3 फरवरी को न्यूज18 के एक कार्यक्रम में अरविंद केजरीवाल ने दावा किया कि वह केंद्र सरकार ही है जो "शाहीन बाग के पास की सड़क नहीं खोल रही है" क्योंकि भारतीय जनता पार्टी इसके जरिए "राजनीति" करना चाहती है. दिल्ली में आज के दिन यानी 8 फरवरी को चुनाव हो रहे हैं. पिछले साल दिसंबर से, दिल्ली के शाहीन बाग इलाके की मुख्य सड़क को जाम कर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहा है. इस विरोध प्रदर्शन को इलाके की मुस्लिम औरतें चला कर रही हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदर्शनकारियों को "विरोध करने का अधिकार है" लेकिन इसकी वजह से छात्र और एम्बुलेंस उस सड़क पर फंस जाते हैं और इसलिए रास्ते में आवाजाही "सुनिश्चित करने के लिए फिर से खोल दिया जाना चाहिए." अगले दिन केजरीवाल ने एनडीटीवी से कहा कि अगर दिल्ली पुलिस उनके अधिकार क्षेत्र में होती तो दो घंटे में "शाहीन बाग क्षेत्र" को खाली कर दिया होता. हाल के दिनों में इस तरह की बेतुकी बयानबाजी और सीएए के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी में हुए विरोध प्रदर्शनों के बारे में अस्पष्ट विचार आम आदमी पार्टी की खासियत रही है.
हालांकि आप ने सीएए के प्रति अपना विरोध प्रकट किया है, लेकिन कई साक्षात्कारों में पार्टी के सदस्य इस विवादास्पद कानून के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब को दिल्ली में विकास के मुद्दों का हवाला देकर टालते रहे हैं. पार्टी सीएए के समर्थकों और इसके खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों के विरोधियों को तुष्ट करने की कोशिश में बच-बचाकर चलती रही है. खासकर इस कानून की धार्मिक अंतरवस्तु और प्रदर्शनकारियों के समर्थन को लेकर पार्टी ने शातिराना रवैया अपनाया है. सीएए के तहत मुसलमानों के बहिष्कार को पार्टी ने बड़े पैमाने पर संबोधित करने या यहां तक कि स्वीकार करने से परहेज किया है.
ऐसा करके पार्टी ने बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के उस सबसे विवादास्पद फैसलों में से एक से खुद को दूर कर लिया है, जिसके विरोध में राष्ट्रीय राजधानी और देश भर में हजारों भारतीय नागरिक सड़कों पर उतर आए हैं. यूं तो मुख्यमंत्री केजरीवाल की प्रसिद्धि और राजनीतिक शक्ति का उदय इसी तरह के एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन की पीठ पर सवार होकर हुआ था, लेकिन आज दुबारा उठ खड़े हुए राष्ट्रव्यापी आंदोलन से वह खुद को पूरी तरह दूर रख रह हैं. विरोध प्रदर्शन के दौरान, दिल्ली आंशिक रूप से इंटरनेट शटडाउन, गैरकानूनी प्रतिबंधों, पुलिस की बर्बरता और बीजेपी नेताओं द्वारा सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा की खुली वकालत का गवाह रही है लेकिन फिर भी दिल्लीवासी भारी संख्या में विरोध प्रदर्शनों में शामिल हो रहे हैं और यह संख्या बढ़ती ही जा रही है. इस बीच आप ने, जिसे अकादमिक जगत अक्सर "उत्तर विचारधारा" पार्टी के रूप में संदर्भित करता है, बीजेपी की कार्रवाइयों के हिंदू-राष्ट्रवादी वैचारिक आधार पर आंखें मूंद ली हैं.
हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तनवीर फजल ने बताया, ''अगर आप आम आदमी पार्टी को देखें, तो पाएंगे कि उन्होंने उत्पीड़ितों के बारे में अपने आंदोलनों को कभी मुखर नहीं किया है.' फजल ने पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला की मौत की जांच की मांग के लिए हुए देशव्यापी आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा, ''2016 में जब सामूहिक रूप से भीड़ जुटी थी या अब भी, पार्टी लगातार पीछे रही. "यह हमेशा अभिजात वर्ग की पार्टी रही है." आप ने वास्तव में स्वीकार किया है कि वह सीएए विरोधी आंदोलन से एक नपी-तुली दूरी बनाए हुए है. जनवरी में आप के चुनाव प्रभारी और राज्य सभा सदस्य संजय सिंह ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, “अगर केजरीवाल गलती से भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हो जाते तो बीजेपी बड़े दंगे भड़का देती और फिर सारा दोष उनके ऊपर डाल देती. "
केजरीवाल ने विरोध के खिलाफ हालांकि अस्पष्ट और बगैर किसी जवाबदेही के ही बात की है. 15 दिसंबर 2019 को, जामिया मिलिया इस्लामिया में सीएए के विरोध के बीच, ओखला क्षेत्र के पास एक सरकारी बस को आग लगा दी गई थी. इसके जवाब में, केजरीवाल ने ट्वीट किया, “कोई भी हिंसा में शामिल न हो. किसी भी तरह की हिंसा अस्वीकार्य है. विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण होने चाहिए.” उन्होंने दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल से भी बात की और “उनसे सामान्य स्थिति और शांति बहाल करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया.” बाद में एक वीडियो सामने आया जिसमें पुलिस कर्मियों को एक जेरेकैन से बस में कुछ डालते हुए दिखाया गया था. कई लोगों ने अनुमान लगाया कि क्या पुलिस ने बस को आग लगाई थी, हालांकि पुलिस ने दावा किया कि वे आग बुझाने के लिए पानी डाल रही थी. केजरीवाल ने खामोशी ओढ़ ली. चार दिन बाद, उन्होंने कहा, "यह संभव नहीं है कि छात्र बस में आग लगा दें."
उसी दिन, दिल्ली पुलिस जामिया परिसर में घुस गई, अंधाधुंध आंसू गैस का इस्तेमाल किया और पुस्तकालय में छात्रों पर हमला किया. केजरीवाल ने एक बार फिर विश्वविद्यालय के छात्रों के समर्थन में नहीं बोलने का फैसला किया. हमने जामिया के छात्र और आप की छात्र शाखा छात्र युवा संघर्ष समिति के एक सदस्य से बात की जिसने अपनी पहचान न जाहिर करने का निवेदन किया. उन्होंने हमें बताया कि आप पुलिस के हमले के विरोध में छात्रों का समर्थन करने में पूरी तरह नाकाम रही जबकि सीवाईएसएस के सदस्य कासिम उस्मानी भी पुलिस हमले का शिकार हुए थे. छात्र ने हमें बताया कि दिल्ली के दो पुलिस कर्मियों ने उस्मानी को लाठियों से पीटा और उन्हें कई घंटों तक ऑक्सीजन देनी पड़ी क्योंकि उनके चेहरे के पास एक आंसू गैस का गोला फट गया था.
दिल्ली पुलिस ने जामिया में हिंसा के लिए सात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की और उस्मानी उनमें से एक थे. फिर भी आप ने अपने किसी भी चुनावी बयान में इस बात का जिक्र नहीं किया. सीवाईएसएस सदस्य ने हमें बताया कि पार्टी ने उस्मानी को समर्थन की पेशकश की थी, लेकिन सार्वजनिक रूप से नहीं. उन्होंने कहा कि जामिया में विरोध करने वाले सीवाईएसएस सदस्यों ने एक व्यक्तिगत स्तर पर ऐसा किया था और पार्टी नेतृत्व से कोई निर्देश नहीं लिया था.
“अगर पार्टी इस मुद्दे पर जमीन पर उतरती है तो शिक्षा आदि पर किए गए उसके असली कामों को कोई भी नहीं देखेगा. मैं इस पर पार्टी के साथ हूं,” छात्र ने बताया. लेकिन उन्होंने कहा कि जामिया में पुलिस की बर्बरता पर पार्टी की प्रतिक्रिया निराशाजनक थी. “आप शिक्षा के बारे में बात करते रहते हैं, आप शिक्षा नीतियों को लागू करते रहते हैं. लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध ऐसे संस्थान में इस तरह की कोई बड़ी घटना घटती है, जिसमें कई सारे छात्र घायल हो जाते हैं और पार्टी से कोई भी उन घायल छात्रों को देखने नहीं जाता है.” छात्र ने आगे कहा कि जामिया में सीवाईएसएस के नेता भी असुरक्षित हो गए थे क्योंकि आप ने उस्मानी के बचाव में सार्वजनिक रुख अपनाने से इनकार कर दिया था.
