब खुलेंगी जब आग आपके घर तक पहुंच जाएगी?"
इसके बाद उन्होंने सीएए आंदोलनकारियों को संबोधित करते हुए कहा, “अब से करावल नगर को सीलमपुर या जामिया जैसा समझने की गलती मत करना. अगर यहां किसी भी तरह के नारे लगाए जाते हैं, तो उसका वही जवाब भी दिया जाएगा जो हमने अपने माता-पिता से सीखा है."
बीजेपी के मौजपुर मंडल के कोषाध्यक्ष सुमित नागर ने कौशल के लिए प्रचार करते हए 2 फरवरी को फेसबुक पर एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें उन्होंने सीलमपुर के हिंदू निवासियों को उनकी धार्मिक पहचान के अनुरूप वोट करने के लिए कहा. नागर ने कहा, "यह शर्म की बात है कि हमें कहना पड़ता है कि हम सीलमपुर विधान सभा में रहते हैं. एक ऐसे निर्वाचन क्षेत्र में जहां से कभी भी कोई हिंदू उम्मीदवार नहीं जीता. क्यों कोई हिंदू यहां से चुनाव नहीं जीता? क्योंकि यहां 70 प्रतिशत मुसलमान रहते हैं. मेरी मुसलमानों से कोई दुश्मनी नहीं है, मैं बस आप सभी को यह बताना चाहता हूं कि मेरे हिंदू भाइयों आप सभी मोदी जी के एक सेवक को वोट देना ताकि कल आप अपने परिवार को सीना चौड़ा करके बता सकें कि आप कहां से ताल्लुक रखते हैं." उन्होंने आगे कहा, "अगर वे एकजुट हो सकते हैं और नारे लगा सकते हैं, तो आप भी हमारे साथ अपनी मुट्ठी ऊपर उठाकर नारे लगाइए, भारत माता की जय, जय श्रीराम!"
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर निर्वाचन क्षेत्र से बीजेपी के उम्मीदवार रहे मनोज कश्यप को भी संगठन ने दिल्ली में चुनाव प्रचार करने की जिम्मेदारी सौंपी थी. 21 जनवरी को कश्यप ने सोनिया विहार से बजरंग दल और भारतीय जनता युवा मोर्चा के सदस्यों के साथ बातचीत करते हुए एक वीडियो पोस्ट किया. इस वीडियो में उन्होंने मोदी को मुगल साम्राज्य का विरोध करने वाले सोलहवीं शताब्दी के राजपूत राणा प्रताप जैसा हिंदू राष्ट्रवादी बताया. कश्यप ने लोगों को निर्देश देते हुए कहा कि वे स्वयं को राणा प्रताप का योद्धा समझें जो सीएए विरोधी आंदोलनकारियों को चुनौती देने के लिए तैयार हैं. यहां उन्होंने आंदोलनकारियों की तुलना मुगलों से की.
कश्यप ने कहा, "यह सीएए का विरोध नहीं बल्कि भारत माता के सैनिकों का विरोध है." पिछले दिल्ली विधान सभा चुनावों में बीजेपी द्वारा जीती गईं तीन सीटों का जिक्र करते हुए कश्यप ने कहा, “क्या दिल्ली के देशभक्त युवा यह सब देख रहे हैं? यह कल्पना करना भी शर्मनाक है कि बीजेपी सिर्फ तीन सीटों तक सीमित हो सकती है. यह हमारी नपुंसकता को दर्शाता है. दिल्ली के युवाओं को जागना होग. अगर महाराणा प्रताप नहीं होते अकबर को रोका नहीं जा सकता था."
