23 फरवरी को बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने दिल्ली पुलिस को अल्टीमेटम दिया था कि वह सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों से सड़कें खाली कराए. इसके बाद सीएए समर्थक हिंदुओं ने जाफराबाद और मौजपुर इलाकों में पहुंच कर “जय श्रीराम” के नारे लगाए. अगले दिन इन इलाकों में हिंसा चालू हो गई.
पिछले दिनों की हिंसा में अब तक कम से कम 7 लोगों की मौत हो चुकी है और दर्जनों अन्य घायल हुए हैं. लोग मीडिया पर भी हमले कर रहे हैं. कारवां ने वहां रिपोर्ट करने वाले दो फोटो पत्रकारों से बात की.
30 साल के मुस्लिम फोटोग्राफर का बयान : दोनों तरफ के लोग नहीं देखना चाहते मीडिया
मैं तीन फोटोग्राफरों के साथ काम कर रहा था और हमलोग जाफराबाद, सीलमपुर या चांद बाग पहुंचने की कोशिश कर रहे थे. हमलोग एक ई-रिक्शा में मौजपुर मोड़ पहुंच जो जाफराबाद के करीब है. जैसे ही हमलोग मौजपुर मोड़ पहुंचे हमने देखा कि वहा कुछ कारें जल रही थीं और वहां बहुत से लोग मौजूद थे.
वहां हमे एहसास हुआ कि हमलोग हिंदू साइड पर हैं क्योंकि वहां सभी लोगों के माथों पर तिलक लगा थे. मेरे साथी फोटोग्राफर और मैं पास की एक दुकान की तस्वीरें लेने लगे. उस दुकान में आग लगी थी. तभी आदमियों की भीड़ वहां आ गई और हमें उन तस्वीरों को दिखाने के लिए कहने लगे जो हमने ली थीं. मैंने ऐसा करने से इनकार कर दिया. मुझे पता था कि अगर मैंने उन्हें तस्वीरें दिखाई, तो वे मुझसे मेरा नाम और अन्य सवाल पूछेंगे. मैं पहले से ही डर हुआ था क्योंकि वे "जय श्री राम" के नारे लगा रहे थे. उन्होंने मेरे साथी फोटोग्राफर का कैमरा चेक किया. वह हिंदू है. उन लोगों ने उससे सारी तस्वीरें डिलीट करने के लिए कहा. उन्होंने मेरे हिंदू फोटोग्राफर मित्र को अपना आईडी कार्ड दिखाने के लिए कहा. इस पूरे हंगामे के बीच, एक इमारत में मौजूद दो बुजुर्ग चाचा-चाची चिल्ला-चिल्ला कर हमें छोड़ देने के लिए हिंदू उपद्रवियों से कहते रहे. वे लोग उन्हें डांट रहे थे कि हमें क्यों परेशान किया जा रहा है. हमें पता चला कि वे स्थानीय हिंदू थे. बाद में पड़ोस के दूसरे हिंदुओं ने हमें सलाह दी कि हम इलाके से चले जाएं. "यहां नहीं रहो," उन्होंने हमें चेताया. उन्होंने हमें चेतावनी दी कि हम उनसे हेलमेट लेते जाएं.
हालत ऐसी थी कि वहां एक नाला है जिस पर एक पुल है. पुल के उस पार, बाईं ओर, मुस्लिम भीड़ थी और दाईं ओर हिंदुओं की भीड़. दोनों ओर से पथराव हो रहा था. जो भी पुल पर जाता था यदि वह मुस्लिम जैसा दिखता था तो उसको पीटा जा रहा था. यदि वह मुस्लिम जैसा नहीं दिखता तो गुंडे उसका कार्ड जांचते और फिर उसकी पिटाई करते.
मैं बिल्कुल उस जहग पर था जहां रॉयटर्स के पत्रकार दानिश सिद्दीकी ने एक मुस्लिम की लिंचिंग की फोटो ली थी. जब हम मौजपुर चौक से वापस आ रहे थे, तो एक मुस्लिम समूह ने हमें कैमरे के साथ देखकर घेर लिया. वे हमारे साथ मारपीट करने वाले थे लेकिन मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि मैं एक मुसलमान हूं और मेरे साथ का फोटोग्राफर मेरा दोस्त है. बड़ी मुश्किल से मैं उन्हें भरोसा दिला पाया. उन्होंने हमें मुख्य सड़क की ओर जाने का इशारा किया और एक ऑटोरिक्शा में बिठा कर कहा कि हम वहां से चले जाएं. जब हम हिंदुओं से घिरे हुए थे तब मेरे हिंदू फोटोग्राफर दोस्त ने हमें वहां से निकाला था.
दोनों तरफ के लोग मीडिया की मौजूदगी देखना नहीं चाहते. वे मीडिया को सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं. कल भीड़ ने एक रिपोर्टर की मोटरसाइकिल को आग लगा दी थी. हालात बेहद खराब हैं.
(कौशल श्रॉफ से बातचीत पर आधारित.)
26 साल के फोटो पत्रकार का बयान : "पुलिस और भीड़ मिलकर प्रदर्शनकारियों पर पथराव कर रहे थे"
हम 24 फरवरी को सुबह 11-11.30 बजे पुराने मुस्तफाबाद के एक घर से चले थे. सुबह का माहौल बहुत अराजक था. लोग गलियों में लोहे की छड़ों और अन्य हथियार लेकर दौड़ लगा रहे थे. फिर हम चांद बाग के विरोध स्थल पर पहुंचे. हमने सुन रखा था कि वहां लाठीचार्ज हुआ है. जब हम वहां पहुंचे, तो पता चला कि पुलिस ने कुछ लोगों को हिरासत में लिया था लेकिन पुलिस उपायुक्त को चांद बाग के प्रदर्शनकारियों का फोन आने के बाद उन लोगों को रिहा कर दिया गया था.