"अगर आप सीएए-एनआरसी के बारे में सार्वजनिक रूप से बात नहीं करना चाहते हैं, तो भी कोई बात नहीं. लेकिन फिर भी पीड़ित छात्रों से मिलने के लिए उनको आना चाहिए था," उन्होंने कहा. ओखला निर्वाचन क्षेत्र से आप के विधायक अमानतुल्लाह खान पार्टी के एकमात्र नेता हैं जो छात्रों से मिलने गए और उनका समर्थन किया. इसी निर्वाचन क्षेत्र में जामिया और शाहीन बाग आते हैं जो सीएए विरोधी आंदोलन के केंद्र बिंदु रहे हैं. "अमानतुल्लाह की बात पूरी तरह से अलग है. वह दिल्ली वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष हैं, वह आम आदमी पार्टी के सदस्य के रूप में नहीं, वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष की हैसियत से ऐसा कर रहे हैं.” छात्र ने कहा.
सीवाईएसएस के एक संस्थापक सदस्य, जिन्होंने नाम न जाहिर करने का आग्रह किया, ने कहा कि भले ही उन्होंने छात्र संगठन से इस्तीफा नहीं दिया है, लेकिन वह अब सक्रिय सदस्य नहीं हैं. संस्थापक सदस्य ने कहा, "आम आदमी पार्टी बीजेपी और कांग्रेस से बेहतर है, लेकिन जैसा पहले था वैसा नहीं है. अरविंद केजरीवाल ने अभी भी सीएए के बारे में बात नहीं की लेकिन वे चालाकी से आगे बढ़ रहे हैं - वे जामिया विरोध पर अधिक मुखर होकर सामने आ सकते थे लेकिन वह नहीं आए क्योंकि वह जानते थे कि इससे उन्हें नुकसान होगा. शायद, चुनाव के बाद वह अधिक सक्रिय होंगे." उन्होंने माना कि आप "मुस्लिम पार्टी" के रूप में पहचाने जाने से बचने की कोशिश कर रही थी.
संस्थापक सदस्य का आकलन सटीक लगता है - आप ने इस बात पर केंद्रित होने से परहेज किया है कि सीएए भारतीय मुसलमानों की नागरिकता को कैसे खतरे में डालता है, पार्टी इस बारे में मुखर रही है कि यह बिहार और उत्तर प्रदेश से आकर बसे पूर्वांचलियों को कैसे प्रभावित कर सकता है. कुछ मीडिया अनुमानों के मुताबिक, पूर्वांचल वासियों की संख्या दिल्ली की पच्चीस प्रतिशत से अधिक है. "यह पूर्वांचलियों के खिलाफ एक साजिश है," संजय सिंह ने दिसंबर में कानून पारित होने से पहले एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था. संस्थापक सदस्य के विश्लेषण के समान ही केजरीवाल ने प्रेस को बताया कि सीएए से गरीब सबसे अधिक प्रभावित होंगे.
दिसंबर के अंत में दिल्ली के सीमापुरी और दरियागंज इलाकों में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के बाद भी पार्टी ने अपनी चुप्पी बनाए रखी. केजरीवाल ने इसे ''कानून और व्यवस्था” बनाए रखने में केंद्र सरकार की अक्षमता करार देते हुए खुद को साफ-साफ बचा लिया. चुनाव में भाग लेने के लिए, आप अन्य मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक सुसंगत रणनीति बनाए रखना चाहती थी. उदाहरण के लिए, जब एबीपी न्यूज ने जनवरी में सीएए के बारे में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया, "अन्य दलों से मेरा केवल यही अनुरोध है कि दिल्ली के चुनावी मुद्दे दिल्ली की शिक्षा, दिल्ली की स्वास्थ्य सेवा, दिल्ली के पानी और दिल्ली के परिवहन के बारे में हों. आइए दिल्ली के काम के बारे में बात करते हैं.” उसी महीने बाद में, सिसोदिया ने शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों के साथ मीडिया के सामने अपनी एकजुटता व्यक्त की, जबकि पार्टी का ध्यान विकास केंद्रित मुद्दों पर ही था.
उस महीने, द क्विंट की एक वीडियो रिपोर्ट ने केजरीवाल की स्थिति पर कुछ सवालों के जवाब देने की कोशिश की. सामाजिक-विज्ञान अनुसंधान संस्थान, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज-लोकनीति और एक मतदान एजेंसी, सीवोटर की रिपोर्ट के आधार पर पत्रकार आदित्य मेनन ने वीडियो में कहा, "इस सप्ताह दिल्ली में 67 प्रतिशत लोग अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री के रूप में पसंद करते हैं और 69 प्रतिशत नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में चाहते हैं. मोदी के मतदाता, जो दिल्ली में केजरीवाल को पसंद करते हैं, दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की तकदीर चमकाने के लिए महत्वपूर्ण है.” मेनन ने तर्क दिया कि अगर आम आदमी पार्टी खुले तौर पर प्रदर्शनकारियों का समर्थन करती है तो वह इस संभावित वोट-बैंक के अच्छे खासे हिस्से को गंवा सकती है.