इसके अगले दिन कश्यप ने एक और वीडियो पोस्ट किया, जिसकी शुरुआत उन्होंने हनुमान की कहानी से की, जिन्होंने हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने गुरु और देवता राम के लिए लंका को जला दिया था. इसके बाद कश्यप ने सीएए विरोधी आंदोलनकारियों की तुलना लंका के निवासियों के साथ की और समझाते हुए कहा कि वे भी वैसे ही अंत के लायक हैं. आंदोलन का जिक्र करते हुए कश्यप ने कहा, "जब देश में इस तरह की स्थिति बनाई जा रही है, तो भारत के सच्चे बेटों को सामने आना चाहिए." उन्होंने आगे कहा, “भारत के बहादुर पुरुषों और देशभक्त योद्धाओं को खड़ा होना होगा जो अपनी माताओं और बहनों की रक्षा कर सकते हैं. वे निश्चित रूप से हनुमान की तरह किसी और की लंका जला सकते हैं." परिवार के एक सदस्य के अनुसार कोविड-19 के कारण सितंबर में कश्यप की मृत्यु हो गई.
उस समय दिलशाद गार्डन के बीजेपी मंडल अध्यक्ष रहे श्रेयदीप कौशिक भी लोगों को भड़काने के लिए रैलियों का आयोजन करने वालों में शामिल थे. श्रेयदीप ने 12 और 29 जनवरी को दो रैलियों का आयोजन किया था और दोनों भाषणों की वीडियो में सीएए को लेकर प्रत्यक्ष रूप से ज्यादा कुछ नहीं कहा गया था. दोनों रैलियों में श्रेयदीप और बीजेपी युवा मोर्चा की टीम ने भारत सरकार द्वारा मारे गए कुछ लोगों का जिक्र करते हुए और सीएए आंदोलनकारियों पर तंज कसते हुए उनके विरोध में नारे लगाए. “ले लो आजादी! बुरहान वानी को दे दी आजादी! अफजल को दे दी आजादी!" श्रेयदीप ने मेरे सामने यह स्वीकार किया कि उसने अपने वीडियो के जरिए सीएए के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की थी. उनका मानना था कि भारत की छवि को सुधारने की आवश्यकता है."
जनवरी महीने की शुरुआत में 7 तारीख को श्रेयदीप ने अपने फेसबुक पेज पर दिल्ली चुनावों को लेकर होने वाली बीजेपी की जिला स्तरीय बैठक की एक वीडियो पोस्ट की थी. उन्होंने वह वीडियो बैठक की अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति के पीछे खड़े होकर बनाई थी. वीडियो में एक जगह अध्यक्ष ने कहा, “हमने हाल ही में सीएए के लिए समर्थन जुटाने के लिए तीन दिन का डोर-टू-डोर अभियान किया है. यह दिलशाद गार्डन और सुंदरनगर इलाकों में बहुत सफल रहा लेकिन यह बहुत अधिक उत्साहवर्धक नहीं बन सका. सभी मंडल कार्यकर्ताओं से मेरा अनुरोध है कि आप अपने इलाके के अध्यक्ष को अपने क्षेत्र में बुलाएं और उनसे पूछकर बैठक करने की जगह सुनिश्चित करें." श्रेयदीप ने आगे कहा, "चुनाव इन मुद्दों पर ही लड़े जाएंगे."
इस वीडियो के शीर्षक में श्रेयदीप ने लिखा कि बैठक की अध्यक्षता बीजेपी के नगर पार्षद वीर सिंह पंवार ने की थी. उस समय पंवार सीमापुरी निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव प्रभारी भी थे. पंवार ने मुझे बताया कि उन्हें याद नहीं कि उन्होंने उस बैठक की अध्यक्षता की थी या नहीं लेकिन यह जरूर स्वीकार किया कि सीएए के मुद्दे पर लोगों का समर्थन जुटाना बीजेपी के चुनावी एजेंडे में शामिल था. उन्होंने कहा, "लोगों को जानकारी देने के लिए यह रणनीति बनाई गई थी. उन दिनों लोगों को जागरूक करने के लिए के कार्यक्रम चलाए गए थे क्योंकि जिस तरह से वे लोग और उनकी दादियां धरने पर बैठी थीं, तो यह जरूरी था कि उन्हें बताया जाए कि सीएए उनकी भलाई के लिए है."
