सरकारी आदेश पर जय शाह भारी, नहीं जमा कर रहे कंपनी का लेखा विवरण

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह की कंपनी ने पिछले दो वित्त वर्षों का लेखा विवरण जमा नहीं कराया है जबक‍ि जमा न करने वाली अन्य कंपनियों पर सरकार कार्रवाई कर रही है. BJP.ORG
05 January, 2019

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कारपोरेट मंत्रालय वित्त लेखा विवरण जमा न करने वाली कंपनियों और सीमित देयता भागीदारियों (एलएलपी) के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है लेक‍िन भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सुपुत्र जय शाह की कंपनी ने पिछले दो वित्त वर्षों का लेखा विवरण जमा नहीं कराया है. कारपोरेट मंत्रालय का डेटाबेस बताता है कि जय शाह की कंपनी कुसुम फिनसर्व एलएलपी ने 2016-17 और 2017-18 का लेखा विवरण मंत्रालय में जमा नहीं कराया है.

उन कंपनियों पर कार्रवाई कर रहा है जिन्होंने लगातार दो सालों तक या उससे अधिक समय का वार्षिक लेखा विवरण जमा नहीं कराया है. पिछले साल जून में वित्त मंत्रालय ने एक प्रेस रिलीज में कहा था कि 2017-18 में कारपोरेट मंत्रालय द्वारा चलाए गए अभियान के तहत रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी ने 2 लाख 26 हजार कंपनियों का पंजीकरण रद्द किया है. इस अभियान के तहत रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी ने पिछले तीन सालों का लेखा और शोधन क्षमता का विवरण और वार्षिक रिटर्न जमा न कराने वाले तीन लाख निदेशकों को अयोग्य करार दिया. रिलीज के अनुसार अभियान के दूसरे चरण के लिए 225910 कंपनियों और 7191 एलएलपी उद्यमों की पहचान की गई है जिन पर कार्रवाई की जा सकती है.

जबकि बीजेपी सरकार ने उपरोक्त आवश्यकताओं को पूरा न करने वाली कंपनियों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है, जय शाह की कुसुम फिनसर्व सरकार के निर्देशों को धता बता रही है. लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप अधिनियम, 2008 (सीमित देयता भागीदारी अधिनियम) के तहत प्रत्येक एलएलपी को 30 अक्टूबर तक अपना लेखा विवरण जमा कराना होता है. यदि ऐसा नहीं होता तो उस पर 5 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. जय शाह की कंपनी ने लगातार दो सालों का लेखा विवरण जमा नहीं किया है. अभी यह स्पष्ट नहीं है कि जय शाह की कंपनी पर क्या कार्रवाई की गई है.

पिछले साल अगस्त में कारवां में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में मैंने बताया था कि कुसुम फिनसर्व ने जो लेखा विवरण जमा किया है उससे पता चलता है कि इस कंपनी ने 2016 तक एक निजी बैंक, एक सहकारी बैंक और नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय से 97 करोड़ 35 लाख रुपए का कर्ज लिया है. इसमें से 25 करोड़ रुपए का कर्ज पिता अमित शाह की अहमदाबाद की दो संपत्तियों को गिरवी रख कर लिया गया है. मई 2016 में कालूपुर वाणिज्यिक सहकारी बैंक के बंधकनामा में अमित शाह को बंधकदाता-2 और गिरवी रखे दो प्लाट (भूखंडों) का मालिक बताया गया है. कंपनी के मालिक होने के कारण बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर कंपनी की वित्तीय लेनदारी का दायित्व था लेकिन 2017 में राज्यसभा के लिए नामांकन भरते वक्त अमित शाह ने इसकी जानकारी नहीं दी. ऐसा करना लोक प्रतिनिधि अधिनियम के तहत दण्डनीय अपराध है और उल्लंघनकर्ता का नामाकंन खारीज भी किया जा सकता है.

उस रिपोर्ट के प्रकाशित होने से पहले कुसुम फिनसर्व को दी गई कर्ज की राशि 300 प्रतिशत बढ़ गई थी लेकिन ताजा बैलेंसशीट में कंपनी की शुद्ध संपत्ति (नेट वर्थ) मात्र 5 करोड़ 83 लाख रुपए दिखाई गई है. कंपनी द्वारा लेखा विवरण जमा नहीं कराने से उसकी ताजा स्थिति का पता नहीं चल रहा है. कंपनी ने 2016-17 का वार्षिक रिटर्न जमा किया है लेकिन अपने कामकाज का वित्तीय लेखाजोखा जमा नहीं किया. उसमें सिर्फ यह कहा गया है कि एलएलपी ने इस वर्ष 5 करोड़ रुपए से अधिक का व्यवसाय किया. कंपनी के ताजा वित्त विवरण से उसकी सटीक माली हालत और उसे प्राप्त कर्ज में हुई बढोतरी का पता चल सकता है.

अगस्त 2018 में जय शाह ने कारवां को बताया था कि कंपनी का कारोबार पत्रकारिता के उद्देश्यों के लिहाज से जरूरी नहीं है और यह सार्वजनिक चर्चा या प्रकाशन का विषय नहीं है. लेकिन राज्यसभा के उम्मीदवार के रूप में अमित शाह द्वारा जमा हलफनामे और सरकारी आदेश का उल्लंघन करने वाली कंपनियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के मद्देनजर इस कंपनी का व्यवसाय निसंदेह रूप से पत्रकारिता और सार्वजनिक चर्चा का विषय है.

कुसुम फिनसर्व ने सानंद औद्योगिक परिसर के 15754.83 वर्ग मीटर के प्लाट को गिरवी रख 17 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था. यह प्लाट उसने गुजरात औद्योगिक विकास कारपोरेशन (जीआईडीसी) से जुलाई 2017 में लीज पर लिया था. फिलहाल इस प्लाट में एक फैक्ट्री है. जीआईडीसी एक सरकारी निकाय है जो राज्य में औद्योगिक परिसरों और उद्यानों के विकास का काम करती है. दस्तावेजों की माने तो यह कंपनी पीपी, एचडीपीई और जम्बो बैग का उत्पादन करती है.

कानून के तहत अनिवार्य रूप से जमा कराए जाने वाले लेखा विवरणों के अभाव में यह बताना मुश्किल है कि इस उद्यम की ताजा माली हालत क्या है, नई निर्माण इकाइयाें की क्या हालत है और यदि उसने कोई नया कर्ज लिया है तो वह कितने का है. विवरण से यह भी पता चल जाता कि क्या वित्त वर्ष 2016-17 और 2017-18 में कंपनी को कुछ मुनाफा हुआ है? कंपनी के आरंभ के बाद सिर्फ एक बार 2014-15 में इसने मुनाफा दिखाया है. इसके बाद से यह लगातार घाटा और पूंजी की कमी दिखा रही है. मैंने अहमदाबाद के रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी और जय शाह से इस बारे में जानने के लिए संपर्क किया लेकिन इस खबर के प्रकाशन तक दोनों ने ही कोई जवाब नहीं दिया.