अकादमिक जगत से ताल्लुक रखने वाले फजल ने यह भी कहा कि आप की राजनीति दक्षिणपंथ की राजनीति के ही समान है. उन्होंने कहा कि 2012 का लोकपाल आंदोलन "अभिजात वर्ग का दावा था" और इसने "दक्षिणपंथियों के लिए दावेदारी के दो अलग-अलग रास्ते खोले." उन्होंने समझाया, "एक वैचारिक रूप से चरमपंथ का था, जिसे आप बीजेपी में पाते हैं." दूसरा प्रशासन के म्युनिसिपल तरीके के साथ था, जिसे आप आम आदमी पार्टी में देख सकते हैं.” फजल ने कहा कि भले ही प्रशासन के म्युनिसिपल मॉडल ने महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित किया हो, लेकिन यह “दूसरों की पहचान को नजरअंदाज करने की कीमत पर” है. उन्होंने आगे कहा कि बीजेपी ने जो किया है उसे नजरअंदाज करने से आप ''समाज के उत्पीड़ित तबके की मांगों को नजरअंदाज करने में उसके साथ भागीदार है. यह भी एक कारण है कि वह शहरी केंद्रों से बाहर अच्छा प्रदर्शन करने में सक्षम नहीं हैं. यह इसलिए है क्योंकि वह बहुत सारे सवालों के जवाब देने में विफल रही है.”
कई प्रयासों के बावजूद, हम आतिशी, सिसोदिया और सिंह जैसे आप के वरिष्ठ सदस्यों से बात नहीं कर पाए. आतिशी की टीम ने हमसे कहा कि उन्हें अपने सवाल भेज दें लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. अगर हमें कोई प्रतिक्रिया मिलती है तो रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
चुनावों से दो हफ्ते पहले, टाइम्स नाउ के एंकर राहुल शिवशंकर ने टाउन हॉल में केजरीवाल का एक साक्षात्कार लिया. शिवशंकर ने आक्रामक ढंग से केजरीवाल से सीएए के बारे में कई सारे सवाल किए, लेकिन लगता था कि दर्शक केजरीवाल के पक्ष में हैं- वे लगातार केजरीवाल का उत्साहवर्द्धन करते रहे. शिवशंकर ने कहा, "हम रिपोर्ट करते हैं, हमने रिपोर्ट की है, हमने शाहीन बाग से खुद को दूर नहीं किया है. आम आदमी पार्टी ने एक भी नेता को शाहीन बाग नहीं भेजा है." केजरीवाल ने चतुराई से बातचीत को मोड़ दिया. उन्होंने कहा, हमने खुद को दूर नहीं किया है. हमने स्कूल, अस्पताल चलाए हैं, हमने सड़कें बनाई हैं, हमने सीसीटीवी लगाए हैं. उन्होंने देश में तबाही मचाई है ... क्योंकि वे बेरोजगारी की समस्या को संभाल नहीं सकते."
टाउन हॉल में कार्यक्रम के दौरान एक समय जब केजरीवाल ने एक शानदार भाषण दिया, शिवशंकर ने पूछा, "आप विभाजन के बारे में बात कर रहे हैं, आप मानते हैं कि यह कानून मुस्लिम विरोधी हैं, आप इस पर विश्वास करते हैं?" केजरीवाल उलझन में दिखे. "मैंने ऐसा कब कहा? मुझे लगता है कि सीएए और एनआरसी अप्रासंगिक है, मुझे लगता है कि लोग चाहते हैं कि सरकार सीएए और एनआरसी को रोक दे और प्रशासन पर ध्यान दे."
टाउन हॉल के बाद कई लोगों ने शिवशंकर के सामने डटे रहने के लिए केजरीवाल की सोशल मीडिया पर सराहना की. हालांकि, यह स्पष्ट था कि केजरीवाल ने सीएए और एनआरसी पर या प्रदर्शनकारियों के समर्थन में साफ-साफ बात रखने से परहेज किया. उन्होंने यह नहीं बताया कि किस तरह से कानून लाखों मुसलमानों को प्रताड़ित करता है और उन्हें राज्यविहीन बना देगा. इसके बजाए, उनकी सभी प्रतिक्रियाएं आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित थीं.