चार दिन बाद उस समय तत्कालीन उत्तर पूर्वी जिला इकाई की महिला मोर्चा की अध्यक्ष मणि बंसल ने उत्तर पूर्वी जिलों में सीएए के समर्थन में डोर-टू-डोर अभियान चलाया. उन्होंने मोदी और अमित शाह की तस्वीरों वाले पर्चे बांटे और स्थानीय दुकानदारों और निवासियों के साथ इस “ऐतिहासिक कानून” के पारित होने का जश्न भी मनाया.
25 फरवरी को बंसल ने एक स्थानीय बीजेपी नगरपालिका पार्षद प्रमोद गुप्ता का पिछले कुछ दिनों में उनके द्वारा दिखाई गई बहादुरी के लिए धन्यवाद व्यक्त करते हुए एक फेसबुक पोस्ट किया. बंसल की तरह ही गुप्ता भी एक बनिया हैं जो उन बीजेपी नेताओं में शामिल थे जो हिंदू पहचान के नाम पर सीएए के लिए समर्थन जुटा रहे थे. 1 फरवरी को गुप्ता ने अपने निर्वाचन क्षेत्र यमुना विहार के मतदाताओं से कहा कि अब दिल्ली के चुनाव यह तय करेंगे कि इस देश में किस तरह के लोगों को रहने दिया जाएगा.
उन्होंने आगे कहा, "क्या हमारा खून नहीं खोलता, जब इस दिल्ली की भूमि पर खड़े होकर ये गद्दार कहते हैं कि भारत तेरे टुकड़े होंगे? यह चुनाव विचारधारा का चुनाव है. यह उन नेताओं का चयन करने का चुनाव है जो यह तय करेंगे कि इस देश में किस तरह की विचारधारा वाले लोग रहेंगे, वे कैसे रहेंगे, कैसे सांस लेंगे और किस तरह के नारे लगाएंगे." गुप्ता ने मेरे कई फोन कॉल और संदेशों का जवाब नहीं दिया.
दंगों से पहले मौजपुर चौराहे पर लोगों की भीड़ जुटाने वाले अधिकतर लोग बीजेपी की युवा शाखा भारतीय जनता युवा मोर्चा के थे. भारतीय जनता युवा मोर्चा की वेबसाइट के अनुसार, इसका गठन सन 1978 में किया गया था और दो साल बाद भारतीय जनसंघ का बीजेपी के रूप में पुनर्गठन होने के बाद से ही इसे बीजेपी की युवा शाखा के रूप में जाना जाता है. इसके वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष दक्षिण बेंगलुरु से लोकसभा सांसद तेजस्वी सूर्य हैं.
नवीन शाहदरा के तत्कालीन युवा मोर्चा के मंडल उपाध्यक्ष नितिन पंडित ने मुझे बताया कि वह और युवा मोर्चा के बाकी लोग बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के कहने पर मौजपुर गए थे. 24 फरवरी की एक वीडियो में नितिन को मौजपुर में बीजेपी नेता अनुपम पांडे के करीब बैठे देखा जा सकता है. उन्होंने मुझे आगे बताया "हमारे बीजेपी के जिला नेता प्रियांक जैन जी ने मुझे आने के लिए कहा था इसलिए मैं वहां गया था और दो से पांच मिनट खड़े होकर फिर चला आया था." पंडित ने बताया कि उन्हें नहीं पता था कि मौजपुर में क्या चल रहा है और वह बस भारतीय जनता पार्टी की तरफ से वहां गए थे. अन्य लोगों ने भी कहा कि वे बस बीजेपी नेताओं के कहने पर मौजपुर गए थे. उस समय सुभाष मोहल्ले के बीजेपी महासचिव रहे ओम चौधरी ने मुझसे कहा, "भाई, मैं वहां से गुजर रहा था तो मुझे पता चला कि हमारे कुछ नेता वह बैठे थे इसलिए मैं भी वहां चला गया था." 23 फरवरी को दोपहर 3.44 बजे पोस्ट किए गए एक वीडियो में चौधरी अपने साथियों से कहते नजर आ रहे हैं कि "सीएए के समर्थन में आज हजारों लोग सड़कों पर आए हैं."