उसके बाद प्रदर्शनकारियों ने चक्का जाम कर दिया और चांद बाग विरोध स्थल की मुख्य सड़क को बंद कर दिया. वे कह रहे थे, "उन्होंने हमारे ऊपर लाठीचार्ज कैसे किया?" उन्होंने पुलिस को वहां से लौट जाने को कहा. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर दुबारा लाठी चार्ज किया. वहां थोड़े से ही पुलिस कर्मी थे. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को घेर लिया. एक ओर औरतें थी और दूसरी ओर आदमी. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया और पुलिस को भागने पर मजबूर कर दिया. वहीं से चीजें और क्रूर हो गईं.
पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आंसू गैस का इस्तेमाल करने लगी. फिर महिलाओं ने पथराव शुरू कर दिया. पुलिस ने मर्दों को निशाना बना कर लाठी चार्ज किया और आंसू गैस के गोले दागे जिससे औरत और आदमी अलग-अलग हो गए.
दोपहर 1.30 बजे लगभग 200 हिंदू आदमियों की भीड़ विरोध स्थल के पास पहुंची. उन लोगों ने पथराव किया और “जय श्री राम!” का नारा लगाया. हम देख रहे थे कि पथराव करने वाले लोग पुलिस के साथ थे. हम एक छत से इसे कवर कर रहे थे.
प्रदर्शनकारियों पर हिंदू भीड़ ने पथराव शुरू कर दिया. फिर भीड़ ने पेट्रोल पंप को जला दिया. पास में एक ट्रक था, उन्होंने पहले उसे जलाया, फिर पेट्रोल पंप को आग लगा दी. फिर उन कारों को जो वहां थीं, उन्हें भी आग के हवाले कर दिया. भीड़ ने एक ई-रिक्शा को आग लगा कर प्रदर्शनकारियों की ओर ढकेल दिया.
लगभग 4 बजे भीड़ ने बंदूकों से गोलियां चलानी शुरू कर दी. वे लोग सिविल ड्रेस में थे और हेलमेट पहने हुए थे. हमारे बगल में खड़े एक आदमी को भी गोली लगी लेकिन हमें पता नहीं चला कि वह जिंदा है या मर गया.
प्रदर्शनकारी औरतें हालात बिगड़ने के बाद वहां से चली गईं. उनके जाने के बाद प्रदर्शनकारी और भीड़ एक-दूसरे पर पथराव करने लगे. पहले प्रदर्शनकारियों की संख्या 500-600 के आसपास थी लेकिन बाद में कम हो गई. मुख्य प्रदर्शन स्थल पर लगभग 200-300 लोग झगड़ रहे थे. हालांकि गलियों में कई और लोग मौजूद थे. वहां कुछ पुलिसवाले भी मौजूद थे.
पुलिस भीड़ का साथ दे रही थी. उनके साथ प्रदर्शनकारियों पर पथराव कर रही थी. वह प्रदर्शनकारियों को काबू में करने की कोशिश कर रही थी. पुलिस बार-बार प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस दाग रही थी. प्रदर्शनकारियों के हाथों में केवल पत्थर थे. वे गोले उठा रहे थे और उन्हें वापस फेंक रहे थे. आंसू गैस का एक गोला एक प्रदर्शनकारी के हाथ में फट गया. लोगों ने बताया कि विस्फोट इतना जबरदस्त था कि उसके हाथ की हड्डियां दिखाई दे रही थीं. सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा के लिए पुलिस कुछ नहीं कर रही थी. पुलिस भीड़ के साथ चल रही थी, उनके साथ पथराव कर रही थी. वह प्रदर्शनकारियों पर पथराव कर रही थी.
मैं शाम 7 बजे वहां से लौटा. भीड़ ने तब तक पूरे क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया था. वे सैकड़ों की तादाद में थे. उन्होंने विरोध स्थल को जला दिया. घरों पर पथराव और तोडफोड़ की. हमें वहां से भागना पड़ा. चंद बाग जल रहा था.
हम वापस मुस्तफाबाद आ गए. हम रात में बाहर नहीं जा सकते थे क्योंकि वह इलाका चारों तरफ से बंद था. हमारे पास लगभग 5 बार आंसू गैस के गोले आकर गिरे. हमें भागना पड़ा. अभी भी मेरी आंखें बहुत जल रही हैं. शुरू में हम रिपोर्ट कर रहे थे लेकिन कई सारे लोगों ने हमें घेर लिया और कहा कि "यहां तस्वीरें मत लो.” मेरे साथ के फोटो जर्नलिस्ट के अनुरोध करने पर उन्होंने मानव श्रृंखला बनाई और वहां से निकलने में हमारी मदद की.
भीड़ लंबी राइफल से अस्पताल की छत के ऊपर से गोली चला रही थी. मेरा एक साथी अस्पताल में था. वहां जिंदा कारतूस पड़े थे. मुस्तफाबाद में भी स्थिति तनावपूर्ण थी. सड़कों पर आपाधापी थी. लोग लाठियां और अन्य तरह के हथियार लिए हुए थे. वे कह रहे थे, "आरएसएस के लोग दूसरी तरफ से आ रहे हैं."
(अमृता सिंह से बातचीत के आधार पर.)