शिवशंकर ने शाहीन बाग में हो रहे विरोध प्रदर्शनों के कारण दिल्ली भर में सैकड़ों छात्रों को होने वाली असुविधा के बारे में सवाल किए. केजरीवाल ने जवाब दिया, “सभी को देश में शांतिपूर्वक विरोध करने का अधिकार है, संविधान का अनुच्छेद 19 इसकी गारंटी देता है. लेकिन विरोध ऐसा होना चाहिए जिससे किसी को असुविधा न हो. इसलिए, जो भी असुविधा है, किसी को भी असुविधा नहीं होनी चाहिए. मुझे ठीक से जानकारी नहीं है क्योंकि मैं कभी भी वहां नहीं गया, लेकिन किसी को भी असुविधा नहीं होनी चाहिए.” उनकी यह प्रतिक्रिया पार्टी के संतुलित वैचारिक लचीलेपन का लक्षण थी - मुख्यमंत्री ने एक ही जवाब में प्रदर्शनकारियों को अपने समर्थन, प्रदर्शनकारियों की वजह से परेशानी उठा रहे लोगों को अपना समर्थन और विरोध स्थल के बारे में ज्ञान की कमी को जाहिर किया.
केजरीवाल ने प्रेस के साथ बातचीत के दौरान जो एक आम रुख अपनाया है, वह यह तर्क है कि गृहमंत्री अमित शाह हिंदू-मुस्लिम आधार पर चुनावों को विभाजित कर रहे हैं. इसके विपरीत आप चुनावों को प्रशासन के सवाल पर केंद्रित रख रही है. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस के साथ हाल ही में एक साक्षात्कार में यही बात कही. केजरीवाल ने कहा, "इस बार, सवाल यह है कि मतदान काम पर होगा या हिंदू-मुस्लिम पर. मेरा मानना है कि दिल्ली के लोग स्मार्ट हैं और वे काम को ईनाम देंगे." मुख्यमंत्री ने तर्क दिया कि शाह ने शाहीन बाग पर शासन के मुद्दे से ध्यान हटाने की कोशिश की थी. हालांकि, केजरीवाल ने यह भी दोहराया कि अगर कोई असुविधा होती है तो शाहीन बाग रोड को खाली किया जाना चाहिए. "अगर आप एक सड़क को अवरुद्ध करेंगे और इतने लोगों को तकलीफ देंगे, तो यह किसी भी लोकतंत्र, किसी भी समाज में स्वीकार्य नहीं होगा," उन्होंने कहा. जब यह बताया गया कि केवल असुविधा होने पर ही लोग विरोध पर ध्यान देते हैं, उन्होंने जवाब दिया, "क्या यह हिंसा नहीं है?"
जनवरी के अंत में, एक कार्यकर्ता शरजील इमाम ने सीएए पर दिए अपने भाषण से यह कहकर खलबली मचा दी थी कि अपनी संख्या के बल पर प्रदर्शनकारियों को असम को देश के बाकी हिस्सों से काट देना चाहिए. उनके भाषण के बाद, कम से कम छह राज्यों की पुलिस ने कथित तौर पर इमाम के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया. दिल्ली में एक चुनावी रैली के दौरान शाह ने केजरीवाल से सवाल किया, "क्या आप शरजील इमाम के पक्ष में हैं या नहीं?" केजरीवाल ने तुरंत ट्विटर पर जवाब दिया : "शरजील ने असम को देश से अलग करने की बात कही. यह बहुत गंभीर है. आप देश के गृहमंत्री हैं. आपका यह बयान बुरी राजनीति है. आपका कर्तव्य है कि आप उसे तुरंत गिरफ्तार करें. यह बात कहे हुए उसे दो दिन हो गए. आप उसे गिरफ्तार क्यों नहीं कर रहे हैं? आपकी क्या लाचारी है? या आप अब और गंदी राजनीति करना चाहते हैं?” इमाम को अगले दिन गिरफ्तार कर लिया गया था.
फजल के अनुसार, “जब राष्ट्रवाद के मामलों की बात आती है, तो आप कह सकते हैं कि बीजेपी और आम आदमी पार्टी ज्यादातर मुद्दों पर एक जैसे हैं, चाहे वह कश्मीर हो या सीएए-एनआरसी हो. वे खुद को अधिक आक्रामक साबित करने के लिए लगातार लड़ाई में हैं." उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी कभी भी सीधे बीजेपी का विरोध नहीं करेगी, यह "एक अलग स्तर की धारणा के साथ खुद को उसी बिंदु पर रखेगी."