उन्होंने जोर देकर कहा कि वह और उनके सहयोगी मौजपुर में केवल सीएए विरोधी आंदोलनकारियों को समझाने के लिए गए थे और फिर भी मौजपुर में गए चौधरी और उनके किसी भी साथी की वीडियो में इन्होंने सीएए के फायदों को लेकर कोई बात नहीं की. वे सिर्फ हिंदू जनता से बाहर आकर एकजुटता दिखाने की अपील कर रहे थे और मुसलमानों के खिलाफ उत्तेजक नारे लगा रहे थे. जब मैंने चौधरी से इन नारों के बारे में सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, "बात सिर्फ इतनी थी कि ये लोग डेढ़ महीने से वहां बैठे थे और हमारे कुछ नेताओं ने यह भी कहना शुरू कर दिया था कि अगर वे वहां से नहीं हटते तो हम भी इन लोगों के विरोध में धरने पर बैठेंगे." चौधरी फिलहाल नवीन शहादरा में बीजेपी के मीडिया प्रभारी हैं.
दिल्ली हिंसा में बीजेपी की युवा शाखा द्वारा निभाई गई अहम भूमिका को देखते हुए यह समझना जरूरी है कि इसका मूलभूत सिद्धांत क्या है और किस तरह इसके कार्यकर्ताओं में योजनागत हिंसा के विचार को रोपा गया था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता और 13 वर्षों तक बीजेपी के संगठन महासचिव के रूप में कार्य करने वाले रामलाल ने 5 मार्च 2016 को युवा मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इसके मूल दृष्टिकोण के बारे में बताया था. उनके उस भाषण से यह पता चलता है युवा मोर्चा एक ऐसी संस्था के रूप में कार्य करती है जो कुछ ही मिनटों में देश के किसी भी हिस्से में युवाओं को एकत्रित कर सकती है. रामलाल ने कहा था कि युवा मोर्चा को हर बूथ पर 10 युवाओं की एक टीम बनाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इन युवाओं का इस्तेमाल केवल चुनाव संबंधी कार्यों के लिए न किया जाए बल्कि इन्हें एक जागरूक राष्ट्रवादी बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए.
रामलाल ने तीन साल के भीतर देश के हर गांव, गली, वार्ड और बूथ में राष्ट्रवादी विचार रखने वाले युवाओं की सेना तैयार करने की मांग रखी. उन्होंने युवा मोर्चा के नेताओं के सामने युवाओं की संख्या एक लक्ष्य सामने रखा. रामलाल ने एक गांव के लिए 100 युवाओं का समूह, शहर में 500 और दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों के लिए पांच से दस हजार युवाओं की संख्या निर्धारित की. इसके अलावा रामलाल ने वार्ड से लेकर राज्य तक की प्रत्येक इकाई के प्रमुखों से कार्यकर्ताओं को कम समय में एकत्रित करने के लिए एक प्रयोग करने के लिए कहा, जिससे यह पता चल सके कितने लोग संगठन द्वारा बुलाने पर वास्तव में आते हैं.
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में रामलाल ने कहा, "मैं चाहता हूं कि बीजेपी युवा मोर्चा के सभी राज्य अध्यक्ष मात्र एक या दो घंटे की सूचना पर एक आपातकाल बैठक बुलाएं. ऐसी सूचना पहुंचने के बाद युवा मोर्चा के हर कार्यकर्ता को दो घंटे के भीतर इकट्ठा होना चाहिए. युवा मोर्चा की इतनी शक्ति जरूर होनी चाहिए कि जब भी कोई बुलावा आए, चाहे वह केंद्र से हो, राज्य से, जिले से, वार्ड से हो या फिर घर से हो, कार्यकर्ता बड़ी संख्या एकत्रित होने चाहिएं.
राजधानी दिल्ली में फरवरी 2020 में हुई सांप्रदायिक हिंसा से पता चल गया है कि रामलाल का यह सपना पूरा हो गया है.